गोकर्ण कर्नाटक

गोकर्ण कर्नाटक

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"बच्चों, आज हम बात करेंगे कर्नाटक के एक सुंदर पर्यटन स्थल और हमारी प्राचीन संस्कृति के अनुपम मेल के उस स्थान की जिसका नाम है गोकर्ण।यह परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम है। यहां के जनजीवन में आधुनिकता है,तो उसके पीछे परंपराओं की एक पूरी श्रृंखला है।"

"धार्मिक स्थल और पर्यटन स्थल, वाह! वह कैसे चाचा जी?"धर्मेश ने पूछा।

"वह ऐसे की पहले यह अपने धार्मिक स्थलों के लिए जाना जाता था। वहीं अब इसकी पहचान यहां के समुद्र तट बन रहे हैं।यहां आने वालों में श्रद्धालुओं की बजाय पर्यटक और मौज मस्ती के शौकीन लोगों की संख्या बढ़ रही है।जो गोवा की भीड़ को पसंद नहीं करते, वे गोकर्ण की ओर आते हैं।"

ऐसा क्या है गोकर्ण के तटों में कि लोग गोवा छोड़कर यहां आते हैं?"ज्ञानेश ने पूछा।

"यहां के तट अपेक्षाकृत शांत और मनमोहक हैं। किसी चट्टान पर बैठकर डूबते सूरज को निहारना इससे बेहतर कहीं नहीं हो सकता। यहां पांच मुख्य बीच हैं। यह स्थान शांत वातावरण,सुनहरी रेत, बीच सैक और सीफूड के लिए प्रसिद्ध है।"

"यहां कौन-कौन से धार्मिक स्थल है,चाचा जी?" कमलेश ने पूछा।

 

 "यहां शिव को समर्पित महाबलेश्वर मंदिर कर्नाटक के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है।स्थानीय कदंब वंश के राजा मयूर शर्मा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर के प्रांगण में रथ है।

महाबलेश्वर मंदिर से थोड़ी ही दूर पर कोटि तीर्थ तालाब स्थित है।यह हजारों धाराओं का उद्गम स्थल है। इसे पवित्र माना जाता है। इसमें स्नान करने से पापों का नाश होता है। समुद्र के निकट मीठे पानी का इतना बड़ा स्रोत होने के कारण प्राचीन काल से इसकी प्रसिद्धि रही है।"

"पर्यटकों के लिए बीच के अलावा और क्या आकर्षण हैं, चाचाजी ?"पारुल ने जानना चाहा।

"ट्रैकिंग के शौकीन पर्यटक इस अनुभव को हासिल करने के लिए यहां आते हैं। लगभग 10 किलोमीटर लंबे ट्रैक की ऊंचाई से समुद्र को देखना अद्भुत है।"

"चाचू ,गो का अर्थ हुआ गाय और कर्ण का अर्थ हुआ कान, तो इस स्थल का नाम गोकर्ण क्यों पड़ा ,क्या यह गाय के कान के समान है ?" गोविंद ने सिर खुजलाते हुए पूछा।

"इस स्थान का नाम गोकर्ण कैसे पड़ा इसके लिए भौगोलिक और पौराणिक दोनों कथाएं हैं।स्थानीय मान्यता है कि शिव को ब्रह्मा ने पाताल भेजा था,जहां से वह गाय के कान के रास्ते से यहीं पर बाहर निकले,इसलिए इसे गोकर्ण नाम मिला। भूगोल यह परिभाषित करता है कि यह दो नदियों के संगम पर बसा है और यहां का भूगोल गाय के कान की आकृति जैसा लगता है इसलिए भी इसे गोकर्ण कहा गया।"

"अब चाचा जी, दीपक ने कहा, यह भी बता दीजिए कि यहां कैसे पहुंचा जा सकता है और यहां सबसे अच्छा मौसम किन महीनों में होता है?"

"अंकोला यहां का सबसे निकटवर्ती रेलवे स्टेशन है। यहां आने के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा बसें और टैक्सी चलाईं जाती हैं , जो आसानी से मिल जाती हैं ।अक्टूबर से मार्च तक यहां आने का अनुकूल समय है।

महाबलेश्वर मंदिर में शिवरात्रि के समय भारी भीड़ देखी जा सकती है।"

"चाचाजी ,गोवा कितनी दूर है यहां से?"गुंजन ने पूछा।

 "गोवा यहां से डेढ़ सौ किलोमीटर है। कोकण तट का यह इलाका अपने आम के बगीचों के लिए, खासकर अल्फांसो आम के लिए प्रसिद्ध है। इस रास्ते के किनारे कई अनजान समुद्री तट मिलते हैं, जिनका सौंदर्य अब तक अछूता है ,जैसे;मुरूदेश्वर जो उत्तरी कनडा जिले में ही स्थित है। गोकर्ण से इसकी दूरी 80 किलोमीटर है।यह स्थान अपने मंदिर और बीच के लिए प्रसिद्ध है।"

" अल्फांसो आम!और कौन- कौन सी वस्तुएं खरीद सकते हैं, क्योंकि मां को तो किसी स्थान के बारे में बताओ, तो सबसे पहले यही जानना चाहती हैं कि वहां से क्या शॉपिंग कर सकती हैं!"मुंह दबाकर हंसते हुए अपर्णा ने कहा।

"यहां पर्यटकों की मांग को पूरा करने के लिए कई बाज़ार हैं। प्रसिद्ध बाज़ार है कार स्ट्रीट। यहां पीतल के दिए ,पूजा विधि में काम आने वाली अनेक वस्तुएं, वाद्ययंत्र, स्थानीय काजू ,हस्तकला से जुड़ी वस्तुएं ,गुड जिसे कल्लू शर्करा कहा जाता है, खरीद सकते हैं।

"आपने जिस तरह इसका वर्णन किया है ,चाचा जी लगता है, यह बहुत ही सुंदर स्थान है। आज हम प्रयास करेंगे कि इसकी तस्वीरें भी खोज सकें, जिससे कि हम अपनी डायरी में उन्हें संग्रहित कर सकें।"जसप्रीत ने कहा।

"बच्चो, यह बहुत अच्छा रहेगा, तो फिर आज के लिए इतना ही ,नमस्ते।"

" धन्यवाद चाचा जी, नमस्ते।"


 



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