Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Mukta Sahay

Abstract

4.5  

Mukta Sahay

Abstract

एक यादगार पिकनिक

एक यादगार पिकनिक

3 mins
292


बात आज से लगभग पचास वर्ष पहले की है जब संचार और परिवहन के साधन आज जैसे नहीं थे । आम लोगों के पास मनोरंजन के लिय सिर्फ़ रेडियो हुआ करता थी, संचार के लिए भारतीय डाक पर निर्भर थे और परिवहन के लिए साइकिल ,रिक्शा, बस और भारतीय रेल हुआ करती थी।

तब सरोज देवी अपने पाँच बच्चों , तीन बेटों-दो बेटियाँ और पति प्रसाद साहब के साथ राँची में रहती थी । सरोज देवी का जन्मदिन पहली जनवरी को हुआ करता था और इस दिन का घर पर सभी को बड़ा इंतज़ार रहा करता था क्योंकि इस दिन ये पिकनिक पर जाते थे ।ये दिन इनके मज़ा और मस्ती करने का दिन होता था ।

तो बस उस पहली जनवरी सरोज देवी अपने बच्चों और पति के साथ सुबह सुबह राँची के पास एक ख़ूबसूरत सी जगह है “नरकोपी” को पिकनिक के लिए निकल पड़े । हरे भरे जंगल , कलकल करती नदियाँ ,छोटे बड़े पहाड़ी झरने, तरह तरह के प्यारे पक्षी और खुल कर घूमते सुंदर जानवर इस जगह की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगते हैं ।

उस समय वहाँ जाने के लिए सिर्फ़ एक ही साधन था रेल गाड़ी । सुबह छः बजे राँची से नरकोपी को निकलती थी और शाम छः बजे वहाँ से वापस राँची आती थी और ये चलती भी नैरो गेज पर थी । सरोज देवी और उनका परिवार इसी रेलगाड़ी से नरकोपी को गए । कुछ और परिवार भी थे इस जो वहाँ पिकनिक के लिए रेलगाड़ी में चढ़े थे।


लगभग नौ बजे ये नरकोपी पहुँच गए और फिर शुरू हुई पिकनिक की मस्ती और मजे । नदी का किनारा और झरने को जी भर के निहारा गया । जनवरी के ठंडी का धूप और निर्मल जल , ये सभी इस नज़ारे में डूब से गए । ध्यान तब आया जब घड़ी में दोपहर के एक बज गए थे।

अब हड़बड़ी की गई । जल्दी जल्दी पानी का इंतज़ाम किया गया और जगह साफ़ की गई ।प्रसाद साहब और तीनो बेटे लकड़ी जुटाने लगे और चूल्हा बनाने की तैयारी करने लगे । वही सरोज देवी दोनो बेटियों के साथ खाना पकाने के पहले की तैयारी में लग गए। चूल्हा बनाने के बाद खाना बनाना शुरू हुआ और खाना बनते बनते शाम के पाँच बज गए ।सर्दी के मौसम में इस समय सूरज ढल जाता है । सभी ने खाना खाया और समान बाँध कर रेलवे स्टेशन को निकले ।

पिकनिक का असली मज़ा तो अब आने वाला था ।इधर ये स्टेशन पहुँचे और उधर सामने से रेलगाड़ी निकल गई। सभी एक दूसरे को देखते रह गए । अब तो हवाइयाँ दौड़ रही थी सभी के चेहरे पर। धीरे धीरे अँधेरा भी बढ़ता जा रहा था । प्रसाद साहब स्टेशन मास्टर से मिले तो पता चला एक मालगाड़ी सात बजे यहाँ से निकलेगी पर वह यहाँ रुकेगी नहीं । प्रसाद साहब और सरोज देवी के आग्रह पर स्टेशन मास्टर ने कहा की वह मालगाड़ी को रुकवाने की कोशिश करेंगे। सात बजे मालगाड़ी गुज़रने वाली थी तो स्टेशन मास्टर ने उसे लाल झंडी दिखा कर रुकवाया । पूरा परिवार साँस थामे उसके छोटे से 6'x6' के गार्ड के डब्बे में बैठा और मालगाड़ी की रफ़्तार से रात के ग्यारह बजे राँची पहुँचा। इस समय यहाँ कोई रिक्शा ना मिलने से इन सभी को पैदल ही घर तक आना पड़ा । आधी रात, यानी बारह बजे जब ये घर पहुँचे तो सभी के चेहरे पर हँसी थी क्योंकि ये तो इनकी यादगार पिकनिक थी।


अगली पहली जनवरी जब फिर कहीं घूमने और पिकनिक की बात चली तो सभी ने एक साथ कहा “ नहीं नहीं “ और हँसी के फुहारें छूट पड़े। सरोज देवी और प्रसाद साहब तो अब नहीं रहे लेकिन पाँचो भाई बहन अब साठ के आसपास के पहुँच गए है पर जब भी मिलते है तो इस पिकनिक की याद ज़रूर करते हैं ।

वैसे नरकोपी बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है झारखंड के राँची के पास, इसे आप भी घूम कर आ सकते हैं और इस कहानी को याद करके जी भर कर हँस भी सकते हैं।


Rate this content
Log in

More hindi story from Mukta Sahay

Similar hindi story from Abstract