गुलाब की पंखुरी
गुलाब की पंखुरी
माता का भव्य भवन सजा था ।माता की जय जयकार के साथ सब झूम रहे थे।जयकारों के साथ साथ पुष्प वर्षा, वातावरण को बेहद सुगंधित और मनमोहक बना रही थी।
मैं शांत मुद्रा में बैठ कर कीर्तन का आनंद ले रही थी कि तभी एक गुलाब का फूल मेरी झोली में आ गिरा।
माँ का आशीर्वाद मुझे मिल गया,सोच पुलकित हो उठी।
अपलक उस सुंदर फूल को निहारते निहारते पता ही न चला, कब मैं अपने अतीत में पहुंच गई।
18 वर्ष की थी जब मुझे मेरे पति ने पहली बार गुलाब दे कर अपने प्यार का इज़हार किया।
मैने भी घर वालों की बिना इज़ाज़त के उन्हें अपने प्यार की स्वीकृति दे दी।
पर घरवालों के डर की वजह से गुलाब उन्हें वापिस लौटा दिया और निशानी के तौर पर सिर्फ एक गुलाब की पंखुरी छिपा के अपनी किताब में रखली।
इन्होंने मेरी हां के बाद रिश्ता भिजवाया ,तो सभी ने हामी भरदी। सबकी रज़ामन्दी के बीच हमारी शादी धूमधाम से संम्पन्न हो गयी।
एकवर्ष के बाद बहुत ही प्यारे ,सुंदर बेटे ने जन्म लिया।
पर अफसोस वो एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त था।
जैसे जैसे वो बीमार होने लगा, मैं भी चिन्ता से मुरझाने लगी, और एक दिन वो बेटा काल का ग्रास बन ही गया।
ये खबर सुनते ही मैं बेहोश हो गयी,कुछ घण्टो बाद जब आँखे खुली तो मेरे बेटे की मृत देह के ऊपर गुलाब के फूलों की
और गुलाब की पंखुड़ियों की चादर बिछी थी।
बस पत्थर हो गयी थी मैं वही फूलों की खुशबू मन को बिल्कुल भी नहीं भा रही थी ।
बहुत समय बाद मंदिर गयी, तो पुजारी जी ने फिर गोद भरने का आशीर्वाद दे गुलाब के फूल सँग खुशबू बिखेरती पंखुड़ियां भी डाल दी।
अब मैं दुख के आँसू बहाती, उसके लिए जो चला गया था या फिर से आने वाले कि उम्मीद लगा खुशी मनाती
ज़ोर से माँ के जयकारों की आवाज़ से मैं अपने अतीत से बाहर आई और हैरान होने लगी।
की एक गुलाब की पंखुरी ने मेरे जीवन मे कितने किरदार निभा दिए।
कभी ये मेरा पहला प्यार बनी,
कभी ये, कभी न भूलने वाला अवसाद बनी।
कभी ये आशीर्वाद बन मेरे मन मे आशा की किरण जगा गयी
और कभी झोली में बैठ मेरे कड़वे मीठे समय की गवाह बन गयी।
ऐ गुलाब तूने जीवन में क्या क्या किरदार निभाया है
कभी दुल्हन के बालों का श्रृंगार बना, कभी अर्थी में सजाया है
कभी प्यार परवान किया, कभी मंदिरों में सजा
कभी आशीर्वाद बन सबका उजड़ा चमन महकाया है।
