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Rajnishree Bedi

Tragedy

4.7  

Rajnishree Bedi

Tragedy

अधूरी कहानी

अधूरी कहानी

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मेरे अचानक बीमार पड़ने से घर की दिनचर्या ही बदल गयी।बेटे को वक़्त नही दे पा रही थी। वो बोला- माँ आप बीमार होते हो तो मुझे बहुत डर लगता है। अगर आप को कुछ हुआ तो मैं भी मर जाऊँगा।

ये बात अपने बेटे के मुँह से सुन, मैं हैरान और रुआँसी हो गयी।

एक अनजाना भय सताने लगा पर मैं जल्द ही स्वस्थ हो, सब भूल गयी।

छोटी बिटिया और बेटे की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहने लगी।

बेटा छोटा होने के बाद भी मेरा बड़ा ध्यान रखता। दूसरी कक्षा के इम्तहान में उसे बहुत तेज़ बुखार हो गया।

उसे डॉक्टर के पास लेकर गयी,तो उसने कहा चिंता की कोई बात नहीं, वायरल है।

मैंने राहत की साँस ली। दवा लेकर घर आ गई।

रात में बुखार तेज़ होने पर मेरे पति

उसे दोबारा डॉक्टर के पास ले गए,उसने कुछ जाँचे लिख कर भर्ती कर लिया और कहा कि जब रिपोर्ट आ जाएगी तो बेटे को अस्पताल से छुट्टी दे देंगे।

अगले दिन 4 बजे तक छुट्टी नहीं हुई तो मैं बेटे से मिलने अस्पताल चली गयी।प्यारी सी मोहक मुस्कान के साथ, उसने मुझसे नज़रें मिलायी।

मैंने भी उसे प्यार से गले लगाया और बोली- राजा बेटा कैसा है।

आँखों में खालीपन लिए वो बोला, माँ आपने आने में इतनी देर क्यों लगाई, मैंने आपको रात भर की बहुत सारी बातें बतानी थी।

और हिचकी लेने लगा, वो आखिरी तीन हिचकी और मम्मी कह के उसका अंत हो गया।

रोज़ मर-मर के भी नहीं मर सकी उसके साथ, दूसरे बच्चे की परवरिश के लिए। 

शायद यही है हमारी अनकही..


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