ग़रीबी
ग़रीबी
छुटकी, अपनी माँ के साथ मालकिन की बेटी समायरा के जन्मदिन पर जा कर बेहद खुश थी।
उसकी पुरानी उतरन, जो छुटकी के लिए नई थी, पहनकर खुद को किसी परी से कम नही समझ रही थी।
वहाँ की सजावट, और समायरा की पौशाक उसे लुभा रही थी।
जो छुटकी के दिल दिमाग मे बसा, वो था जन्मदिन का खास केक, जो गुड़िया के आकार का था।
माँ के कान में धीरे से छुटकी ने अपने जन्मदिवस की तारीख पूछी।उसने मन रखने के लिए बोल दिया, अगले हफ्ते।
पिता से उसी केक की माँग कर बैठी छुटकी, के दिन नही कट रहे थे।
पिता रोज़ खिलोने बेचने जाते, लेकिन बारिश की वजह से ग्राहक नही आ पाता।
सातवें दिन बड़ी उम्मीद लिए पिता गए,
जन्मदिन भी आगया, छुटकी का ध्यान सिर्फ दरवाज़े पर था।पिता के आने का इंतज़ार था।
आखिर पिता आए, खिलौनों का भरा झोला कँधे पर और हाथ खाली देखछुटकी आँसू पीकर अन्दर चली गई, ग़रीबी को कोसने।
