Abasaheb Mhaske

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सुधर जाओ वर्ना वक्त होगा मौका

सुधर जाओ वर्ना वक्त होगा मौका

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क्या कहे कैसे कहे और किसे ?

अजब सी घुटन हैं आँखें नम हैं

क्या फर्क पड़ता हैं भाई वो अपने

हैं या बेगाने वो इंसान तो हैं ?


सांसे थम रही हैं कही जान बचाने की गुहार लग रही

कही रोते बिलखती चीख पुकार किसी का बाप

किसी का बेटा, दादा - दादी छोटी सी बिटिया

ऑक्सीजन, दवा की कमी से दम तोड़ रही हैं


दुनिया भर में वैक्सिनेशन हो रहा हैं और

हमारे साहब को मुफ्त में बांटकर खामोश हैं

अपने देशवासी बेमौत मर रहे और साहब को

सेन्ट्रल व्हिसटा प्रोजेक्ट , राजमहल की पड़ी हैं


अपनों का दर्द तो उन्हें होता हैं जो इंसान हैं

सब कुछ बेचकर साहब मनमानी कर रहे हैं

मीडिया बिक चूका हैं ज्यादातर, बचा लड़ रहा हैं

न्यायालय को हर तरफ ध्यान देना मुश्किल हैं


हर तरफ कोहराम मचा हैं लोग बेफिक्र रास्तों पर

अस्पताल में डॉक्टर नर्स बेचारे थक चुके हैं

पुलिस से भीड़ बेवजह उलझ रही हैं ,विश्वगुरु भारत

को फ़िलहाल दुनिया भर के सहायता की जरूरत हैं


सच का गला घोटकर सब कुछ चंगा सा हुक्मरान कह रहे हैं

लाशें दफ़नाने को जगह नहीं तो नदियों में बहाये जा रहे हैं

और बेशर्मी से वो हमारे नहीं उनके होंगे कहे जा रहे हैं

कही ऑक्सीजन की दवाई की कालाबाजारी हो रही हैं


अरे हुक्मरानो संभल जाओ, लोगों को बचाओ

खुद राज महल दुनिया भर का सब छोड़ो

और दिल से पूरी ईमानदारी से उन्हें बचाओ

यही तुम्हारा फर्ज हैं और धर्म भी अब तो


वर्ना कुछ भी नहीं बचेगा फिर किस पे राज करोगे ?

कंकर पत्थर , पेड़ पौधे या खूंखार जानवरों पर

याद रखो इतिहास गवाह हैं सबका हिसाब होगा

अभी भी वक्त है सुधर जाओ वर्ना वक्त होगा na मौका



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