Kalyani Nanda

Tragedy

3.6  

Kalyani Nanda

Tragedy

एक बूंद जीवन

एक बूंद जीवन

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सब मजदूर अपने गाँव लौट रहे थे। अपने परिवार के साथ , पैदल। ऊपर कड़ी धूप। नीचे तपती हुई जमीन । मंजिल दिखाई नहीं देती । गला सूख रहा है। थक कर बदन चूर चूर हो रहा है। हताश मन, फिर भी अपना गाँव, अपने लोगों की याद फिर बल देता है आगे बढने को । पर छोटे बच्चे , कितना चलेंगे ? कितना सहेंगे? " बाबा, और कितना दूर चलेंगे ? गला सूख रहा है । पानी पीना है । " दस साल का लडका बोल उठा । पिता ने देखा, बोतल में एक बूंद ही पानी है । क्या करे ? कैसा समय आ गया ? रोजगार के लिए अपना गाँव छोडा था । अब काम छोड़कर कर गाँव जारहा हैं । कैसा है ये भूख की ज्वाला ? कैसी आयी ये महामारी ? करोना । नाम सुनकर भय का आभास होता है, जैसे पहले भूख की दहशत थी । इधर भी खाई, उधर भी खाई । जाएँ तो कहाँ जाएँ ? बच्चे के मुख से मास्क हटाया , पिता ने एक बूंद जल उसे पिलाते हुए कहा, " ले बेटा , इस एक बूंद का जीवन जी ले ।"



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