परवरिश
परवरिश
"एक मासूम बच्चा....जिसके जन्म के एक दिन पहले उसके पिता की मृत्यु हो जाए"।उसके जन्म की खुशी भला कौन मनाएगा"?माँ... अपने पति के मरने के ग़म में रो-रो के बेहाल बेचारी क्या खायेगी और मासूम बच्चे को क्या दूध पिलायेगी?जिस बच्चे के जन्म लेते ही उस पर बेचारा या मनहूसियत का ठप्पा लग जाए।उस की ज़िंदगी कैसी रही होगी?कितनी प्रश्नात्मक ज़िंदगी.......उफ्फ.....।
पर मुझे गर्व है ......कि वो मेरे पिता थे।पिता का सुख नसीब न होने के बावज़ूद भी उन्होंने हमें इतनी खुशियाँ दी जिनका हिसाब नहीं।इतना बड़ा ग़म का समन्दर दिल में रख,उसे बिना आँखों से छलकाए,हमारा जीवन खुशहाल रखा।वटवृक्ष कि भाँति हर हाल में....अडिग रहे ।हर अच्छी-बुरी परिस्थिति का डट कर सामना किया।हमें पढ़ाया-लिखाया।अच्छा इंसान बनाया।उसूलों के साथ जीते हुए, न उन्होंने हौसला खोया और न ही हमें खोने दिया।अच्छे संस्कार देकर हमें दूसरे घर विदा किया।अपने आँसुओं को कोरों में दबा,कितना पत्थर हृदय कर उन्होंने हमें विदा किया।जिससे कि हम दुखी न हों।दुखी हम तब हुए जब हमें अपने पिता की दर्द भरी दास्ताँ सुनी और सोचा कि कभी हमारे पिता का मन भी किया होगा कि उन्हें भी कोई कन्धे पर बिठा मेले ले जाता।जब वो ज़िद्द करते तो कोई उनकी भी ख्वाहिशें पलक झपकते ही पूरी करता।हर वक़्त साये की तरह साथ रहता।लाड़-प्यार करता।"दिल फट गया ये सोच की जो अच्छी परवरिश हमें मिली ,वो उन्हें कभी नही मिल पायी।
