हमें बचावो कोई तो ... चीख पुकार
हमें बचावो कोई तो ... चीख पुकार
जंगल में मंगल खूब चला
दाढ़ी बढ़ा के खूब तना
कुछ खरीदकर कुछ बेचकर
फुजूल खर्चे में मगन रहा
फ़क़ीर बनके सदा बेफ़िक्र रहा
झूठ बोलकर ,सपने दिखाकर
मनमर्जी दुनियाभर में घूमता रहा
चाटुकार क घेरा बनके आत्ममुग्ध
भेश बदलकर कभी टोपी पहनकर
हरवक्त मुंगेरीलाली सपने दिखाता
एक दिन खुदको ही भगवान समज़ने लगा
गिरगिट की तरह रंग बदलता तानाशाह
सबकुछ ख़तम चारो और मातम ही मातम
कहे भी तो किसे अंधे गूंगे बहिरे सारे
गांव शहर तबाह हुए कुछ गिड़गिड़ाने लगे
अब तो बक्श दो हमें बचावो कोई तो चीख पुकार।