एक अनमोल सिख
एक अनमोल सिख
छोटे से गाँव में मोहन नाम का एक किसान रहता था। उसकी मेहनत की वजह से उसके खेत हमेशा लहलहाते रहते थे। परंतु मोहन में एक कमी थी—वह जल्दी गुस्सा कर जाता था।
एक दिन गाँव के बाजार में एक व्यापारी से उसकी कहासुनी हो गई। व्यापारी ने बिना वजह मोहन पर गलत आरोप लगा दिया। गुस्से में मोहन ने सबके सामने व्यापारी को अपशब्द कह दिए। यह बात पूरे गाँव में फैल गई। मोहन की इज्जत पर सवाल उठने लगे।
परेशान होकर मोहन अपने गुरुजी के पास गया और सारी बात बताई। गुरुजी ने मुस्कराते हुए उसे एक तकिया दिया और कहा, "इसे फाड़ कर सारी रुई हवा में उड़ा दो।"
मोहन को यह काम अजीब लगा लेकिन उसने वैसा ही किया। फिर गुरुजी ने कहा, "अब इन रुई के टुकड़ों को वापस इकट्ठा कर लो।"
मोहन हैरान होकर बोला, "गुरुजी, यह असंभव है। हवा में उड़े रुई के टुकड़े कैसे इकट्ठा कर सकता हूँ?"
गुरुजी ने गंभीरता से कहा, "बिल्कुल वैसे ही जैसे गुस्से में कहे गए शब्द वापस नहीं लिए जा सकते। इसलिए हमेशा सोच-समझकर बोलना चाहिए।"
इस सीख ने मोहन की जिंदगी बदल दी। अब वह हर परिस्थिति में संयम रखता और गाँववाले फिर से उसकी इज्जत करने लगे।
सीख: गुस्से में बोले गए शब्द तीर की तरह होते हैं, जो एक बार निकल जाएं तो वापस नहीं आते।
