गोली (Pali-14)
गोली (Pali-14)
महारानी साहिबा के कक्ष में आवाज़ाही बढ़ गयी थी। मारवाड़ की महारानी नयनतारा प्रसव वेदना से तड़प रही थी। महाराज ईश्वर सिंह की महारानी की वेदना के साथ-साथ बैचेनी बढ़ती जा रही थी। उनकी चहलक़दमी उनके हृदय बयान कर रही थी। उनकी निगाहें बार -बार दरवाज़े की तरफ उठती थी, लेकिन वहां से कोई ख़ुशख़बरी नहीं मिल रही थी। विवाह के लम्बे समय बाद नयनतारा गर्भवती हुई थी, उनके गर्भधारण से सम्पूर्ण राज्य में हर्षोल्लास का माहौल था। प्रजाजन बेसब्री से अपने आने वाले राजकुमार की प्रतीक्षा कर रहे थे।
ईश्वर सिंह जी भी अपने उत्तराधिकारी का चेहरा देख ले तो उन्हें शांति मिले। उन्हें डर सताता था कि गोली का अभिशाप कहीं सत्य न हो जाए। ईश्वर सिंह ने राजमाता से सुन रखा था कि ,"वर्षों पहले एक गोली जो कि महाराजाओं की उपपत्नी या रखैल होती है न शाप दिया था कि सात पीढ़ियों बाद राठौर वंश का शासन समाप्त हो जाएगा। किसी और बेबस स्त्री को गोली सा शापित जीवन जीना नहीं पड़ेगा। "
ईश्वर सिंह जी की दादी सा बताती थी कि ,"उस गोली को महल के एक पहरेदार से मोहब्बत हो गयी थी । पहरेदार के लिए गोली उपभोग की एक वस्तु मात्र नहीं थी पहरेदार उसका सम्मान करता था जब महाराजा को इस प्रेम संबंध का भान हुआ तो उन्होंने पहरेदार और उस गोली के दो मासूम बच्चों को महल की छत से फिंकवा दिया था । महाराज चाहते थे कि भविष्य में कोई और गोली इस तरीके की हिमाकत न करे कहते हैं कि वह गोली पागल हो गयी थी और एक दिन उसने भी महल की दीवार से छलाँग लगा दी । "
उसके बाद से गोली परम्परा समाप्त सी हो गयी थी। पहले जब महाराजाओं का विवाह होता था तो विवाह के दौरान होने वाली पत्नी को सहारा देकर मंडप तक लाने वाली ,फिर सात फेरों के दौरान सहारा देकर साथ -साथ चलने वाली लड़की भी महाराजा की उपपत्नी हो जाती थी। ऐसी स्त्रियों को गोली कहा जाता था। ऐसी स्त्रियां महाराजाओं की यौन तुष्टि का साधन होती थीं। इन गोलियों से उत्पन्न होने वाली संतानें महाराजाओं की नाजायज संतानें होती थी। इनकी पुत्रियाँ खुद राजकुमारियों के विवाह के अवसर दासी या गोली के रूप में राजकुमारी के साथ ससुराल भेज दी जाती थी। इनके पुत्र महाराजा और राजकुमारों की चाकरी करते -करते ही स्वर्ग सिधार जाते थे।
उस शाप के बाद जब तक महाराज अपने उत्तराधिकारी का चेहरा नहीं देख लेते थे, तब तक उहापोह में ही जीते थे। ऐसा ही कुछ ईश्वर सिंह जी के साथ में था। ईश्वर सिंह जी की चहलकदमी बढ़ती ही जा रही थी कि तब ही महारानी जी के महल से एक सेविका दौड़ती हुई उनके कक्ष में आयी और उसने झुककर महाराजा का अभिवादन किया ,"महाराजा की कीर्ति बनी रहे। "
"और क्या ख़बर है ?",ईश्वर सिंह ने चिंतित स्वर में पूछा।
"बधाई हो महाराज ,महारानी जी ने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया है। हमें राजकुमार और राजकुमारी दोनों ही प्राप्त हो गए हैं। ",सेविका ने महाराजा को सूचना दी।
"ईश्वर की असीम कृपा बानी रहे। जाओ प्रजाजनों में मिष्ठान बँटवा दो। राजकोष से गरीबों को भरपूर दान दो। आज से 15 दिन तक राज्य में उत्सव मनाया जाएगा। ",महाराज ने अपने गले में पहनी हुई सच्चे मोतियों की माला उतारकर सेविका को देते हुए कहा।
सेविका महाराज की जय -जय कार करते हुए लौट गयी थी। महाराज ने महारानी के महल में स्वयं के आने की सूचना पहुँचा दी थी।
नयनतारा अपने आँखों के तारों को देखकर अपनी सारी वेदना भूल गयी थी। दायी ने दोनों बच्चों को नहला -धुलाकर तैयार करवाकर उनकी धायों को सौंप दिया था। रनिवासों में राजकुमार और राजकुमारियों की देखभाल धाय माँ द्वारा की जाती है। धाय स्तन पान से लेकर बच्चों का सारा काम करती हैं।
धाय एक -एक करके दोनों बच्चों को नयनतारा के पास लायी। महारानी ने बच्चों को एक -एक करके अपना दूध पिलाया ,बच्चों को लाड़ किया और उनकी बलैयाँ ली। बच्चों को धाय माँ ने उनके पालनों में सुला दिया था।
तब ही पहरेदारों ने महाराजा के रनिवास में आने की घोषणा की। महाराजा ने जैसे ही नयनतारा के कक्ष में प्रवेश किया ,वैसे ही नयनतारा ने सभी सेविकाओं को बाहर जाने का इशारा किया।
"कैसी हैं महारानी जी ?",ईश्वर सिंह ने नयनतारा से पूछा।
"बहुत खुश हूँ ,महाराज। मारवाड़ को अपना उत्तराधिकारी मिल ही गया। ",नयनतारा ने मुस्कुराकर कहा।
दोनों संतानों का नामकरण संस्कार किया गया। राजकुमारी का नाम मृणावती रखा गया और राजकुमार का नाम चंद्रभान रखा गया।राजज्योतिष ने मृणावती की जन्मकुंडली देखकर भविष्यवाणी की कि ,"राजकुमारी इतिहास की धारा बदल देगी ."
दोनों राजकुमार और राजकुमारी धीरे -धीरे बढ़े होने लगे। राजगुरु दोनों को पढ़ाने के लिए राजभवन में नियमित रूप से आने लगे। राजगुरु उन्हें शास्त्रों ,वेदों ,पुराणों, दर्शन आदि का ज्ञान देते थे। राजकुमार को इसके अलावा घुड़सवारी ,तलवारबाज़ी,तीरंदाजी ,पहलवानी आदि युद्धोचित कौशल का भी ज्ञान दिया जा रहा था। राजकुमारी मृणावती को नृत्य, संगीत ,कविता आदि सिखाया जा रहा था।
मृणावती ने एक दिन ईश्वर सिंह से कहा," पिताश्री मुझे भी चंद्र भ्राता जैसे तलवारबाजी और घुड़सवारी सीखनी है। "
"मनु ,चंद्र को तो मारवाड़ की रक्षा करनी है। तुम्हारी रक्षा भी वही करेगा ,तुम सीखकर क्या करोगी ?",ईश्वर सिंह ने मज़ाक में कहा।
"मैं भी चंद्र भ्राता की मदद करूँगी और कभी भ्राताश्री युद्ध करने राजभवन से दूर चले गए तो ?",मृणावती ने अपनी आँखें गोल -गोल घुमाते हुए कहा।
महाराजा ने उसे युद्धकला सीखने की इज़ाज़त दे दी थी। मृणावती चंद्र की कलाओं की भाँति दिनोंदिन बढ़ रही थी। मृणावती की सुंदरता भी बढ़ती जा रही थी। मृणावती की सुंदरता के चर्चे चरों तरफ होने लगे। किशोरी रूपवती मृणावती कई राजाओं और राजकुमारों की सपनों की मल्लिका बन चुकी थी।
अड़ोसी -पड़ौसी राजघरानों और रियासतों से मृणावती के लिए रिश्ते आने लगे। ईश्वर सिंह और नयनतारा ने मृणावती की सगाई मेवाड़ के महाराजा संग्राम सिंह से कर दी। मेवाड़ शक्ति और समृद्धि में मारवाड़ से बढ़ी -चढ़ी रियासत थी। मेवाड़ के साथ अच्छे संबंध मारवाड़ को क्षेत्र में प्रतिष्ठा दिलाएंगे।
लेकिन इंसान जैसा सोचे ,सब कुछ वैसा कहाँ होता है ?वक़्त के खेल निराले होते हैं, बड़े से बड़े विजेता भी वक़्त के हाथों हार जाते हैं। दुर्भाग्य से शिकार खेलने गए संग्राम सिंह पर बाघ ने हमला कर दिया और उस हमले से बुरी तरह घायल हुए संग्राम सिंह परलोक सिधार गए। संग्राम की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई विक्रम सिंह मेवाड़ के शासक बन गए थे।
उधर संग्राम सिंह की मृत्यु की खबर मारवाड़ तक पहुंची। उनकी मृत्यु के साथ ही मृणावती की सगाई टूट गयी। मृणावती के लिए इसी बीच बीकानेर रियासत का रिश्ता आया। मेवाड़ के बाद बीकानेर भी एक शक्तिशाली रियासत थी। ईश्वर सिंह ने सभी के परामर्श से मृणावती की सगाई बीकानेर के ज्येष्ठ राजकुमार रत्न सिंह के साथ कर दी। साथ ही उपहारों के साथ लग्न पत्रिका और पीले चावल भी बीकानेर भिजवा दिए, ताकि जल्द से जल्द मृणावती का विवाह रत्न सिंह के साथ हो जाए।
बीकानेर रियासत ने रत्न सिंह के विवाह की तैयारी शुरू कर दी। भारी लाव -लश्कर के साथ रत्न सिंह की बारात बीकानेर से मारवाड़ के लिए चली। उधर मृणावती की सगाई बीकानेर राजघराने में होने की ख़बर मेवाड़ रियासत पहुँची। मेवाड़ ने इसे अपना अपमान समझा। मृणावती का विवाह जब एक बार मेवाड़ रियासत में तय हो गया था, तब उसका विवाह दूसरी रियासत में कैसे किया जा सकता है। अगर संग्राम सिंह की मृत्यु हो गयी थी तो मृणावती का विवाह विक्रम सिंह से हो सकता था। उधर मेवाड़ रियासत भी अपने लाव -लश्कर के साथ मारवाड़ की तरफ कूच कर गयी।
एक मृणावती से विवाह के लिए बीकानेर के रत्न सिंह और मेवाड़ के विक्रम सिंह दोनों ही पहुँच गए थे। दोनों बारातों ने मारवाड़ से बाहर डेरा डाल दिया था। दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। मारवाड़ में भी संकट के बादल घिर आये थे। मेवाड़ और बीकानेर का अगर युद्ध होता तो मारवाड़ भी न चाहते हुए युद्ध में फंस जाता।
ईश्वर सिंह अपने सभासदों के साथ विचार-विमर्श करने लगे। तब ही किसी ने कहा कि ,"शिकारी हमेशा शिकार पर ही निशाना लगाता है। अगर शिकार ही न हो तो। "
"शिकारी अपने घर लौट जाएगा। और क्या ?",तब किसी दूसरे ने ज़वाब दिया।
"क्या मतलब ?",महाराज ने पूछा।
"क्षमा चाहता हूँ महाराज। लेकिन मारवाड़ को अगर विनाश से बचाना है तो हमें राजकुमारी मृणावती को मारना ही होगा। अगर राजकुमारी ही नहीं रहेंगी तो राजकुमार किससे शादी के लिए लड़ेंगे ?",सभासद ने डरते -डरते कहा।
सभासद की इस बात से एक बार तो सबको साँप सूँघ गया ,लेकिन फिर जैसे ही महाराज ने ठन्डे शब्दों में कहा कि ,"आपकी बात है तो सही। लेकिन कैसे ?"
"महाराज ,चुपचाप राजकुमारी मृणावती को खाने में ज़हर दिया जा सकता है। यह कार्य किसी विश्वस्त गुप्तचर को दिया जा सकता है। ",सभासद ने सलाह दी।
"ठीक है। ",महाराज ने अपने सीने पर पत्थर रखकर आज्ञा दे दी थी।
अगले दिन मृणावती के निधन की खबर आग की तरह फ़ैल गयी। बीकानेर और मेवाड़ की सेनाएं मारवाड़ से अपनी -अपनी रियासतों की तरफ लौट गयी थी।
यह खबर मारवाड़ रियासत के ठिकानेदारों ,जागीरदारों और जमींदारों तक भी पहुंची। लोगों ने महाराजा की कायरता की निंदा की । ठिकानेदारों का कहना था कि ,"जो अपनी पुत्री की रक्षा नहीं कर सका, ऐसा कायर शासक राज्य की रक्षा क्या करेगा ?"
"इस कायर ने हम सब राठौरों का नाम डुबो दिया है । इतिहास हमें डरपोक और युद्धभीरु कहेगा । ",जागीरदारों और नाते -रिश्तेदारों न कहा ।
ईश्वर सिंह के प्रति लोगों का असंतोष बढ़ता ही जा रहा था । लोगों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह का नेतृत्व नयनतारा और चंद्रभान ने किया। मारवाड़ में गृहयुद्ध प्रारम्भ हो गया था। इस गृहयुद्ध ने मारवाड़ रियासत को नष्ट कर दिया। गोली का शाप सच साबित हो गया था। शायद गोली ने ही मृणावती के रूप में दूसरा जन्म लिया था।
गोली राजपूताने में प्रचलित एक कुप्रथा थी, इसे हम देवदासी प्रथा का ही एक रूप मान सकते हैं। गोली और उसके बच्चे कभी भी स्वतंत्र जीवन यापन नहीं कर पाते थे, पीढ़ी दर पीढ़ी रजवाड़ों की यौनिक तुष्टि करते हुए ही तिल -तिल कर मर जाती थी। हमें अपने आपको भाग्यशाली मानना चाहिए जो हम ऐसे अंधयुग में पैदा नहीं हुए है। सास -बहू के विषयों से इतर यह कहानी शायद आपके दिलों को छूए।
