गृहप्रवेश
गृहप्रवेश
लाल हवेली आज दुल्हन के जैसे सजी हुई थी। हवेली के एकलौते बेटे विवेक की शादी जो थी। बारात दुल्हन के साथ किसी भी वक़्त पहुँच सकती थी। नयी बहू के आगमन की सारी तैयारियां हो गयी थी। विवेक की शादी शहर के जाने -माने उद्योगपति की बेटी आरती से हुई थी।
"अरे, दुल्हन आ गयी। ",घर की औरतें बहू के स्वागत के लिए आ गयी थीं। सभी के मुँह पर एक ही बात थी कि ," राम -सीता की सी जोड़ी है। बहू तो एकदम चाँद का टुकड़ा है। बड़ी किस्मत वाली हो , विवेक की माँ। "
विवेक की माँ ने बहू और बेटे का आरता उतारा और फिर बहू को गृहप्रवेश के लिए कहा ," आओ बहू ,स्वागत है तुम्हारा ;तुम्हारे नए घर में। "
आरती ने जैसे ही अपना पैर उठाया ,उसने ऐसा महसूस किया कि मानो किसी ने उसका पैर कसकर पकड़ लिया हो। कलश छूने के लिए उठाया गया उसका पैर ,कुछ सेकंड के लिए हवा में ही ठहर गया था।
विवेक की माँ ने कहा ," क्या हुआ ,आरती बेटा ,कलश को गिराकर घर में प्रवेश करो। "
आरती ने कलश को अपने पैर से हल्का सा छुआ , लेकिन कलश तो फुटबाल के जैसे उछलकर दूर जाकर गिरा। सब तरफ अक्षत ही अक्षत बिखर गए थे। सारी औरतें आपस में कानाफूसी करने लगी थी। आरती का चेहरा एकदम से उतर गया था ,मानो चाँद को बादलों ने ढक दिया हो।
" कोई बात नहीं ,बेटा आओ। ", विवेक की माँ ने बात सम्हालते हुए कहा।
आरती ने अपने दोनों पैर आलता से भरी हुई परात में रखे और उसके बाद आरती ने अपने दोनों पैर बाहर निकाले और जमीन पर रखे . उसके बाद वह धीरे -धीरे कदम बढ़ाती हुई ,विवेक की माँ के बताये अनुसार पूजा के कमरे तक पहुँच गयी। उसने हाथ जोड़कर कक्ष में रखी ,राधा -कृष्ण की मूर्ति को झुककर प्रणाम किया। उसने जैसे ही सर उठाया ,उसने देखा कि कमरे की खिड़की पर लगा पर्दा धूं -धूं करके जल रहा था।
वह ज़ोर से चिल्लाई ," आग -आग। "
तभी विवेक की माँ ने कहा ," बेटा ,कहाँ आग लगी है ? यह तो दीपक जल रहा है। तुम्हें ज्यादा थकान और नींद पूरी न होने की वजह से कोई भ्रम हुआ होगा। जाओ ,थोड़ा आराम कर लो और कपड़े भी बदल लेना । "
"अरे सुमि ,भाभी को उनके कमरे में छोड़ आओ। ", विवेक की माँ ने उसकी चचेरी बहिन को कहा।
सुमि ,आरती को उसके कमरे तक ले गयी। "भाभी ,आप थोड़ा आराम करलो और फ्रेश हो जाओ। ",ऐसा कहकर सुमि चली गयी थी। आरती ने दरवाज़ा भेड़ दिया और अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गयी।
आरती ने अपने पैरों पर लगे आलता को हटाने की कोशिश की ,लेकिन आलता का रंग गुलाबी से लाल होने लगा। ऐसा लग रहा था ,"मानो खून बह रहा हो। "
आरती खून -खून चिल्लाते हुए बाथरूम से बाहर आयी। बाहर विवेक बैठा हुआ था। आरती को बदहवास स्थिति में देखकर विवेक ने पूछा ," खून ,कहाँ हैं खून?"
आरती ने अपने पैरों की तरफ इशारा किया ,लेकिन उसके पैर तो बिलकुल साफ़ हो गए थे। " मेरे पैरों पर खून लगा हुआ था। बाथरूम में भी फर्श पर खून ही खून है। आओ खुद चलकर देख लो। ",उसने रोते हुए कहा।
विवेक ,आरती के साथ बाथरूम में भी गया ,लेकिन बाथरूम बिलकुल साफ़ था।
" सब कुछ साफ़ है। कुछ नहीं ,तुम्हारा भ्रम था। रात को ठीक से सो नहीं पायी हो ,शायद इसलिए। ",विवेक ने आरती के गाल सहलाते हुए कहा।
"चलो ,मैं बाहर जा रहा हूँ। कुछ जरूरी पेपर लेने आया था ,लेकिन वह शायद पापा के पास हैं। तुम आराम करो। ",विवेक ऐसा कहकर निकल गया था।
आरती कपड़े बदलकर ,दरवाज़ा अंदर से बंदकर के ,बिस्तर पर आकर लेट गयी थी। आरती की आँख लगी ही थी कि , उसे दरवाज़े पर ठक -ठक की आवाज़ के साथ सुनाई दिया ," आरती ,आरती। "
उसने खड़े होकर दरवाज़ा खोला ,लेकिन बाहर कोई नहीं था। आरती ने गर्दन घुमाकर इधर -उधर देखा ,लेकिन वहां कोई नहीं था। "शायद कोई सपना देख रही थी। ",ऐसा सोचकर वह जैसे ही मुड़ी ,उसे लगा कोई साया उसके पीछे ,एकदम से भागकर गया है। उसने दोबारा इधर -उधर ,सब जगह घूमकर देखा लेकिन उसे बरामदे में कोई नज़र नहीं आया।
लाल हवेली की प्रथम मंज़िल पर उसका कमरा था। कमरे के आगे बहुत बड़ा बरामदा था। वह अपने कमरे में जाने के लिए जैसे ही मुड़ी ,उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया है और मरोड़ दिया है ।
"आऊच...",उस की चीख निकल गयी थी ,तब ही वहां सुमि आ गयी थी ," भाभी क्या हुआ ? आप चीखे क्यों "
" कुछ नहीं ,एक कॉक्रोच देख लिया था। ", आरती ने यह सोचकर बात पलट दी कि वह जब से यहाँ आयी है ,उसके साथ सब कुछ अजीब -अजीब हो रहा है , अगर उसने किसी को कुछ बताया तो एक तो कोई विश्वास नहीं करेगा और दूसरा कहीं ये लोग उसे पागल ही न मानने लग जाए।
"चलो ,भाभी। आपको सब लोग नीचे बुला रहे हैं। आपकी मुँह दिखाई की रस्म है। ",सुमि ने कहा।
"५ मिनट में चलती हूँ ,कपड़े थोड़े ठीक कर लूँ। ", आरती ने कहा।
" ठीक है ,भाभी। ",सुमि ने कहा।
"दीदी ,आप अभी थोड़ी देर पहले भी आये थे क्या ?",आरती ने पूछा।
"नहीं भाभी ,मैं तो अभी आयी हूँ। ",सुमि ने कहा।
आरती सुमि के साथ नीचे आ गयी थी। उस की मुँह दिखाई की रस्म अच्छे से हो गयी थी। और दूसरी रस्में निभाते -निभाते शाम हो गयी थी। आरती की सास ने कहा ," बेटा,तुम आराम करो। तुम्हारा खाना तुम्हारे कमरे में ही भिजवा दूँगी। बाद में तो हम सबको रोज़ साथ बैठकर ही खाना है। "
आरती अपने कमरे में आ गयी थी। वह अपने बिस्तर पर लेट गयी । तब ही उस का बिस्तर जोर -जोर से हिलने लगा था ,उसने सोचा कि भूकंप आया है शायद। वह अपने कमरे से निकलकर ,फटाफट सीढ़ियों की तरफ भागी और नीचे उतर गयी।
जैसे ही वह नीचे उतरी ,सामने से विवेक की माँ आते हुए दिखाई दी। " बेटा ,तुम्हें आने की जरूरत नहीं थी। अगर आना भी था तो ,कपड़े तो ठीक करके आती। ", विवेक की माँ ने प्यार से कहा।
"वो ,मम्मी ,मुझे भूकंप के झटके से महसूस हुए। ",आरती ने बोला।
आरती की बात ख़त्म होने से पहले ही विवेक की मां ने कहा ," तुमने कोई सपना देखा होगा। कहीं कोई भूकंप नहीं आया। "
हैरान -परेशान आरती ,अपने कमरे में चली गयी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है ?
आज आरती की सुहाग रात भी थी। आरती और विवेक के लिए कमरा सज गया था और सुमि ने आकर आरती को भी तैयार करा दिया था। लेकिन आरती अभी भी अपने साथ हो रही घटनाओं को लेकर विचलित सी थी। सजी संवरी आरती अपने विचारों में गुम बैठी हुई थी ,तब ही उसकी नज़र सामने शीशे पर गयी। उसे लगा शीशे में से कोई लड़की झाँक रही है। उसने अपने सर को झटका दिया और दुबारा शीशे की तरफ देखा ,लेकिन अब वहां कोई नहीं था।
थोड़ी देर में विवेक आ गया था। विवेक ने जैसे ही आरती के करीब आने की कोशिश की तो ,आरती ने कहा ,"विवेक ,मुझे थोड़ा समय और चाहिए। मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ। "
"ठीक है। मुझे भी कोई जल्दी नहीं है। सब्र का फल मीठा होता है। ", विवेक ने मुस्कुराकर कहा।
२ दिन बाद पगफेरे के लिए आरती का भाई लेने आया और आरती अपने मायके चली आयी। आरती जब तक अपने ससुराल में रही ,आरती के साथ ये अजीब सी घटनाएं होती रहीं।
मायके भी आकर आरती वही सब सोचकर थोड़ा गुमशुम और खोई -खोई थी। आरती अपनी दादी के बहुत नज़दीक थी। दादी ने जब आरती से उदासी का कारण पूछा तो आरती ने दादी को सब बता दिया और कहा ," दादी ,मुझे नहीं लगता कि यह मेरा भ्रम है। आज से पहले तो मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था। जब से मेरा गृहप्रवेश हुआ ,तब से यह सब शुरू हो गया। "
"बेटा ,पता नहीं ,तू मानेगी या नहीं। लेकिन मुझे लगता है ,कोई तुझे कुछ बताना चाहता है या तेरी मदद चाहता है। ", आरती की दादी ने कहा।
" फिर ,दादी वह ऐसे छुप क्यों रहा है?", आरती ने पूछा।
"वह कोई इंसान नहीं ,बल्कि कोई आत्मा है। भटकती हुई आत्मा , जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गयी हो। " दादी ने कहा।
" आप भी दादी कैसी बातें करती हो ?", आरती ने कहा।
" तब ही तो कह रही थी कि तू मानेगी नहीं। इस बार घर जाए तो जब ऐसा कुछ हो तो चिल्लाना मत ,बस प्यार से पूछना कि वह कौन है और क्या चाहती है। तू उसके क्या मदद करे। एक बार मेरे कहने से पूछना। "दादी ने कहा।
"सोचती हूँ दादी। ", आरती ने जवाब दिया।
अगले दिन आरती अपने ससुराल आ गयी थी। वह पूरे रास्ते भर दादी की बातें सोचती रही। ससुराल पहुंचकर सबसे मिलने -जुलने के बाद आरती अपने कमरे में चली गयी थी। अंदर पहुंचकर आरती आराम कुर्सी पर बैठ गयी थी। आरती के बैठते ही कुर्सी ऊपर की तरफ जाने लगी ,लेकिन आरती इस बार चिल्लाई नहीं और बोली ," तुम कौन हो ?तुम्हें क्या मदद चाहिए ? बताओ मुझे। "
आरती की आराम कुर्सी नीचे आ गयी थी। उसके सामने टेबल पर रखा पेन ऊपर हवा में लहराया और उसके बाद पेन दीवार पर चलने लगा। "यह गृहप्रवेश तुम्हारा नहीं ,मेरा होना चाहिए था। विवेक ने मुझसे शादी का वादा किया था ,मुझसे मुझ श्रेया से। "
उसके बाद पेन रुक गया था। आरती को श्रेया का नाम कुछ -कुछ जाना पहचाना सा लगा। उस को याद आया कि ," विवेक के कॉलेज की लास्ट डे वाली ग्रुप फोटो में उसने यह नाम देखा था। "
उसने दोबारा वह फोटो निकालकर देखा। श्रेया और विवेक पास -पास ही खड़े थे। अगले दिन वह विवेक के कॉलेज गयी और वहां से किसी तरीके से श्रेया के घर का पता मालूम किया। श्रेया का घर लगभग २ घंटे की डिस्टेंस पर दूसरे शहर में था। आरती ने घर पर किसी सहेली से मिलने जाने और शाम तक लौट आने का बहाना बनाया।
आरती श्रेया के घर पर पहुंची। श्रेया की माँ ने दरवाज़ा खोला। श्रेया के माँ के पूछे जाने पर आरती ने कहा कि ," आंटी ,श्रेया की दोस्त हूँ। कुछ सालों के लिए शहर से बाहर गयी हुई थी। अभी कुछ दिन पहले ही लौटी हूँ। "
"बेटा ,श्रेया ने कभी तुम्हारा ज़िकर नहीं किया। लेकिन वह अभी घर पर नहीं है। जब लौटेगी ,तब बता दूँगी। ", श्रेया की माँ ने कहा।
"कब लौटेगी ?कहाँ गयी ?", आरती ने पूछा।
"बेटा ,सात दिन हुए हैं। घर से यह कहकर गयी थी कि जरूरी काम है ,आकर सब बताती हूँ। ",श्रेया की मां ने कहा।
"कुछ विशेष बात हुई थी क्या उस दिन ?", आरती ने पूछा।
कुछ याद करते हुए श्रेया की मम्मी ने बताया ," हां ,उसके कॉलेज के कुछ दोस्त घर आकर गए थे। किसी विवेक के बारे में बात कर रहे थे। उनके जाने के बाद वह कुछ देर तक अपने कमरे में ही बैठी रही। फिर कोई शादी का कार्ड लेकर बाहर गयी थी। "
"आपने पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाई ?", आरती ने पूछा।
"गयी थी ,लेकिन उन्होंने डांटकर भगा दिया। अब मैं अकेली कहाँ -कहाँ जाऊं ? श्रेया के पापा होते तो ...................." इतना कहकर श्रेया की माँ रोने लग गयी थी।
" आंटी ,अब मैं श्रेया का पता लगाकर रहूंगी। ", आरती ने कहा।
आरती समझ गयी थी कि श्रेया को गायब करने में विवेक का ही हाथ होगा। विवेक ने अपने पैसे और रसूख के दम पर पुलिस को भी खरीद लिया होगा।
आरती ने घर लौटकर विवेक से बातों -बातों में पूछा ," तुम्हारी दोस्त श्रेया हमारी शादी में क्यों नहीं आयी ?"
श्रेया का नाम सुनते ही विवेक थोड़ा सकपका गया था। उसने कहा ," सिर्फ क्लासमेट थी ,दोस्त नहीं। "
"थी मतलब ,अब क्या दुनिया में नहीं है। ",आरती ने पूछा
" कैसी बातें कर रही हो ? दुनिया में ही होगी। कहाँ जायेगी ?",विवेक ने झल्लाकर कहा और चला गया ।
" श्रेया ,कुछ तो क्लू दो। तुम्हारे साथ क्या हुआ ?", आरती ऐसा सोचते -सोचते सो गयी थी।
तब ही अचानक से टीवी अपने आप चल गया और आरती ने जो सुना उससे उसे विवेक से नफरत सी हो गयी।
श्रेया ने बताया कि विवेक की शादी की खबर सुनकर वह विवेक के पास गयी और कहा कि ," विवेक प्यार मुझसे करते हो और शादी किसी और से कैसे कर सकते हो ?"
"अरे श्रेया ,समझो ,यह सिर्फ शादी नहीं एक डील है। शादी के बाद भी प्यार तो तुमसे ही करता रहूंगा। यह आरती तो घर पर गूंगी गुड़िया बनकर बैठी रहेगी। यह सब मैं अपने अच्छे भविष्य के लिए कर रहा हूँ। " ,विवेक ने बेशर्मी से कहा।
"नहीं ,विवेक मुझे ऐसा प्यार नहीं चाहिए। तुम यह शादी नहीं कर सकते। मैं अभी जाकर तुम्हारी होने पत्नी आरती को सब कुछ बता दूँगी। " ,श्रेया ने कहा।
"नहीं ,मुझे माफ़ कर दो। हम दोनों आज ही शादी करेंगे। यहाँ पास में ही मेरे दोस्त का रिसोर्ट है ,उसे फ़ोन कर देता हूँ ,वह सारी तैयारियां कर लेगा। ",विवेक ने कहा।
"मैं अपनी माँ को बुला लेती हूँ और तुम अपने मम्मी -पापा को। ", श्रेया ने कहा।
"मेरे मम्मी -पापा अभी नाराज़ होंगे ,शादी के कार्ड बँट गए और फिर मैं शादी के लिए मना करूँ। शादी के बाद तुम्हारा गृह प्रवेश होने के बाद तो उन्हें मानना ही पड़ेगा। ".विवेक ने कहा।
"मेरी माँ को तो बुला ही लेती हूँ। ", श्रेया ने कहा।
" जानू ,अगर मेरे मम्मी -पापा को पता चलेगा कि तुम्हारी मां उपस्थित थी तो उन्हें दुःख भी होगा और उनकी नाराज़गी भी बढ़ेगी। ", विवेक ने कहा।
उसके बाद विवेक श्रेया को रिसोर्ट में ले गया। वहां रूम नंबर १०१ में दोनों रुके। श्रेया विवेक के दोस्त के लाये हुए कपड़ों को पहन रही थी। तब ही पीछे से आये एक हाथ ने चाक़ू से उसका गला काट दिया। वह हाथ विवेक का था।
" विवेक ने उसी कमरे की दीवार में मुझे और उस चाक़ू को अपने दोस्त की मदद से चुनवा दिया और वहां से चला आया। ",श्रेया ने कहा।
"अभी तक सी सी टी वी की फुटेज भी सुरक्षित हैं। उनमें मेरे और विवेक के रिसोर्ट में प्रवेश के सबूत हैं। बाकी तुम खुद कर ही लोगी। मेरा गृहप्रवेश तो नहीं हुआ , कम से कम मुझे न्याय तो मिले । ", श्रेया की बात ख़त्म होने के साथ ही टीवी बंद हो गया।
आरती ने अपने पापा की मदद से पुलिस से बात की। आरती ने पहले श्रेया की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई। उसके आधार पर पुलिस ने रिसोर्ट पहुंचकर सी सी टी वी की फुटेज देखी। श्रेया अंदर तो आयी थी ,लेकिन बाहर नहीं गयी थी।
रूम नंबर १०१ को सर्च करने पर श्रेया की लाश और मर्डर वेपन दोनों मिल गए थे। इतने सबूतों के आधार पर विवेक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
आरती ने श्रेया की माँ को इस त्रासदी के बारे में बताया और श्रेया का अंतिम संस्कार किया। उसने विवेक से तलाक ले लिया और अब वह अपनी दादी के और भी करीब हो गयी थी।

