हिमानी काव्य संग्रह का विमोचन
हिमानी काव्य संग्रह का विमोचन
कुछ वर्ग मित्रों ने एडी- चोटी का जोर लगाकर, वर्ग मित्रों का पुनर मिलन कार्यक्रम आयोजित किया था.उस में लगभग सभी वर्गमित्र इक्कठा हुए थे. इस कार्यक्रम में उन्होने उनके समय के जीवित गुरुजनों को भी आमंत्रित किया था.उसी कार्यक्रम में एकसठवीं का भी सामुहिक कार्यक्रम था. उनका एक मित्र स्वास्थ खराब होने के कारण अनुपस्थित था. लेकिन वह सभी के आंखो का तारा था. उसके द्वारा भेजा गया संदेश गुनवंता पढ चुका था.श्रीकांत का प्यार भरा और मानवी भावनाओं से औत-प्रोत संदेश पढने के बाद ,महोल थोडा गंभीर हो गया था. तभी रीना ने माईक को दुबारा संभाल लिया था. सभी मित्रों के उपर अपनी नजर घुमाते हुयें, उसने हलकी मुस्कान के साथ कुछ कहना आरंभ किया था.
रीना: "आज के कार्यक्रम की विशेष बात जो सबको चौका देने वाली हैं,वह कहने से पहिले. आप सभी जानते हैं कि हम सब ने अपने-अपने क्षमता से अपना- अपना कार्यक्षेत्र चुना और उस में सभी सफल होकर, सभी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. सभी को कोई ना कोई शौक, हाँबी होती हैं. लेकिन ज्यादातर ये शौक सिमित होते हैं. लेकिन हम में से एक मित्र ऐसा हैं, जीसने अपने शौक को एक काव्य संग्रह में बदल दिया. उस कवि नाम हैं, अरुण. आप सब तालीयां बजाकर उसका स्वागत करे. साथ में उनके करिबी मित्र, पदमनाभन को भी मैं आमंत्रीत करती हूं क्योंकि आज उसके काव्य संग्रह का विमोचन उसके द्वारा किया जायेगा !"
पदमनाभन : "मुझे, मेरे मित्र द्वारा रचित काव्य संग्रह का विमोचन करने का अवसर प्राप्त हुआ हैं. आज मुझे बेहद खुशी हो रही हैं कि मेरा मित्र विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करते हुयें, साहित्य के क्षेत्र में भी पकड रखता हैं. उसके द्वारा , कई विज्ञान पर लिखे लेख विभाग के पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये हैं. मैं, इस अवसर पर उसे यह कार्य आगे भी जारी रखें,और साहित्य की दुनीयां में अपनी पहचान बनायें, ऐसी शुभकामनायें, मेरे मित्र को आप सभी मित्रों के शुभकामनायें साथ इस मंच से देना चाहता हूं.उसके बाद पदमनाभन द्वारा अरुण के काव्य संग्रह जीसका नाम “हिमानी ”बहुभाषि काव्य संग्रह का विमोचन किया गया था."
रीना : "इस काव्य संग्रह की प्रेरना अरुण को कैसे मिली ,इस पर प्रकाश डालने हेतु में उसे फिर से आमंत्रित करती हूँ ."
अरुण : "धन्यवाद रीना. मित्रों और गुरुजनों को मेरा आग्रह है की वे मेरा काव्य संग्रह को अभी ना पढे. मैं सभी को एक-एक काव्य संग्रह की कॉपी देने वाला हुं. मित्रों के साथ बाते करते-करते, कभी भाषण प्रतियोगीताओ में, या कार्यालय के सेवानिवृत्त सहयोगीयों के बिदाई पार्टी में भाषन देते समय छोटी-मोटी तुकबंदीया, भाषन को प्रभावशाली होने के लिए कुछ पंक्तिया पढता था. उसे काफी सराहा जाता था. कुछ मित्र और सहेलीयाँ भी उसे पसंद करती थी. फिर में कुछ ज्यादा बडी पंक्तिया पढने लगा. इन पंक्तियों का स्थान फिर कविताओं ने कब ले लिया इसका पता भी मुझे नहीं चला था. सेवा निवृती के पश्चात मैंने देखा की जो कविताओं के रचनाओं की तादाद बहुंत हो गई थी. यह चर्चा ,मैंने , अपने मित्रों से की. उन्होने सलाह दी की तु एक कविता संग्रह का प्रकाशन कर ले.और इस कार्यक्रम का भी मुझे अवसर मिला था. तब मैंने अपना मन बना लिया कि कवितासंग्रह प्रकाशन करना ही हैं. मेरे तरफ से अपने मित्रों को उपहार के त्यौर पर यह कविता संग्रह भेट दूंगा !. मुझे उम्मीद हैं यह मेरा छोटा सा साहस आपको निश्चित ही पसंद आयेगां !. आप इस कविता-संग्रह का हमेशा आनंद ले. इस कारण, मेरी याद, आप ,अपने अंतीम सांस तक अपने दिल में बनायें रखेगें !. मेरी इस छोटी सी पहेल को पसंद करने के लिए आप सभी को तहे दिल से अग्रिम धन्य्वाद. इसी के साथ मैं आगे के कार्यक्रम के संचालन के लिए माईक रीना को सौंपता हुं.
रीना: आज के कार्यक्रम में उपस्थित सभी हमारे प्रिय गुरुजनों का मैं फिर से स्वागत करती हुं. आज के इस अनोखे समारोह के अध्यक्ष श्रीमान बदनोरे सर को मैं हमे मार्गदर्शन करेने हेतु आमंत्रीत करती हूँ ."
बदनोरे सर : "आज इस कार्यक्र्म में आकर मुझे बेहद खुशी मिली है. इतने सालों बाद भी आपने, अपने गुरुजनों और वर्गमित्रों को याद किया, एक -दुसरे से प्रत्येक्ष मिलने के लिए इस भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया हैं. जब से इस कार्यक्रम में मुझे आमंत्रीत किया गया था. अरुण,गुनवंता, श्रीकांत, किशोर और अन्य मित्र ने. इस कार्यक्रम के जानकारी मुझे दी. उसी दिन से , मैं आप के बैच के सभी सदस्यों को याद करने का प्रयास कर रहा था. आज इस कार्यक्र्म का भव्य आयोजन देखकर मुझे अरुण,गुनवंता, श्रीकांत, किशोर और अन्य, मेरे छात्रों के उस समय उन्होने स्कूल के कार्यक्रमों में, वो , जो योगदान देते थे, वो मुझे धीरे- धीरे याद आने लगा था.. जब भी कोई स्कूल में कार्यक्र्म रहता था, ये मेरे छात्र हमेशा आगे रहते थे. जीतने पढाई और अन्य गतीविधीयों में शामिल रहते थे. उतने ये बदमाशी भी किया करते थे. लेकिन इनकी अछाई के कारन हम सभी गुरुजन इन्हे अन देखा करते थे. गुरुजनों का सम्मान उस कालखंड के विद्दार्थी जीतने करते थे. वो आज नहीं दिखाई देता. समय के साथ वह संस्कृती शायद खत्म होती जा रही हैं. शायद , इसी लिए आज मैं आप जीस मकाम पर पोहंच कर सेवानिवृत्त हुयें देखा रहा हुं. मुझे यह विश्वास हैं कि आज के कार्यक्रम से नये पिढी के विद्दार्थी कुछ सीख लेगें. इसके बाद एक –एक करके सभी गुरुजनों ने हमे मार्गदर्शन किया था."
माननीय सावरकर सर : "सर ने अरुण के काव्य संग्रह की विशेष तारीफ की थी. उनका कहना था. कवितायें तो बहुंत सारे करते हैं, लेकिन उनके विषय, विशिष्ट और सिमीत होते हैं. लेकिन अरुण द्वारा जो कवितायें विभीन्न विषयों पर लिखी हैं. जो गहराई विषय में विविधता साथ दिख रही हैं. उससे पता चलता हैं कि उसने अपने ज्ञान का क्षेत्र को काफी व्यापक किया है. ऐसे ही प्रयास को आगे भी जारी रखने के लिए उन्होने अरुण को शुभकामनायें दी थी.
लग-भग सभी गुरुजनों ने हमारे उर्वरित आयुष्य सुख मय हो. इसके लिए अपने आशीर्वाद हमे दिये थे. मार्गदर्शन कार्यक्रम खत्म होने के बाद ,रीना द्वारा भोजन तैयार है की घोष्ना की गई थी. सभी मान्यवर गुरुजनो को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था. भोजन के पश्चात , सभी गुरुजनों को ,अगर वे रुख सकते,तो रुखने का आग्रह किया गया था.लेकिन उनके उम्र को देखते हुयें,उन्होने जाने की इच्छा व्यक्त करने के कारण, हम सभी ने उन्हे भावयुक्त बिदाई दी थी.
उन्हे सभी ने समय, स्नेह, उपयुक्त मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद दिया था.और उनके सफल जीवन के लिए प्रकृतिसे प्रार्थना की थी."
