होटल सनशाइन: कहानी मोहब्बत की

होटल सनशाइन: कहानी मोहब्बत की

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सात सालों के बाद आज अजय फिर से अपने शहर में था। बहुत दिनों से बेचैन मन को शायद पुरानी जगह जाकर ही सुकून मिले, यही सोचकर दफ्तर से कुछ दिनों की छुट्टी लेकर वो यहां चला आया था। एकबारगी सोचा अपने पुराने घर चला जाये लेकिन माँ-पापा के ना रहने पर अब वहां जाने की वो हिम्मत नहीं जुटा पाया। अपने एकलौते छोटे से बैग को कंधे पर टांगे वो बस स्टैंड से पुराने दिनों की तरह आज फिर यूँ ही चहलकदमी करते हुए निकल पड़ा अपनी खास सड़क पर और चलते-चलते अचानक ठिठक गया उस बोर्ड को पढ़कर जिस पर लिखा था- 'होटल ग्रैंड सनशाइन'।

अचानक ही इस नाम ने अजय को उसके अतीत में पहुँचा दिया।

तब ये सनशाइन इस छोटे से कस्बे का छोटा-मोटा एकलौता रेस्टॉरेंट हुआ करता था। अजय यहां अक्सर आता था चाय पीने 'उसके' साथ। वो जो अपने नाम की ही तरह ही थी जूही के फूलों जैसी खिली-खिली 'जूही'। चाय जूही को पसंद थी, और जूही अजय को। अजय चुपचाप होटल के अंदर चला गया और जूही की पसंदीदा चाय आर्डर कर एक कोने में बैठ गया। अतीत की सारी बातें एक-एक करके उसे याद आने लगी।


कॉलेज के बाद नौकरी मिलते ही अजय ने जूही को प्रपोज़ किया था और दोनों के परिवारों की सहमति से उन्होंने शादी कर ली। लेकिन अफ़सोस की ज़िन्दगी हिंदी फिल्मों की तरह सुखद अंत पर आकर नहीं रुकी। जो साथ पहले ख़ुशी देता था अब वही साथ दोनों को चुभने लगा। आए दिन दोनों के अहम् का टकराव और रोज़ के झगड़े आम बात होने लगी। जूही को लगता था अजय के जीवन में अब उसकी अहमियत नहीं रही, वो बस अपने काम और फोन में ही लगा रहता है, अजय को लगता कि दिन भर वो जूही के लिए ही तो काम करता है और दिन भर की थकान के बाद अपने हिसाब से थोड़ा मनोरंजन क्या बुरा है। जूही पति में प्रेमी और दोस्त को देखना चाहती थी जिससे वो पहले की तरह अपने दिल की तमाम बातें कह सके, मस्ती-मज़ाक कर सके लेकिन अजय और उसका रिश्ता बस एक-दूसरे की रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी करने भर ही सिमट के रह गया था। जूही के हिस्से में थी घर और रसोई की ज़रूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी और अजय के हिस्से घर चलाने की आर्थिक जिम्मेदारी। उनके बीच की थोड़ी-बहुत बातें भी बस इन्हीं ज़रूरतों के इर्द-गिर्द होती थी।

जूही भावनात्मक तौर पर खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगी थी। उसे उम्मीद थी कि अजय शायद उसके दिल का हाल समझेगा लेकिन कहीं से भी ऐसा होता नहीं दिख रहा था। अचानक ही एक दिन जब अजय दफ्तर से लौटा तो उसे जूही की चिट्ठी मिली,

"मैं हमेशा के लिए जा रही हूँ तुम्हें छोड़कर। जब एक घर में होते हुए भी हम अकेले है तो फिर हमारा एक-दूसरे से पूरी तरह अलग रहना ही सही है। तलाक के कागज़ों पर हस्ताक्षर करके वकील को दे दिए है। तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी। खुश रहना।"

एक पल के लिए अजय समझ ही नहीं पाया कि ये क्या हुआ? कैसे टूट गया वो घर जिसे उन दोनों ने प्यार से बसाया था? घर के हर कोने में सिर्फ और सिर्फ जूही की ही तो खुश्बू थी। पता नहीं कहाँ ग़लती हो गयी...!

सोचा एक बार जाकर जूही से बात करे लेकिन फिर उसका अहम् आड़े आ गया। "जब मैंने जाने के लिए नहीं कहा तो बुलाने क्यों जाऊँ? दिमाग ठंडा होगा तो खुद ही आ जायेगी।" यही सोचते-सोचते पता नहीं कब अजय की आँख लग गई।


अगली सुबह दरवाज़े की घंटी से अजय की आँख खुली। सामने वकील खड़ा था तलाक के कागज़ लेकर। अजय चुपचाप कागज़ लेकर अंदर आ गया।

कुछ देर देखता रहा उन कागज़ों को जो उसे मुँह चिढ़ाते हुए कह रहे थे "ये है तुम्हारी मोहब्बत का अंजाम जिसे जन्मों-जनम निभाने के दावे करते थे तुम।"

फिर उन कागज़ों के टुकड़े-टुकड़े करके उसने कूड़ेदान में फेंक दिए और खुद से बोला "जब अगली बार नोटिस भिजवायेगी तब देखा जायेगा" और दफ्तर चला गया। ऐसे ही सालों बीत गए। ना जूही आयी, ना तलाक का कोई नोटिस और ना अजय गया उसे वापस लाने।

"सर, चाय ठंडी हो रही है" वेटर ने जैसे अजय को नींद से जगाया।

"दूसरी चाय ले आऊं?" वेटर ने पूछा।

अजय ने ना में सर हिलाया और एक घूंट में चाय का कप खाली कर दिया। अजय को महसूस हुआ जैसे दूसरे कोने से कोई उसे घूर रहा है लेकिन नज़रअंदाज़ करके वो रिसेप्शन पर पहुँच गया अपने लिए एक कमरा बुक करने। इस वक्त वो अकेला रहना चाहता था। कमरे में जाते ही अजय की आँखों से आँसू बहने लगे। आज उसने इन आँसुओ को नहीं रोका जो उसके सीने में जाने कब से दफ़न थे। उसका दिल उससे बस एक ही बात कह रहा था "काश, तुमने ही पहल कर ली होती रिश्ते को बचाने की तो आज तुम यूँ तन्हा ना होते।"

उसकी तरफ उम्मीद से देखती जूही की उदास आँखें उसे याद आने लगी, बहाने खोज-खोजकर उससे बात करने की जूही कि कोशिशें, कभी उसे चिढ़ाना, हंसी-मज़ाक करके उसके तनाव को दूर भगाने की कोशिश करती जूही, और बदले में अजय का उस पर झल्ला उठना, "मुझे नहीं आता मुँह में मुँह सटाकर बातें करना" कहकर अपना मोबाइल लेकर दूसरे कमरे में चला जाना सब याद आ रहा था अजय को।

कुछ देर बाद अजय के कमरे की घंटी बजी और उसका ध्यान टूटा। वो गुस्से में उठा वेटर को डाँटने के लिए की "डोंट डिस्टर्ब" के आदेश के बाद भी कोई क्यों उसे परेशान कर रहा है।


पर दरवाज़ा खोलते ही ठिठक गया। सामने तो वही खड़ी थी 'उसकी जूही'। जो अब पहले की तरह खिली-खिली नहीं थी, मुरझा चुकी थी। अजय जैसे जूही को देखते ही एकदम बुत बन गया। अंततः जूही ने ही कहा "अंदर आ जाऊँ मैं?" लड़खड़ाई आवाज़ में अजय बोला "हाँ-हाँ आओ ना।"

अंदर आते ही जूही ने कहा "कहाँ है तुम्हारी पत्नी? उन्ही से मिलने आई हूँ।" "क्यों क्या करोगी तुम मिलकर? और तुम्हें कैसे पता चला मैं यहाँ हूँ" अजय ने पूछा। जूही डूबती सी उदास आवाज़ में बोली "मैं तो रोज आती हूँ यहाँ चाय पीने और पुराने दिनों को याद करने। इसलिए रेस्टॉरेंट में देख लिया मैंने तुम्हें लेकिन तुम नज़रअंदाज़ करके चले गए। अकेले थे तो लगा तुम्हारी पत्नी शायद कमरे में होंगी इसलिए बस यूँ ही मिलने चली आयी।

अजय ने जवाब दिया "ओहह, मैं परेशान था उस वक्त इसलिए ज्यादा ध्यान नहीं दिया" और फिर जूही को आईने के सामने खड़ा करके कहा "लो मिलो मेरी एकलौती पत्नी से।"

जूही को ये सोचकर झटका सा लगा की क्या सचमुच अजय ने दूसरी शादी नहीं की?

किसी तरह खुद को संयत करते हुए जूही ने कहा "ये क्या मज़ाक है? मैंने तुम्हें देखा था पिछले साल दिल्ली में एक महिला के साथ जब तुम किसी फंक्शन में उसके साथ मिलकर मेहमानों का स्वागत कर रहे थे।" अजय हैरान सा जूही को देख रहा था।

उसने कहा "तो तुम उसी दिन क्यों नहीं आयी मिलने? काश की तुम तब ही आ जाती।"


जूही ने कहा "तुम बहुत खुश लग रहे थे। तुम्हें टोकना ठीक नहीं लगा।"

"मुझे टोकना तुम्हारा हक़ था और आज भी है।" अजय ने जवाब दिया।

"हाँ, मैं उस दिन खुश था क्योंकि मुझे बड़ा प्रमोशन मिला था और बॉस के अचानक शहर से बाहर जाने के कारण मैं उनकी पत्नी के साथ दफ्तर की पार्टी में मेहमानों का स्वागत कर रहा था।"

ये सुनकर जूही को एक और झटका लगा। इतने साल उसने बस इसी ग़लतफ़हमी में बिता दिए की उसका पति उसे भुलाकर अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गया है। एक बार भी उसने उससे खुलकर बात करने की कोशिश तक नहीं की। घर तो वो खुद अपनी मर्जी से छोड़कर आयी थी।

जूही की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने कहा "माफ़ करना मुझे ग़लतफ़हमी हुयी और उठकर जाने लगी।"

अजय ने जाती हुई जूही का हाथ पकड़ लिया और रुआंसी आवाज़ में बोला "बस बहुत हुआ। अब मत जाओ फिर से मुझे छोड़कर। माफ़ कर दो मुझे। अब शिकायत का मौका नहीं दूंगा।"

जूही उसके आँसुओं को पोंछते हुए उसके सीने से लग गयी और फूट-फूटकर रोते हुए कहा "तुम भी माफ़ कर दो मुझे। मुझे घर नहीं छोड़ना चाहिए था।"

आँसुओं के साथ दोनों के तमाम गिले-शिकवे बह गए जो इतने सालों से दोनों ने अपने अंदर जमा करके रखे थे।

थोड़ी देर के बाद जब दोनों शांत हुए तो अजय ने जूही से कहा "कैसी मुरझा गयी हो तुम। लगता ही नहीं मेरी वही खिली-खिली जूही हो।"

जूही बोली- "तुम्हारे प्यार के शीतल जल के बिना कैसे खिली रह सकती थी तुम्हारी जूही। अब आ गए हो न फिर से खिल जाऊंगी।"

और दोनों हँस पड़े।

एक-दूसरे का हाथ थामे जब अजय और जूही होटल से बाहर निकले तो शाम का सूरज कुछ अलग ही लालिमा बिखेर रहा था।

मानो कह रहा हो- सनशाइन में आकर फिर से मिले हो, अब हमेशा साथ में ऐसे ही शाइन करते रहना।


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