anuradha chauhan

Abstract

5.0  

anuradha chauhan

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घूँघट

घूँघट

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प्रिया बात को समझो ! हमें हमेशा यहाँ नहीं रहना है मैं तुम्हारे ऊपर कोई रोक लगाता हूँ ? नहीं ना, फिर यह गुस्सा कैसा ?

चलो माँ को सॉरी बोलकर बात ख़त्म कर दो ! क्यों अमर ? गलती बता दो ! मैं माफी माँगने के लिए तैयार हूँ।

प्रिया की अमर से मुलाकात लंदन में हुई थी।प्रिया बचपन से ही लंदन में पली-बढ़ी और अमर लंदन की उसी कंपनी में नौकरी करता था जहाँ प्रिया भी नौकरी करती थी।

प्रिया पहली बार ससुराल आई थी।अमर के कहने पर उसने साड़ी पहन रखी थी।

अमर की माँ ने नई बहू के स्वागत में बहुत सारी तैयारियाँ कर रखी थी और रिश्तेदारों को बुला रखा था।

प्रिया घर आ गया,जरा घूँघट कर लो ! घूँघट ?हाँ वो फिल्मों में दुल्हन मूँह ढाँकती है वैसे ! तुम पहली बार घर आ रही हो इसलिए ! यह कहकर अमर प्रिया को घूँघट ओढ़ा देता है।

द्वार पर माँ आरती थाल सजाए खड़ी थी। गृह-प्रवेश की रस्म के बाद मुँह दिखाई,प्रिया को मुँह ढाँके घबराहट होने लगी थी।

गोमती तेरा बेटा बहू तो बहुत सुंदर ले आया ! जा ढोलक ले आ कुछ गाना-बजाना भी हो जाए ! बुआ ने आदेश दिया।

प्रिया इस सब से बेचैन होने लगी थी।उसे ऐसे माहौल की आदत नहीं थी।इसी बेचैनी में उसने थोड़ा-सा मुँह खोल लिया, जिसे देख बुआ ने बवाल मचा दिया।माँ ने प्रिया को कमरे में भेज दिया।

मानता हूँ प्रिया तुम्हारी गलती नहीं है ! और फिर दो दिन बाद हम चले जाएंगे ! फिर कितने दिन बाद माँ से मिलना हो ?माँ की खुशी के लिए मान जाओ।

प्रिया अमर की बात सुनकर फिर से घूँघट ओढ़कर सास से माफी माँगने उनके कमरे में पहुँची।

माँ ! अरे बहू वहाँ क्यों खड़ी हो ?आओ यहाँ आओ ! सिर से घूँघट हटा दो ! समझती हूँ तुम्हे आदत नहीं है ! माँ मुझे माफ़ कर दो ! प्रिया बोली।

किस गलती के लिए ? तुम मेरी बेटी हो बहू नहीं ! गोमती ने सिर से घूँघट हटाते हुए कहा।जिज्जी बड़ी हैं घर की ! इसलिए उनको कुछ न कह सकी।

बेटा इज्जत दिल से होती है घूँघट से नहीं ! पर समाज में रहना है तो नियम मानने पड़ेंगे ! कल रिश्तेदार बुलाए थे,पर अब जितने दिन हो ? तुम्हें जैसे रहना हो रहो ! बस खुश रहो !

माँ ! गोमती के गले लग गई प्रिया,आँखों से आँसू के साथ गलतफहमी भी दूर हो गई।

बस माँ सारा प्यार भाभी पर लुटा दोगी या हमारे लिए भी थोड़ा रखोगी ! अमर के दोनों छोटे भाई आकर प्रिया को छेड़ते हुए बोले।


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