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kacha jagdish

Abstract Drama Fantasy

4  

kacha jagdish

Abstract Drama Fantasy

गिफ्ट

गिफ्ट

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(दादा दादी, नाना नानी)

सुमित अपने कोलेज के ग्राउंड के एक बेच पर बैठा रो रहा था। और मन ही मन उन बातों को याद किये जा रहा था। उसे लग रहा था की दूनिया मानो बस खत्म हो गई। अब वो जी के करेगा भी क्या। 

अपने पास पडे गिफ्ट को देख कर उसे अपना रोना रोका नही जा रहा था। लेकिन आसपास के लोग क्या कहेंगे इस बात से वह किसी तरह खुद को संभाले हुए था। फिर भी उसके आखों में आँसू आ जाते थे। किसी तरह सबसे बचते बचाते रुमाल से अपने आँसू पोछता। 

"प्रिया मुझे पसंद नही करती। " मन ही मन यह सोच रहा था। और अपने पर जो भरोसा था खोता जा रहा था। 

वह गिफ्ट सुमित प्रिया के लिए लाया था। दोनों अच्छे दोस्त थे, बाकी सबका मानना था कि वह दोनों बेस्ट फ्रेंड है। और एकदूजे के लिए एकदम परफेक्ट है। कोलेज के समय में तकरीबन दोनों को एक साथ ही देखा जाता था। एक साथ कोलेज आना-जाना, हर वक्त साथ रहना। 

प्रिया के रिजेक्शन के बाद सुमित अंदर से तुट गया था, उसे बहुत अकेला लग रहा था। लेकिन यह बात वो किसी से कह नही सकता था। क्योंकि उसने यह बात किसीको भी नही बताई थी कि वह प्रिया से प्यार करता है। 

इन सब में वह प्रिया के साथ बीताये पलों को याद करने लगता है। उसे यह कभी लगता ही नही था की वह प्रिया का सिर्फ दोस्त है। उसे लगता था उससे बढ़कर कुछ है। कुछ खास है। लेकिन ऐसा कुछ नही निकला। 

सुमित खुद को रोक नही पाया और अपने यादो के समुद्र में डूबने लगा। पल पल वह दुख से भारी होते हुए उसमें डूबने लगा। 

उसी यादो के समुद्र में से उसे अपने दादा की याद आई। जो दो साल पहले चल बसे थे। सुमित को लगा, " काश दादाजी जिंदा होते तो मैं अपना यह दुख उनसे बाट सकता था।" 

सुमित अपने दादा से काफि करीब था। 

दादाजी की याद आने के बाद सुमित किसी ओर ही धारा में बहने लगा। दादाजी के साथ बिताये वह पल उसे याद आने लगे। 

कैसे दादाजी उसे पढ़ाई में मदद करते थे, कैसे टोकते थे। और वो हर बार सही निकलते थे। फिर भी नही मानता और गलतियां करता रहता। फिर दादाजी आकर डाटते थे, गुस्सा भी करते थे। फिर गलती सुधारते भी थे। और समझाते थे। और एक सिख भी देते थे। 

सुमित उस बारे में सोचते सोचते सोचने लगा, हमेशा ही मेरे और दादाजी के बीच अनबन रहती। मुझे हमेशा यही लगता की दादाजी हमेशा मुझे बच्चा ही मानते है। और कहते थे उन सबसे कुछ नही होता। तजुर्बा चाहिए, जो अनुभव से मिलता है। लेकिन घर मे कई बार घर की समस्या का समाधान होते हुए भी देखा है उनके अनुभव से। 

" काश, आप यहाँ होते। तो आज आपका वो तजुर्बा काम आता। "

सुमित यह सब सोचते हुए अपने दादाजी की कल्पना करने लगा। 

सुमित यादों मे इतना खो गया की उसे bench मे उसके बाजू में उसके दादाजी की कल्पना करने लगा। 

सुमित की कल्पना मे दादाजी बोले," तुम्हें रोते हुए देखकर तुम्हारा बचपन याद आने लगा, जब तुम्हें कोई चीज नही देते थे इसी तरह बैठकर रोते थे। "

सुमित :" तब मे बच्चा था आज मैं बड़ा हो गया हो"

दादाजी : " हां, बड़े तो हो गये हो, लेकिन रोते तो बच्चे की तरह हो।" 

सुमित : " प्रिया मुझे मना करके चली गई, आपको क्या। बस मुझे मेरे रोने पर ताने मार रहे हो" 

दादाजी : " हा, तो क्या हुआ। थोड़ी ना पहले 'हा' बोला था और बाद में 'ना' बोलकर गई है। तु उसे पसंद नहीं था इसलिए तुझे ना बोलकर चली गई। इसमें रोने की क्या बात। तू भी उसे ना बोल दे। 

सुमित :" आपको तो मेरे emotion की कुछ पडी ही नही।" और मुस्कराया। 

दादाजी : और मैं तुझे एक बात बताना भूल गया था कि मैं भी तुझे पसंद नही करता। आखिरकार क्यों तुझे पसंद करूं। तु मेरे ही बेटे के पैसे से मेरे लिए कोई गिफ्ट नही लाया। "

अचानक सुमित को धक्का लगता है और अपनी कल्पना से बहार आता है। उसके आँखों मे पानी था, लेकिन जो आँसू बहा रहा था वो चले गये। 

सुमित वह गिफ्ट को उठाता है और घर की और चल देता है। 


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