Kalyani Nanda

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4.5  

Kalyani Nanda

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घर वापसी

घर वापसी

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सुबह हो गयी थी। चिडियों की चहचहाहट, कुछ गली के कुत्तों के भौंकने से गली के पास एक पेड के नीचे एक चबूतरे पर सोया था एक बूढा,जिसकी नींद टूटी। चौंक कर उठ गया। चारों तरफ देखने लगा। कहीं कोई दिख नहीं रहा था। कहाँ गये सबके सब ? पहले कुछ समझ नहीं पाया वह। चारों तरफ देखा, नहीं कोई नहीं है। उसे सोता हुआ छोड़कर चले गये। कहाँ गये ? बस भी नहीं थी वहाँ, जहाँ रात को खडी थी। बूढा थोड़ा घबरा गया।

अनजान जगह, कहाँ जाएगा, किस से पूछेगा। कोई भी नहीं दिखता रास्ते पर। लक डाउन के लिए कोई नहीं निकलते बाहर। कल सबेरे वे सब एक बस में बैठकर पश्चिम वंग से निकलकर उडीसा अपने घर लौट रहे थे। बूढा भी अपने बेटे, बहू,और पोते,पोतियों के साथ उस बस से आया था।

देर रात को वहाँ पहुँच कर रूक गये थे। गाडी के इंजन में कुछ खराबी आ गयी थी। सो ड्राइवर गाडी रोक कर उसको ठीक करने के लिए थोडी देर वहाँ रूक गया था। छोटा सा शहर था। सब गाडी से उतर कर वहाँ एक पेड के नीचे बैठगये थे। पेड के नीचे एक चबूतरा था। बूढा वहाँ अपनी थकान मिटाने के लिए बैठ गया था। और कब वहाँ बैठे बैठे सो गया था। उसे वहाँ छोडकर वे सब चले कैसे गये। वह कुछ और सोचता,तभी वहाँ पुलिस वाले आए और बूढा से लगे पूछताछ करने। बूढा क्या कहता ? वह बहुत घबरा गया था।

आंखो में आंसू आ गये थे। फिर भी घबराते, डरते हुए उसने पुलिस वालों को अपने बारे में सब कुछ बताया। पुलिस ने देखा बूढे के पास सिर्फ एक छोटी सी पोटली थी। बहुत कमजोर लग रहा था। उसकी बात सुनकर पुलिस वाले उसे क्वारन्टाईन में रखने के लिए ले गये। बूढा कहता रह गया कि उसे घर लौटना है। उडीसा जाना है। वह उन पुलिस वालो को बार बार उसे उडीसा, अपने घर भेज देने के लिए गुहार लगाता रहा।

पुलिस वाले उसे समझा कर ले गये। चौदह दिन तक उसे क्वारन्टाईन में रखने के बाद उसे क्लीन चिट देकर उडीसा भेज दिए। उडीसा में अपने गाँव में जैसे तैसे करके बूढा पहुँच तो गया लेकिन उसे उस गाँव से और पांच किलोमिटर जाना था अपने गाँव तक जहाँ उसका अपना घर था। क्या करे, जाना तो पडेगा। वैसे गाँव के इतने पास आकर उसके मन एक अलग सी फुर्ती आ गयी थी।

अपनी पोटली उठाकर धीरे धीरे गाँव की तरफ बढने लगा। सोच रहा था जाकर पूछेगा अपने बेटे से,कैसे उसने अपने बूढे बाप को एक अनजान शहर में अकेला छोडकर आ गया। भूखा, प्यासा वो तो मर जाता वहाँ। भला हो पुलिस वालों की जो उसे रहने को जगह दी, खाना भी दिया, फिर घर लौटने का प्रबंध भी कर दिया। नहीं तो पता नहीं उसकी क्या हालत होती ? ये सोचते सोचते कब वो अपने घर के पास पहुंच गया था, पता ना चला उसको।

बाहर उसका पोता खेल रहा था,उसे देखकर अन्दर जाकर उसके आने की बात कही। तभी अन्दर से बूढा की बहू शायद उसके बेटे से कह रही थी," लो, छोडकर आ गये थे इस बूढे को, देखो कैसे आ गया हमारे ऊपर बोझ बनने को। कितने लोग उस बीमारी से मर जाते है। इस बूढे को तो जैसे यमराज भी लेना नहीं चाहते। और हम क्या रखेंगे इसे। अपना तो खाने के लाले पडे हैं। रास्ते में मर क्यों नहीं गया। " कुछ देर बाद बूढे का बेटा अपनी पत्नी को चुप कराते हुए कह रहा था,"अरी चुप हो जा। उसको हमारे पास रहने देते हैं।

सरकार की तरफ से उसको भी पैसा,चावल, दाल जो भी सहायता मिलेगी,वह भी तो हमारे ही काम आएंगे ना। थोडी सी कुछ दे देंगे खाने को। पडा रहने दे उसे। " इतना सुनकर बूढा सकते में आ गया। और कुछ सोचने की अवस्था नहीं थी उसकी। थम से बैठ गया घर के सामने, जो कि उसका ही घर था।


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