Swapnil Ranjan Vaish

Classics

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Swapnil Ranjan Vaish

Classics

एथिकल बिज़नेस

एथिकल बिज़नेस

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"करण कुछ लेते क्यों नहीं, कोई बात है तो बता बेटा? " सुरभि जी ने अपने बेटे से पूछा।वो ठीक से खा नहीं रहा था।

सब खाना खा कर उठ गए, लेकिन करण के आधा प्लेट चावल ख़तम नहीं हो पाए। किसी तरह उगलते निगलते उसने खाना ख़तम किया और अपने पिता जानकिदास के पास गया,जानकिदास जी यूँ तो भले इंसान हैं, लेकिन व्यापार और मुनाफे में लापरवाही उन्हें कतई मंजूर नहीं। इसलिए घबराया करण अपने पापा से डरते हुए बोला

" पापा आज एक इन जी ओ वालों को मैंने आधे दाम से भी कम में ओक्सीजन सिलिंडर दे दिये और एक भिखारी को तो मुफ्त में ही दे डाला, जानता हूँ आपने बहुत भरोसा करके मुझे मेडिकल स्टोर पर बैठाया था, और मेरा भी फर्ज़ था की मुनाफ़ा बनाऊँ, लेकिन मुझसे आज बहुत बड़ी गलती हो गयी। मुझे माफ कर दीजिये पापा "।

"तो इतना डर क्यों रहा है बेटा और खबरदार जो माफी माँगी, तुझे पुण्य करने का मौका मिला तो तूने करा, कितने लोग तो ऐसे मौकों के लिए तरसते हैं, मुझे तुझपर गर्व है, अरे मुनाफ़ा तो हमें होता ही रहता है लेकिन एथिकल बिज़नेस भी कुछ होता है।

ये समाज हमारी कमाई का ज़रिया ज़रूर है, लेकिन हम इनकी कमज़ोरी का व्यापार नहीं करते। आज समाज को कुछ लौटाने का मौका मिला है तो लौटाओ लेकिन लुटाओ नहीं... समझे हीरो। तुमने रस मलाई खाई ?... चल मैं खिलाता हूँ "।

मित्रों आज मानवता बहुत बड़े दोराहे पर आकर खड़ी है, जहाँ एक दूजे का साथ ही हमें इस महामारी से ज़िंदा निकाल सकता है। आपके और मेरे द्वारा किये गए छोटे छोटे अच्छे काम बड़ा नहीं तो छोटा योगदान तो दे ही सकते हैं, और शायद उतना ही पर्याप्त भी होगा। सबकी सलामती की दुआ कि ईश्वर सबकी रक्षा करें।


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