हरि शंकर गोयल

Abstract Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Abstract Classics Inspirational

ईमानदारी की सजा

ईमानदारी की सजा

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बलराज का चयन जब प्रशासनिक सेवाओं में हुआ था तब उसका एक ही सपना था कि वह एक पिछड़े राज्य की सेवा करके उसे विकसित राज्य की पंक्ति में लाकर खड़ा करना है। वह अपनी क्षमता से अधिक कार्य करता था। ईमानदार था और सबसे बड़ी बात यह थी कि जनता की तकलीफों को सुनकर उन्हें दूर करने की वह कोशिश करता था। 

इन सब विशेषताओं के कारण बलराज की इमेज एक सफल अधिकारी की बन गई। बड़े अफसरों का वह चहेता बन गया। लेकिन आजकल‌ पोस्टिंग तो बहुत से कारणों से मिलती है। 

बलराज का स्थानांतरण महिला एवं बाल विकास विभाग में हो गया। सरकार ने उसे विशेष कर इस पद पर लगाया था क्योंकि विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच चुका था और महिलाओं और बच्चों को पोषाहार समय पर नहीं मिलता था। बलराज के प्रशासनिक कौशल की परीक्षा होने की घड़ी नजदीक आ गई थी।

बलराज ने तुरंत काम संभाल ‌लिया। उसने दौरे करने शुरू कर दिये। महिलाओं और बच्चों से उसने सीधे सीधे मिलकर समस्या की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने का काम प्रारंभ कर दिया। सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं , सेविकाओं, साथिनों आदि से भी उसने सीधा संवाद स्थापित करना प्रारंभ कर दिया। 

उसके इस रवैये पर सबसे पहले तो उसके कार्यालय में ही विरोध होना शुरू हुआ क्योंकि भ्रष्टाचार की जड़ तो वहीं थी बाकी जगह तो बस बेल पहुंच रही थी। उसे पता चल गया कि ठेकेदार, बाबू और नीचे के अधिकारियों की मदद से पोषाहार गरीब महिलाओं एवं बच्चों को नहीं मिलकर सीधे सीधे बाजार में पहुंच जाता है। उसने पोषाहार के वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगवाने का निर्णय ले लिया। उसकी ईमानदारी से बेइमान बाबू, छोटे अधिकारी और ठेकेदार डरने लगे।

इस निर्णय को अमली जामा पहनाने से पहले ही ड्राइवरों ने हड़ताल कर दी। बलराज ने वह ठेका रद्द कर नया ठेका देने के लिए फाइल चलाई। लेकिन फाइल ऊपर जाकर रुक गई। ना उस पर समर्थन में ना विरोध में कोई टिप्पणी की गई। बस उसे रोक लिया गया। फाइल की लोकेशन क्या है ये भी किसी को पता नहीं। 

एक दिन बलराज एक आंगनबाड़ी केंद्र चैक करने गया तो वहां उसने देखा कि केन्द्र बंद‌ है। आसपास के लोगों से पूछा तो लोगों ने बताया कि यह केन्द्र तो पिछले साल भर से खुला ही नहीं है। बलराज ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को बुलवाया तो उसका पति आया। उसने बताया कि सीमा , आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, अभी आ नहीं सकती है। 

बलराज बड़ा हैरान हुआ और उसने कहा कि अगर सीमा पांच मिनट में नहीं आई तो उसे निलंबित कर दिया जायेगा। सीमा के पति ने जब देखा कि अफसर कड़क है तो वह उसे ले आया। बलराज ने उससे पूछना शुरू किया पर सीमा को तो कुछ पता नहीं था। उसका पति सरपंच था और सत्तारूढ़ दल का नेता था इसलिए वह जबाव दे रहा था। 

सीमा के पति नाथूराम ने उसे इशारे में समझाया भी कि गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहे हो , जो आपको चाहिए सब मिल जायेगा। लेकिन बलराज ने उस पर कोई ध्यान ही नहीं दिया।‌ अब नाथूराम से रहा नहीं गया तो उसनेे सीधे सीधे धमकी दे डाली। 

"आप जैसे बहुत से अधिकारी आये और चले गए। हमारा बाल भी बांका नहीं कर पाये। आप अगर अपनी खैरियत समझते हो तो चुपचाप चले जाओ नहीं तो जेल की चक्की पीसनी पड़ेगी।" 

बलराज को गुस्सा आ गया लेकिन उसने गुस्से में कुछ नहीं कहा बस वही पर निलंबन का आदेश अपने पीए से तैयार करवाया और वहां से आ गया। 

वहां से वह सीधा अपने घर पहुंचा और लंच लेकर थोड़ा विश्राम कर अपने आफिस आ गया। यहां आकर क्या देखता है कि सौ पचास लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई है और उसके मुर्दाबाद के नारे लगा रही है। उसे कुछ समझ नहीं आया कि ये लोग कौन हैं और क्यों ऐसा कर रहे हैं? उसने उनको अपने कक्ष में बुलवा कर अपनी समस्या व्यक्त करने को कहा लेकिन वे लोग नारेबाजी करते रहे।‌ बाद में पता चला कि वे लोग महिला प्रगतिशील मोर्चा के अधिकारी और सदस्य थे। 

शाम तक बलराज के विरुद्ध एक थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो गई। उसमें कथन किया गया कि बलराज ने आंगनबाड़ी केंद्र के निरीक्षण के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सीमा के साथ दुष्कृत्य करने का प्रयास किया था 

समाचार चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी कि एक बड़े अधिकारी ने अपने पद एवं प्रभाव का दुरुपयोग कर एक गरीब महिला के साथ दुष्कृत्य किया। उसे बलात्कारी , दरिंदा और न जाने क्या क्या विशेषण दिये जाने लगे। अभी तक किसी भी चैनल वाले ने उससे उसका पक्ष सुने बिना यह सब खबर चलाई थी। खबरिया चैनलों पर डिबेट शुरू हो गई। सब लोग उसे नौकरी से निकालने, सरेआम फांसी देने की वकालत करने लगे। 

बलराज अपने घर आया तो उसने देखा कि उसके घर का नजारा बदला हुआ है। उसकी पत्नी सरिता रोये जा रही है। दोनों बच्चे उसे चुप करा रहे हैं। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मम्मी रो क्यों रही है ? बलराज ने सरिता के कंधे पर हाथ रख कर उसे चुप करवाने की कोशिश की। 

सरिता ने उसका हाथ अपने कंधे से इस प्रकार हटाया जैसे कि उसके कंधे पर कोई सांप आकर बैठ गया हो। रोते रोते बोली " मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी। आप इतने नीच और गिरे हुए इंसान निकलेंगे, मैंने सोचा नहीं था। पता नहीं और कितने गुल खिलाए हैं आपने ? अब मैं आपके साथ एक मिनट भी नहीं रह सकती हूं। मेरा भाई सोहन अभी आता ही होगा, उसके साथ चली जाऊंगी"।

बलराज धीरज धारण करके उसे समझाते हुए बोला " सरिता, तुम तो एक पढ़ी लिखी औरत हो। मेरे साथ बारह साल से रह रही हो। अपने पति को नहीं पहचानती ? मुझ पर विश्वास नहीं है ? क्या मैं ऐसा घिनौना अपराध करूंगा ? एक बार इन सब बातों पर विचार तो करो। ये बच्चे क्या सोच रहे होंगे हमारे बारे में। ये कुछ बेइमान लोगों का षड्यंत्र है जो मुझे फंसाने के लिए किया गया है। ये लोग मेरी ईमानदारी से डर गये हैं और उसी ईमानदारी का दंड दिलाना चाहते हैं जिससे मैं ईमानदारी का रास्ता छोड़ भ्रष्टाचार में शामिल हो जाऊं "

सरिता बोली , "बच्चे जो भी सोच रहे हैं सोचने दो , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है ‌।वो औरत कोई झूठ थोड़ी बोलेगी ? कोई बिना बात ऐसा भयंकर इलज़ाम लगाता है क्या ? अगर झूठा होता तो पुलिस क्यों रिपोर्ट दर्ज करतीं और ये चैनल वाले भी कोई झूठी खबर चला रहे हैं क्या "? 

बलराज को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस औरत को अपने पति पर विश्वास नहीं है और एक अनजान औरत पर विश्वास है। पुलिस पर विश्वास है और तो और न्यूज चैनलों पर भी विश्वास है। वह अब टूट गया। जिसे सबसे ज्यादा विश्वास होना चाहिए उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं है। इसलिए अब जीना भी बेकार है। ऐसा सोचकर एक बार उसके मन में आत्म हत्या का विचार आया लेकिन अगले ही पल उसके विवेक ने अलख जगाई और कहा कि जब मैंने कोई अपराध किया ही नहीं तो डरना किस बात से। और ऐसा सोचकर उसने अपने वकील को घर बुलवा लिया। 

थोड़ी देर में उसका साला सोहन आ गया और बलराज को हिकारत भरी नजरों से देखकर उल्टा सीधा बोलने लगा। बलराज ने कुछ नहीं कहा। सरिता अपने बच्चों को लेकर सोहन के साथ चली गई। 

इतने में वकील साहब आ गये। वो अभी आज की घटना के बारे में बता ही रहा था कि पुलिस आ गई। वकील ने गिरफ्तारी का काफी विरोध किया लेकिन पुलिस उसे सार्वजनिक तौर पर गिरफ्तार करके ले गई। 

दूसरे दिन उसे निलंबित कर दिया गया। सेशन कोर्ट ने उसका जमानत प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया। पुलिस उससे बुरी तरह पेश आ रहीं थीं। माननीय उच्च न्यायालय में जमानत याचिका फिर पेश की गई। उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका स्वीकार कर ली। उसे एक महीना जेल में रहना पड़ा। 

निलंबित तो वह पहले ही हो चुका था। अब उसके पास करने को कोई काम नहीं था। उसने दिन प्रतिदिन के अनुभवों को एक डायरी में नोट करना प्रारंभ कर दिया। केस चलने लगा। बीच बीच में खूब उतार चढ़ाव देखे। दो साल के बाद में उसका निर्णय आया। दुष्कृत्य का केस साबित नहीं हुआ और बलराज जेल से बाइज्जत बरी हो गया। इसी बीच उसने अपने अनुभवों को जो डायरी में लिखा था उससे उसने उपन्यास लिख डाला जिसे प्रकाशन के लिए डाल दिया गया।

सरकार ने भी उसे बहाल कर दिया और उसका स्थानांतरण कहीं और कर दिया। पर मीडिया वाले इतने बेशर्म निकले कि जिन चैनलों ने उसे बलात्कारी, दुर्दांत अपराधी , दरिंदा घोषित कर दिया था तो जब कोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया था तब वह न्यूज क्यों नहीं चलाई गई? क्या किसी चैनल ने उसके लिए माफी मांगी ? 

बलराज खून का घूंट पीकर रह गया। एक दिन क्या देखता है कि सरिता अपने दोनों बच्चों को लेकर आ गई है। बलराज शांत रहा। कुछ नहीं बोला। सरिता ने ही चुप्पी तोडी " मुझे माफ़ नहीं करेंगे , आप" ? 

बलराज ने जो कहा उसे ध्यान से सुनने की आवश्यकता है " आप मेरी पत्नी हैं। मेरे साथ बारह साल साथ रहीं। अगर इतने सालों में हम दोनों एक दूसरे को नहीं पहचान पाये तो फिर कभी नहीं पहचान पायेंगे। आपने मुझ पर विश्वास करने के बजाय एक झूठी और मक्कार औरत पर विश्वास किया , इससे ज्यादा दुख वाली बात मेरी जिन्दगी में नहीं हुई। ऐसे में कोई भी आदमी टूट जाता है और आत्म हत्या करने जैसा स्टेप उठा लेता है। मैंने आपको बहुत समझाने की कोशिश की थी कि यह सब बेइमान लोग मेरी ईमानदारी के कारण मुझे फंसा रहे हैं । उस समय जब आफको मेरा साथ देना था और जब मुझे आपकी सबसे अधिक जरूरत थी तब आप सबसे पहले भाग खड़ी हुई। आप तो मेरे अच्छे दिनों की साथी ‌हैं। जब पहले अच्छे दिन थे तब आप मेरे साथ थीं और अब मेरा सही समय आ गया तो तुम वापस आ गयी हो। बुरे दिनों में मुझे अकेला मरने के लिए छोड़ दिया जबकि आपने जब सात वचन भरे थे तब एक वचन यह भी था कि हम दोनों एक दूसरे का साथ अच्छे और बुरे दोनों समय में देंगे। तुम मेरी जीवन संगिनी नहीं बन सकी सरिता। इसका मुझे हमेशा खेद रहेगा। मैं सारी दुनिया से अकेला लड़ा। परिवार का मतलब यही होता है कि चाहे अच्छे अवसर पर साथ दो या ना दो लेकिन बुरे अवसर पर जरूर साथ देना चाहिए"।

सरिता आंसुओ में डूबकर बलराज के चरणों में गिर गई। बलराज ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और दोनों बच्चों को बांहों में भर लिया।


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