हर कोई क्यों इतना डरा
हर कोई क्यों इतना डरा
हर कोई क्यों इतना डरा सहमा सहमा सा ?
चुपचाप सह रहा हैं जुल्म, अन्याय, अत्याचार
क्यों बेच रहा है इमान दिल खोल के
देश समाज इंसानियत कोई चीज हैं की नहीं ?
क्या हम गांव के गांव शहर के शहर
श्मशान घाट में तबदील होने की राह देख रहे हैं ?
क्या हमारे सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग
क्यों इतने संवेदन हीन हो सकते हैं ?
क्या हमारी आस्था, चुनाव लोगों के
जान से अधिक हैं जरूरी है ?
क्या सुप्रीम कोर्ट से मोटो नहीं ले सकता
चुनाव आयोग सो रहा हैं लोग मर रहे हैं देखते नहीं ?
लाशों की ढेर में ही उन्हें राजनीतिक रोटी सेंकनी है
क्या हम सब सिर्फ जिन्दा लाश बन चुके हैं ?
जात धर्म आस्था मतलब के सिवाय कुछ नहीं दिखता ?
जब इंसान ही नहीं बचेगा तो राजनीति क्या खाक करोगे ?