VEENU AHUJA

Romance

4.5  

VEENU AHUJA

Romance

हर दिल जो प्यार करेगा

हर दिल जो प्यार करेगा

15 mins
464


वह शाहजहाँ पुर से लखनऊ नया नया आया था उसने गंज की तारीफ सुन रखी थी। मेट्रो में बैठने का चाव भी कम न था।

स्टेशन पर गाड़ी के रुकते ही ज़ल्दी से वह अंदर घुसकर सामने की सीट पर बैठ गया था ' इस फॉरन ( विदेशी )। जैसी गाड़ी 

में बैठना उसे बड़ा सुखद लग रहा था उसने कौतुहल से बायीं ओर देखा। अरे जैसे लम्बी सुरंग - वह आखिरी डब्वे में था। अरे ये तो सॉप के माफ़िक मुड़ती हुयी भी दिख रही थी। अचानक उसकी नजर सामने शीशे से टकरायी और वह चकरा गया अरे बाप रे। एक बेहद ख़ूबसूरत लड़की फटी वाली जींस ओर छोटा वाला टॉप पहने उसे ही ताक रही थी। वह शरमा गया। ओतेरी। तभी उसका स्टॉप आगया। वह खड़ा तो हुआ पर ' पहले आप ' की 'तहज़ीब ने उसके पैर रोक लिए क्योंकि वह भी खड़ी हो गयी थी। वह उसे एक नज़र सही से देखना चाहता था तभी पीछे से किसी ने आवाज़ दी। जल्दी जाएं गाड़ी चलदेगी । उसने अकबका कर पैर बड़ा तो दिए पर स्टेशन पर गिर पड़ता अगर किसी ने उसकी शर्ट न पकड़ ली होती ' वह संयत हो खड़ा हुआ ही था कि ध्यान से , अभी आप गिर जाते। कहते हुए वह एंजिल गायब हो गयी थी ' आजभी शर्ट के अंदर शरीर का वो हिस्सा कभी कभी सुन्न हो जाया करता है जब वह उसकी याद में फफक पड़ता है ' ' । बताते बताते वह बसंत के इस मौसम में खिले पास के फूलों को सहलाता हुए वार्ड की ओर चला गया ।

उसके चेहरे में यूँ तो कुछ ख़ास नहीं था। यही बात उसे ख़ास बना गयी थी -। उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी जैसी शायद किसी को कोहिनूर मिल जाए वैसी -। उसकी मुस्कराहट बहुत भोली थी ' किसी छोटे बच्चे की मुस्कान सी निश्चल , उसके चेहरे की मासूमियत मेरी ऑखों कीपरख, समझ व सच्चाई को झुठला रही थी। वह चौबीस या शायद पच्चीस वर्ष का युवा था। उसके गालों में पड़ते डिम्पल। उसके नर्म रुई के फाहे से हाव भाव। किसी को भी उसे प्यार करने के लिए विवश कर देते - शुद्ध सात्विक प्यार - 

वह भोला सा तो पहले से रहा होगा पर। चेहरे की सौम्यता और तेज किसी के प्यार में आकण्ड डूबने से आया था शायद --- ।

अपना नाम उसने मलंग बताया था। उसके गाल सुर्ख लाल हो गए थे बताते हुए कि।..... वह उसे मोलू बुलाती थी। मैंने कहा मैं भी इसी नाम से उसे पुकारू ' एकक्षण वह मुस्कराया। इस नाम से तो वह मुझे पुकारती थी। दूसरे क्षण भावविहीन शून्य में जाकर बोला - ' कोई और क्यों इस नाम से पुकारे - नहीं नही। कोई नहीं बुलाएगा।.. कहता हुआ वह अपने वार्ड की ओर चला गया ।

मैं उस बड़े से मनोचिकित्सालय की बड़ी मैम डा। रजनी के कमरे की ओर धीमे कदमों से बढ़ चली 

आज, नया केस मिलने का उत्साह न था

इतनी उदास तो डिप्रेशन व चिन्ता के केस की पड़ताल करते समय भी नही थी। आज परेशान थी। जो प्यार , उसकी शख्सियत का अभिन्न हिस्सा था। उसके रोम रोम मे समाया था जो प्यार उसकी खुबसूरती की वज़ह था। उस प्यार के प्रभाव से उसे मुक्त कराने की जिम्मेदारी अब उसकी थी। - सोचना भी भयंकर था क्योकि वह प्रेममय हो चुका था

उस प्रेम से विहीन होकर वह पूरा खाली हो जाएगा। उस प्यार ने उसे पूर्ण आनन्द की उस अवस्था में पहुंचा दिया था जहा पहुँच मानव सम्पूर्ण प्रेम अर्थात् स्वयंप्रभु बन जाता है। उस प्रेम कोहिनूर से अलग होकर क्या वह साधारण मानव बना रह पाएगा ? , उसके भीतर क्या बचेगा ? यह भविष्य के गर्भ में सन्निहित था ।

डा० रजनी ने बताया, - यह दो साल पुराना केस है। इसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। यहाँ लगभग दोमहीने इलाज कराया ठीक होकर चला गया था फिर अभी दो साल बाद पुन : अपनी हाथ की नस काटने की कोशिश की थी। परिवार वाले इसे यहाँ ले आए थे । भरा पूरा प्यार करने वाला परिवार है 

लेकिन ,मलंग उनको देखते ही अपना आपा खो देता है इतना कि इसे इ।सी। टी ( विद्युत तरंग थैरेपी ) देनी पड़ती है।

योगा पार्क की सबसे कोने की सीट पर बैठा मलंग एकटक। उदास सा पेड़ पर बैठी चिड़िया को देख रहा था। दूर से ही दो ऑखो ने दूसरी दो आँखों को देख कर अनदेखा कर दिया। मैं समझ गयी आज उसका बात करने का मन नहीं था ' उसकी ओर न जाकर मैं आगे दूसरे मरीजो। के साथ बैडमिन्टन खेलने लगी । कुछ पाँचसे सात मिनट बीतें होगे। मलंग भी बैडमिन्टन टीम में शामिल होगया। मै उसे अनदेखा करके दूसरे मरीज के साथ खेल खेलती रही। पाँच मिनट बाद , उसी किनारे की सीट पर जाकर बैठगयी । करीब दो मिनट बाद ही मलंग आया और नमस्ते कहकर पूछा - आज कुछ नहीं पूछना ?

मैं मुस्कराई - हूँ ' अगर तुम बात करना पसंद करो। मलंग ।

मैं खड़ी थी 'मलंग को उसी बैन्ज पर बैठने को कहा - और पूछा -। तो उसका नाम क्या है ?

उसका चेहरा गुलाब सा खिल उठा। गालों के दो डिम्पलों ने चेहरे की चमक बढ़ा दी थी। वह हल्का मुस्कराया। ऑखे कुछ पल को कहीं खो सी गयी ' सिर को हल्के से पीछे कर उसने सीट से टिका दिया। और नाखूनो को दाँतों से कुतरते हुए बोला - उसका नाम किसी को नहीं बताते - -

क्यों?

लंबी सॉस ली और छोड़ते हुए बोला - उसकी शादी जो हो रखी है।

मैं निःशब्द ' उस प्यार की गहराई का एहसास कर पा रही थी। दो जोड़ी आँखे एक साथ पनीली हो गयी थी। मलंग मेरी ओर देखरहा था। मैं अपने को संयत करने के प्रयास मे दूसरी ओर ।

अन्तस की सारीशक्ति को संगठित कर मैंने आत्मविश्वास के साथ उसकी आँखो मे देखते हुए बोला - तो अब जो तुम यहाँ हो। वह ठीक है, ? बोलो - -

सोचना। मैं तुमसे कल बात करुँगी।

दूसरे दिन। वार्ड में घुसते ही मैने देखा ' दो वार्ड ब्या ए। मलंग को पकड़े इ।सी।टी ( इलेक्टिक शॉक थैरेपी ) रूम मे लेजा रहे थे। मलंग बुरीतरह से गालियाँ दे रहा था उसका अपने ऊपर कोई नियंत्रण न था। एक सभ्य सी महिला वही उसके पलंग के पास सुबग रही थी ।

मैं ने एक गिलास पानी उन्हें पिलाया ' कंधो पर हाथ रख सान्त्वना दी ' वह ठीक हो जाएगा। साथ ही अनुरोध किया कि बाहर आकर बात करें ।

वह, सभ्य महिला। मलंग की बड़ी बहन मोहिनी थी। I मोहिनी ने बताया दो साल पहले प्यारी ( उन के प्यारे मलंग को जो प्यार करे वो होगी ही प्यारी ' सो सारा परिवार उसे इसी नाम से पुकारता था ' - ऐसा मोहिनी ने बताया ) के घर वालों ने उन्हे धमकी दी कि मलंग को जिन्दा चाहते है। तो प्यारी की शादी शान्ति से हो जाने दे, वे रसूख वाले लोग थे हमलोग डर गए और एक महीना प्यारी की शादी होजाने तक उसे कमरे में रखा। शुरुआत के कुछ दिन। वह बहुत चिल्लाया। धीरे-धीरे वह शान्त रहने लगा ' हमेशा चेहरे पर एक मुस्कान रखता ,कभी कभी कहता कबतक बंद रखोगे ?। '

जिस दिन वह कमरे से बाहर आया। सबसे पहले उसने प्यारी को फोन लगाया। फोन ऑफ दिखा रहा था। दो दिन बिना किसीसे बोले वह प्यारी को दूंढता रहा। प्यारी के घर से मार कर भगा दिया गया और तब डरते डरते उसके दोस्त राघव ने प्यारी की शादी की बात बता दी ।

मोहिनी रोते हुए बोली। ' वह बदहवास सा घर आया था, सबके ऊपर खूब चिल्लाया। हम सब को दोषी करार देकर उसी कमरे मे खुद को नज़रबद कर लिया न खाना खाया न बात की । दो दिन होगए तो माँ ने धीरेसे उसके कमरे में झांका और धीरे से खाने केलिए अनुनय विनय की ' उसने माँ को भरी ऑखों से देखा और सामने ही नस काट दी ' चाकू पता नहीं कब कहाँ से ले आया था

माँ तो चीख कर वहीं बेहोश हो गयी थी।... I मोहिनी दो मिनट चुप हुयी फिर बोली उसी हालत में इसे यहां ले आए थे। मोहिनी ने पूछने पर बताया कि प्यारी के घर वालो की धमकी के बारे में मलग को कुछ नही पता क्योकि तब से उसने पूरे परिवार सेबातचीत बंद करदी ' किसी को भी देखता है तो चिल्लाना शुरू करदेता है। मैंने मोहिनी को धन्यवाद कहकर विदा ले ली।

मलंग का हिसाब बतादें - काउन्टर से आती आवाज़ ने उसके पैरों को उसी दिशा में मोड़ दिया ।. मलंग के पिता रामेश्वर एक सरल किसान थे ' बच्चे का पढ़ने में चाव देख खेत का एक हिस्सा बेच कर लखनऊ में बीटेक के लिए मलंग को लिवा लाए थे, अब पछता रहे थे रोते हुए हाथ जोड़ करपूछ बैठे - सिस्टर। मलंग ठीक तो हो जाएगा न?

सान्त्वना दे ने के पश्चात रामेश्वर ने बताया दो चार दिन में शायद मलंग का डिस्चार्ज होजाएगा ' हूं। क्या आप बताएंगे दो साल पहले आखिर हुआ क्या था ? मैनें अनुरोध सा किया ' ।

प्यारी। भी वहीं से बीटेक कर रही थी जहा से मलंग । मेरा मलंग जमाने के ताप से अलग सरल लड़का था प्यारी उसे अच्छी लगती थी लेकिन वह कभी आगे बढ़कर बात तक न कर सका. उसका शर्माना प्यारी को बहुत भाया वह उससे अकसर चुहल करती मोहिनी हँस हँस कर मलंग से सब उगलवा लेती ' धीरे धीरे शायद वह भी मलंग को पसंद करने लगी थी। एक दिन उसने मलंग को पास के पार्क में बुलवाया। था तो ज़वान लड़का ही। मना न करसका ' पार्क में दूरसे ही प्यारी ने हैलो किया था उसके जवाब देते ही चार लठैत उसपर टूट पड़े थे। वे उसे घसीटते हुए थाने ले गए और लड़की को फंसाने व परेशान करने का केस लगा दिया। ' पीछे पीछे दौड़ती प्यारी मेरे पास आते ही ' पत्थर लगने का बहाना करते हुए झुकी और बोली - मैं अपने भाई के सामने कुछ न कर पाऊँगी। मलंग को कहिएगा मेरा उससे कोई नाता नही ' आप मलंग को बचाएं ।

मलंग ने दोबारा आत्म हत्या का प्रयास क्यों किया ' इसका उत्तर उनके पास न था। मैंने धन्यवाद केसाथ विदा ली।

मलंग के दुबारा आत्महत्या करने का कारण ही उसके ईलाज में मील का पत्थर साबित होता। सच केवल मलंग जानता था। इस सच का उद्‌घाटन उसे बचा भी सकता था और डूबा भी सकता था।

लेकिन नियति भीकमाल होती है। ये जीवन में प्रश्न उसके उत्तर के साथ लाती है।

दोदिनबाद ही मुझे मेरा उत्तर - मलंग का सत्य मिल गया।

उस दिन मीशा मैम एक एन। जीं ओ। ( N। G। 0. ) की अध्यक्षा , रजनी मैम को एक प्रोगाम के लिए आमंत्रित करने आयी थीं। इधर उन्होंने प्रवेश द्वार के अंदर कदम रखें , उधर , मलंग चाय लेने के लिए कैंटिन की ओर बढ़ा ' मैं , पानी लेने के लिए बोतल हाथ मे थामे, सीढियां उतर रही थी कि मीशा मैम को मलंग औचक हो देखने लगा। मीशा मैम सीढ़िया चढ रही थी मैं जबतक नीचे आ पाती मलंग पीछे मुढ़ कर मीशा मैम को देखते देखते जमीन पर बैठ गया और फूट फूट कर रोने लगा वह लगातार रोता रहा तब तक अस्पताल के स्टाफ ने उसे पकड़कर बैंच पर बिठाया मॅने जल्दी से बोतल से पानी पिलाया और प्यारसे मलंग से पूछा क्या हुआ । मुझे नही बताओगे ? मलंग -

' तुम्हें क्यो कुछ बताए ' सिस्ट र कहने से सिस्टर थोड़ी बन जाओगी? अपना काम करो ' थोड़ा सा कुछ बता दिया तो खुद को बड़ा डाक्टर समझने लगी । '

अप्रत्याशित व्यवहार देख मैं पीछे हट गयी ' कुछ ऐसा था जो उसे पुनः भीतर तक भेद गया था।

मलंग को ट्रीटमेंट के लिए अंदर ले जाया गया।

डा ० रजनी मैम ने बताया ये केवल असफल प्यार या आत्महत्या के प्रयास का मामला न था. उसे पैनिक एंजायटी की समस्या थी दौरे भी आते थे और वह ओ।सी।डी। ( आब्सेसिव कम्पलसन डिसआर्डर ) से भी पीड़ित था कभी कभी उसे विभ्रम भी होता था कि प्यारी उसे बुला रही है ।।

प्रेम। जो जीवन का सत्व होता है। अपने चरम स्तर पर मलंग के लिए घातक विष बन चुका था।

दूसरे दिन। वार्ड में मलंग अपने बिस्तर पर निढाल पड़ा था। कुछ ' दवाओं का असर था , कुछ उसकी अस्थिर मानसिक स्थिति ने उसे सुस्त कर दिया था । मलंग की अधखुली आँखे देख मॅने धीरे से पास जाकर कहा 'गुडमार्निग। मलंग ।

कुछ स्फुट सा उसे सुनाई दिया सॉरी सिस्टर

इटस ओ।के। मलंग ' मॅने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।

सोनजुही सी जगमगी, अंग-अंग जोवनु जोति ।

सुरंग कुसुंभी चुनरी। दुरंगु देहदुति होती । ( कवि बिहारी का दोहा )

 चलते चलते मेरे पैर रुक गए। हाईस्कूल में पढ़े बिहारी के दोहे का सार आज समझ में आ रहा था। - साथ ही समझ आरहा था कि मलंग प्रारम्भ से पढ़ाई के प्रति सजग रहा होगा।

मलंग बराबर आँखे बंद किए बोलता जा रहा था -

उसदिन , दुर्गा मेले में वह बिल्कुल ईशा मैम सी दिख रही थी, चौड़े लाल बार्डर की सफेद साड़ी। गले मे लंबी माला कानों में बड़ी वाली झुमकी हाथों मे ढेर सारी चुड़िया बड़ी बड़ी दोऑखो के बीच दिलको चुराने वाली लाल बिंदी - -। इन दुखिया अखियान कौं। सुख सिरजोई नाहिं।

देखत बनै न देखते। बिन देखे अकुलाहि। । (बिहारी दोहा)

कहते कहते मलंग ने धीरे से पकड़ी उसकी ऊंगली छोड दी थी

उसका संकेत समझ मै ने उसे आराम करने दिया लेकिन मेरे मन में भी बिहारी वाचाल हो उठे थे -

नाहिंन ये पावक प्रबल। लुए चलति चहु पास ।

मानो विरहवसंत के, ग्रीषम लेत उसास ॥ (बिहारी )

मलंग को सामान्य होने में चार से छः दिन लगे ' मेडिकेसन मेडिटेशन ' काउन्सलिंग। थैरेपी सभी चरणों के सकारात्मक प्रभाव से मलंग सच को स्वीकार करने की कोशिश कर रहा था। परिवार के प्रति प्रेम व विश्वास लौटने लगा था , मलंग ने उससे वादा किया था कि वह लौटकर अपनी पढ़ाई पूरी करेगा ' रामेश्वर जी ने उसे बताया कि मलंग शिमला में मामा के यहाँ जाकर उनके बागानो की देखभाल में हाथ बंटाएगा , एक्टिविटी वर्कशॉप में मलंग के पेन्टिग का हुनर उजागर हुआ था। मैंने उससे कहा। कि वह पेटिंग करता रहे ।

मलंग के सुखद भविष्य की कामना करते हुए मैने मनोचिकित्सालय को बॉय कहा वह मेरा ट्रेनिंग का अन्तिम दिन था।

चार साल बाद

मुझे मीशा मैम ने सशक्त नारी संस्था के वैलेंटाइन विशेष कार्यक्रम में अवसाद और सकारात्मकता पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया था ।

सरसों के खेतो से घिरा वह भवन गेंदे व गुलाब के फूलो के पंक्तिबद्ध गमलो से व्यवस्थित बड़ा ही व्यवस्थित और मनमोहक लगरहा था ।' मंदिम लाल व नीले रंग की रोशनी छोटे से पंडाल को रूमानी रंगत दे रही थी। सारा समां जैसे किसी प्रेमी जोड़ी का पलके बिछाए इंतजार कर रहा था।

कार्यक्रम की शुरुआत। रैम्प वाक फैशन शो से हुयी, दिशा शो स्टापर थी ' दिशा - मीशा मैम ने बताया था। बहुत ज़हीन लड़की है ' अपने पति के साथ मिलकर इसने संस्था को अलग ही मुकाम पर पहुंचा दिया है। हज़ारो को आत्मनिर्भर बनाया है ' कितने ही टूटे आत्मविश्वास को मंजिल का रास्ता बताया है - I

एक-एक कर परफार्मेंस हो रही थी। अंत मे आयी दिशा - जींस के साथ खद्दर के कुर्ते में फ्लोरल दुपट्टे को लहराती ' ढेरो। चूड़ियां पहने ' झुमते बालो के बीच गजरा और बड़ी बड़ी आँखो के बीच दिल चुराने वाली बिदी - सौन्दर्य के सारे प्रतिमानों को तोड़ती ' नई उपमाओं को प्रेरित करती -

पीछे पठानी सूट। व्यवस्थित दाड़ी ' स्टाइलिश बालो के साथ काला चश्मा लगाए गबरू जवान।.. घोषणा हुयी - तालियों से स्वागत करे - मलंग की वैलेटाइन दिशा का -- - - I पीछे से मंद मंद ध्वनि में चलती रोमान्टिक धुने और एक दूसरे मे खोते जोड़े की शानदार नृत्य प्रस्तुति - समां को सम्पूर्णता प्रदान कर रही थी।

मलंग - कुछ पुराने तार झंकृत हुए नहीं। नही ये वो नहीं होसकता ' ।

कार्यक्रम के पश्चात दोनो उसके पैर को छू कर उठे और चश्मा उतार कर मलंग बोला - सिस्टर निशा। आपयहाँ। सुखद आश्चर्य '

वही। जीवन से भरी चंचल आँखे। गालो मे पढ़ते वही डिम्पल कुछ स्पष्ट मुस्कराहट -- - - अरे ' ये वही तो है - मैंने ( जो सिस्टर निशा से मनोवैज्ञानिक निशा बन चुकीथी )झट से पास खड़ी मीशा मैम का हाथ पकड़ लिया। और

प्रसन्नता की एक सांस खींची और बोली वैल डन ( बहुत अच्छा ) ' कैसे हो मलंग ?

बढ़िया ' बस ' आपकाआशीर्वाद है। । इतने मे किसी के आवाज़ देने पर एसक्यूज़ मी प्लीज कह वह मुढ़ गया ' मीशा मॅम ने बताया इनकी कहानी भी बड़ी फिल्मी है। दिशा की शादी उसकी इच्छा के विरुद्ध कर दी गयी थी ' सालभर के अंदर एक लड़की भी हो गयी। पहली शादी की सालगिरह मनाने पतिपत्नी शिमला गए थे। पति दुष्यंत संस्कारी न था किंतु हद तो तब हो गयी जब इसने दिशा को भी इसमे घसीटना चाहा ' शिमला में वह जोरजबरदस्ती पर उतर आया तो दिशा लड़की को लेकर होटल से भागी। भागते समय मलंग से जा टकरायी। मजे की बात देखो, मलंग वही लड़का था जिसे दिशा शादी से पहले चाहती थी।

मलंग मामा के बागानों के फूल रात मेही होटल पहुँचाता था ताकि सुवह सुबह होटल को सजा सजाया जा सके।

मलंग , दिशा को मामा के घर ले आया और दिशा ने फोन करके परिवार वालों को सबकुछ बतादिया । 

अब 'मलंग प्राइवेट कंपनी में मैनेजर , उसकी पेटिंग ऊँचे दामों पर बिकती थी । वह एक नामी व्यक्ति था ' अनुभव और सफलता ने उसके व्यक्तित्व को और भी निखार दिया।

दिशा का दुष्यंत से तलाक होगया था दिशा भी सी.ए। ( चाट्रेड एकाउंटेट) बन चुकी थी । , अपनी गल्ती मानते हुए दिशा के।पिता ने उसकी शादी उसकी पसंद मलंग से करवा दी 'मलंग की तो मांगी मुराद पूरी हो गयी। बेटी का नाम दोनों ने प्यार से ' प्यारी ' रखा है।

इतने में दूसरी कार्यक्रम की घोषणा होनेलगी -

अब प्रस्तुत होने जा रही है वैलंटाइन विशेष लघु नाटिका - प्यार ही जीवन का संगीत प्रस्तुतकर्ता हैं- - दिशा का मलंग और मलंग की दिशा -

स्टेच पर फैली गुलाबी रोशनी और बादलो के फाग के बीच मलंग ने नीचे बैठ कर दिशा का हाथ अपने हाथ में ले लिया था। दो पल दोनों एक दूसरे को देखते रहे ' -

कभी तुम मेरी कलाई पर कटे निशानो के रूप में मेरी जिन्दगी में शामिल थी ' आज माथे पर किस्मत की लकीरो की भांति काबिज़ हो। तुम मेरी पेन्टिंग हो तुम मेरा सुर हो देखों मुझे चारों ओर से संगीत सुनाई देरहा है, झरने के कल - कल में। कोयल की कुहू में। प्यारी के बोलों में ' सर्वत्र तुम ही हो दिशा। मैं दिशामय हो गया हूँ। तुम मेरा संगीत हो ' मेरे जीवन की नाद ये सगीत युगो - युगो तक सम्पूर्ण बह्माण्ड में निनादित होता रहेगा - आदिम युग तक मेरा साथ दोगी न - -। दिशा चुपचाप स्वीकृति में अपना सिर मलंग के कंधे पर रख देती है। पर्दा गिर जाता है ' तालियो की गड़गड़ाहट देर तक गूंजती रहती है ' सच्चे प्यार की महक सबको सुवासित करते हुए सम्पूर्ण वातावरण को पवित्र करदेती है ।

मै उलझन में हूँ। क्या मलंग प्यारी को भूल गया ' क्या उसने। दिशा मे - ही प्यारी को पा लिया है ' कहीं वह फिर किसी झूठ के साए में जीवन जी रहा है ? जीवन के

 कई प्रश्न अनसुलझे होते है उन्हें वैसा ही छोड़ देना अच्छा नही होता क्या ?

विधि का विधान था - मलंग ने शिद्दत से जिसे चाहा था वह वैलेन्टाइन उसे मिलनी ही थी - प्यारी और कोई नहीं दिशा ही थी। दिशा ने बताया था।


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