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Kalyani Nanda

Abstract

4.5  

Kalyani Nanda

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जमाना फोन का

जमाना फोन का

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जब तक हम जिन्दा रहते हैं ना जाने कितना कुछ देखते हैं, जानते हैं।कभी कभी लगता है जैसे और भी बहुत कुछ जानना है। लेकिन जो बीत जाता है वो पुराना हो जाता है। फिर भी हम उससे जुडे रहते हैं। उसको याद करते हैं और कहते रहते हैं सच, वो जमाना भी क्या जमाना था।

लेकिन जमाना को बदलना होता है सो बदलता रहता है और हम एक एक करके नवीनता की ओर बढते जाते हैं। लेकिन एक बात है कि जो भी चीज, या कोई घटना पहली बार हमें जिस आश्चर्य में डालता है उसे भुलाया नहीं जाता। ऐसा ही हुआ था हमारे घर में, शायद सभी के घर में। जब लेंड फोन का घर में पहली बार आगमन हुआ था। जिस दिन हमारे घर में पहली बार लेंड फोन का कनेक्शन आया।

सब के सब कितनी उत्सुक थे कि अब सबके साथ जो हमारे पास नहीं थे, दूर थे उनसे हम बात कर पायेंगे। जैसे ही लेंड फोन आ गया घर में तो जैसे कोई त्योहार का माहौल हो गया। जितने नाते, रिश्ते थे सबको फोन का आगमन की वार्ता बडे गर्व से दे दी गयी और फोन का नम्बर भी सबको दे दी गयी। कितनी खुशी हुई थी उस दिन। फिर दिन गुजरते गये। मोबाइल फोन का चलन शुरू हो गया। सब उसमें मस्त रहने लगे। लेंड फोन बेचारा सिर्फ बाबू जी और माँ जी का होकर रह गया।लेकिन बाबा को मैंने एक मोबाइल खरीद कर दिया था, क्यों कि बाहर जाते वक्त वही तो काम आएगा। फिर स्मार्ट फोन आया और बच्चे उसको ज्यादा पसंद करने लगे।

मेरे बच्चे बडे हो रहे थे। मेरा बेटा नौकरी करने लगा था। छह महीना हो गया था वह मुम्बई में था। मैं भी रिटायर हो गया था। मेरे बाबा, और माँ की उम्र हो गयी थी। मेरे बाबा वही लेंड फोन और मोबाइल में व्यस्त रहते थे। लेकिन मेरा बेटा छह महीने बाद आज घर कुछ दिनो की छुट्टी पर आ रहा था।

सब बहुत खुश थे लेकिन सबसे ज्यादा उसके दादा, दादी खुश थे। मेरे बेटे का घर आते ही जैसे रौनक आ गया था। " ये क्या दादा जी ,अभी भी वही मोबाइल पकडे हो ?

देखो मैं ने तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ ?" मेरे बेटे ने यह कहते हुए एक स्मार्ट फोन अपने दादाजी के हाथ में थमा दिया। जिसे देखकर मेरे बाबा खुश तो बहुत हुए लेकिन फिर बोले, " अरे इतनी महंगे मोबाइल क्यों लाया ?मैं कहाँ इसे चला पाउँगा। नहीं नहीं मेरे तो यही पुरानी वाली और लेंड फोन ही ठीक है।"

"अरे दादा जी मैं सीखा दूंगा।एक बार सीख जाओगे तो छोडोगे नहीं " मेरे बेटे जितने दिन रहा घर में वह अपने दादा जी को सब कुछ सीखा दिया।

फेस बुक, ह्वाइट एप्प चलाना, कुछ गेम्स भी लोड कर दिया ,फोटो लेना सब कुछ सीख दिया। फिर क्या था, बाबा का टाइम्स उसीमें गुजरने लगा। बहुत खुश भी थे , और अगर कुछ नहीं भी जानते थे , बस वक्त, बेवक्त पोते को परेशान करते थे। लेकिन उनके और माँ जी का समय अच्छे से गुजरने लगे। लेकिन मैं उन दिनों को भूल नहीं पाता जब लेंड फोन का आना हुआ था। वो दिन और आज के दिन। सच ना जाने ये दिन जो ना दिखाए सो कम है।


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