एक सफर अप्रवासी से प्रवासी तक
एक सफर अप्रवासी से प्रवासी तक
'मां, आज विदेश से मेरी एक दोस्त स्वीटी आ रही है मै उसे लेने एयरपोर्ट जा रहा हूं ठीक है'।घर के बाहर गाड़ी निकालते हुए अविनाश ने आवाज देते हुए अपनी मां से कहा।और बिन जवाब की प्रतीक्षा किए वहां से निकल गया।कुछ ही देर में वो एयरपोर्ट पहुंच जाता है जहां वो स्वीटी से मिल कर औपचारिक बातचीत कर उसे लेकर घर पहुंचता है। घर पहुंच अविनाश स्वीटी से बोला, ' मेरी सबसे अच्छी दोस्त का मेरे घर में स्वागत है '।अंदर पहुंच कर उसने अपनी मां को आवाज दी।जिसे सुन कर अवि की मां बाहर चली आती है।मां को देख अवि अपनी दोस्त का परिचय अपनी मां से कराता है।' नमस्ते आंटी ' स्वीटी ने मुस्कुराते हुए कहा।अवि की मां मुस्कुराते हुए उसे अपने साथ अंदर हॉल में ले जाती है।कुछ देर बातचीत करने के बाद अवि किसी काम से बाहर चला जाता है तो स्वीटी अवि की मां से पूछ कर पढ़ने के लिए बुक लेने अवि के कमरे में आती है जहां उसकी नजर बुक सेल्फ में रखी अवि की डायरी पर पड़ती है और वो आदतन उसे उठा लेती है।वहीं आसपास बैठने के लिए टेबल देख वो उस पर जाकर बैठ जाती है और उसे पढ़ने लगती है।।
कुछ मीठी लेकिन कड़वी यादें -( मेरा प्रवासी सफर)
वो एक बेहद खूबसूरत दिन था जब मेरा चयन मुम्बई में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर मल्टीनेशनल कम्पनी में हुआ था।कितना खुश था मैं!मन खुशी से बावरा हुआ जा रहा था।लग रहा था इतने दिनों की दिन रात की मेहनत साकार हो गयी।मेरे घर मम्मी पापा,बड़े भैया,छोटी बहने सभी खुशी से बावली हुये जा रहे थे।पापा तो सबको फोन कर करके ये खुशखबरी सुना रहे और मैं इन सबको अपने कमरे के दरवाजे से खुश होता हुआ देख रहा था।उस दिन जो खुशी हुई उसे शब्दो में किस तरह ढालूं मैं समझ ही नही पा रहा था।।मैं बस सबको खुश देख खुद से मुस्कुराये जा रहा था।अगले दो दिन बाद मुझे जयपुर से मुम्बई के लिए निकलना था।मैंने अपनी सारी जरूरत की पैकिंग कर ली थी।मम्मी ने तो लाड़ प्यार में मुझे बहुत सारी चीजे बांध कर रख दी।और सख्त हिदायत देती जा रही थी कि मुझे सबको लेकर जाना है और मैं मां के प्यार और उनकी परवाह को समझ कर बिन कुछ बोले हां में सर हिलाये जा रहा था।दो दिन बाद सभी मुझे छोड़ने जयपुर स्टेशन पहुंचे और मैं दो बैग्स, विद वन पिट्ठू ये सारा सामान लेकर जयपुर से मुम्बई पहुंच गया।मेरी नियुक्ति हो गई।मुम्बई जाने के बाद मैं रोज घर बात किया करता।घर वालो से लम्बी बाते होती रहती थी।लम्बी क्या कहूँ मैं,उस समय सबसे बात किया करता था मम्मी, फिर पापा फिर भाई,बहने। बात करते हुए कब एक घण्टा गुजर जाता पता ही नही।सच कहूँ तो फोन की वजह मुझे मुम्बई में कभी लगा ही नही कि मैं अपने घर अपनो के साथ नही हूँ।फिर एक दिन वो आया मेरे जीवन में कि मुझे छ महीने के अनुबंध के साथ मेरे देश मेरे भारत से दूर विदेश भेज दिया गया।।विदेश जाने की वो खबर सुनकर मन पहले तो बहुत खुश हुआ लेकिन फिर ये सोच कर ही उदास हो गया कि अपने देश से अपनो से दूर मैं ये छ महीने कैसे रहूंगा।
मैंने ये खबर सबसे पहले अपनी मां को सुनाई।मां सुन कर खुश हुई और खुशी से रोने लगी।लेकिन उनके वो आंसू खुशी के ही नही वरन गम के भी थे। मां तो मां ही होती है बच्चे की कामयाबी के लिए मां कितनी दुआएं कितनी मन्नते कितने जतन करती है और जब उसकी ये दुआ मिन्नते जतन सब पूर्ण हो जाता है तब वो खुशी से रो पड़ती है।कुछ देर बाद जब मां का मन शांत हुआ तो वो मुझसे पूछते हुए बोली 'तू खुश तो है अवि!तू सच में वहां जाना चाहता है'।। उस समय मैं ये बखूबी समझ पा रहा था कि मां के उन सवालो के पीछे एक ही अर्थ है कि वो नही चाहती कि मैं उनसे दूर सात समंदर पार जाऊं।इसलिए नही कि वो मुझे कामयाब होते हुए नही देखना चाहती थी बल्कि इसीलिए कि वहां सात समंदर पार मेरा ध्यान कौन रखेगा।।मैंने मां से कहा 'मैं वहां जाना चाहता हूँ'।मन कड़ा कर मैंने कह तो दिया था लेकिन मन मेरा अंदर से खुश नही था।उस पल से ही एक खालीपन महसूस होने लगा था मुझे।मैं सबसे बाते तो करता था लेकिन मुझे बातों में अब वो रुचि ही नही रही। ऐसे ही देखते देखते मेरे विदेश जाने का समय भी आ गया और मैं उड़ान भरते हुए फ्रांस पहुंच ही गया।फ्रांस की सड़के वहां का निर्माण देख मन बहुत प्रसन्न हो गया।यदा कदा प्राकृतिक दृश्य तो वहीं साफ नदी जलधारा रंग बिरंगे रंगों से सजा बाजार सब बेहद खूबसूरत दिख रहा था।।मैं मेरे लिए कम्पनी द्वारा व्यवस्थित किये गये स्थल पर पहुंचा और व्यावसायिक भाषा में अपना परिचय दे अंदर चला आया।सब कार्य से फ्री होते ही मन में ख्याल आया कि एक बार घर पर सबसे बात कर ली जाये।मैंने घर फोन लगाया और थोड़ी थोड़ी देर सबसे बात की।बात करते हुए मुझे एहसास हुआ कि सब खुश है लेकिन मां की आवाज में खनक के साथ थोड़ी उदासी भी है।मैंने मां से उनके स्वास्थ्य के विषय में पूछा तो मां हँसते हुए बोली स्वास्थ्य ठीक है।उस पल मुझे मां से दूर होने का एहसास हुआ मन भर आया लेकिन अपने एहसासों का अनुभव बांटने के लिए कोई भी तो नही था मेरे पास।खुद से ही दिलासा दे खुद को सम्हाला।कुछ देर और बातें कर मैंने फोन रखा और कार्य में रम गया।
ऑफिस घर और समय मिलने पर घूमना ये सब ही तो अब मेरी दुनिया बन गयी थी।मुझे घूमने का इतना शौक ही था कि फ्रांस की राजधानी पेरिस का कोई कौना नही छोड़ा।इसी बीच एक मोड़ पर उससे मुलाकात हो गयी।उसका नाम था स्वीटी।संयोग से वो भी भारतीय ही थी।विदेशी धरती के उस अजनाने माहौल में किसी स्वदेशी का टकराना मुझे ऐसा लगा कि घने जंगल में रास्ता भटकने के कारण दो अजनबियों का साथ मिलना।उससे बातें मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा तो पता चला कि वो भी उस विदेशी सरजमीं पर उसी अपनेपन और सुकून की तलाश में भटक रही है जिसका आकांक्षी मैं भी था।
मन में कई बार ख्याल आया कि मैं अपनो से दूर वहां कर क्या रहा हूँ?क्यों हूँ मैं इतनी दूर?कभी कभी मन करता कि सब समेट कर वापस निकल पडूँ अपने देश अपने राज्य अपने शहर में अपनो के बीच।हालांकि सबसे बात हो जाती थी लेकिन फिर भी सबकी याद बहुत आती थी मुझे।जब भी कभी खाने बैठता तो मां का लाड़ बहुत याद आता था।वैसे ही जब भी कभी स्वास्थ्य खराब होता तो पापा की झड़प और बहन की परवाह दोनो याद आती।जब भी कभी परेशान होता तो परेशानी में साथ देने वाला मेरा भाई याद आता।तब वो मेरे पास होती और हम दोनो ही अपने मन की बातें एक दूसरे से शेयर कर अपने दुख को कम कर लेते।हम दोनो एक ही नाव पर सवार थे।साथ सफर करते करते वो भी मेरे जीवन का हिस्सा ही लगने लगी थी।हालांकि मैं उससे कभी कह नही पाया लेकिन उसके होने से मुझे किसी अपने के साथ होने का ही एहसास होता।सब यूँ ही कट रहा था।वो मेरी और मैं उसका सम्बल बन यूँही एक एक दिन गुजार रहे थे।
एक दिन मुझे पापा ने खबर दी कि छुटकी की शादी फिक्स हो गयी है।अगले महीने की शुरुआत में ही शादी है।मन बहुत खुश हुआ उस दिन।उसी दिन छुट्टी के लिए अप्लाई कर दिया था मैंने।उस दिन मैं मन ही मन पूरे टाइम अपनी ख्वाहिशों की लिस्ट बनाते हुए खुश होता रहा मन में छुटकी के साथ बिताये गये लम्हे एक एक कर आंखों के सामने गुजरने गये।मैं धीरे धीरे सबके लिए कुछ न कुछ उपहार खरीदने लगा।अब शादी में लगना तो चाहिए कि दुल्हन का भाई दुल्हन के नव परिजनों के लिए विदेश से कुछ लेकर आया है।कपड़े कुछ गिफ्ट्स कुछ चॉकलेट्स टॉफियां और भी न जाने क्या क्या शॉपिंग में मदद की थी उसने।।फिर वो दिन भी आया कि मुझे अपने देश आना था।
जिस दिन मुझे अपने देश जाना था उस दिन मौसम बहुत खराब हो गया।मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे मेरे अपनो के बीच पहुंचने के सारे अरमानों पर प्रकृति ने पानी फेर दिया।!सारी उड़ाने रद्द कर दी गयी।और मैं वही एयरपोर्ट पर बैठा सब सही होने का हुआ इंतजार कर रहा था।मन में उस समय बहन के साथ बिताये हुए सभी लम्हे उभर कर आते हुए मेरी आंखों को नम कर रहे थे।मन में ख्याल आ रहा था बस जल्द ही मैं अपने देश पहुंच जाऊं और अपने भाई बेटे होने के सभी कर्तव्यों का निर्वाह करूँ।लेकिन मैं पहुंच ही नहीं पाया।नाराज प्रकृति ने वहीं एयरपोर्ट से ही मुझे वापस लौटा दिया।मां को फोन कर न आ सकने के बारे में बताया तो मां की बातो में छिपी उदासी भांप गया।
उस दिन मै स्वीटी के गले लग अपनी विवशता पर पहली बार रोया।आखिर उस सरजमीं पर एक वहीं तो थी जिसमे भारतीयता थी।जो मुझे समझती थी।छुटकी की शादी हो गई और मै अपने कार्य में रमने लगा।ऐसा नहीं है कि वहां के निवासियों के अंदर इन्सानियत नहीं है।इन्सानियत भी है लेकिन अपनी जड़ों से दूर रहने का दर्द तो हर टहनी को होता है। वही दर्द वही तड़प मेरे अंदर भी थी।सबके होते हुए भी अकेलापन ही महसूस होता था।धीरे धीरे समय गुजरा और धीरे धीरे मेरे छ महीने पूर्ण होने को आए।
आज मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि मेरी छ महीने की अवधि खत्म होने जा रही है और मैं वापस अपने देश अपनो के बीच पहुंच जाऊंगा।लेकिन यहां से जाने का एक दुख भी है कि मैं फिर कभी अपने जीवन के उस हिस्से से नही मिल पाऊंगा जिसने उस समय मेरा साथ दिया जब मैं सबके साथ होकर भी अकेला था।
अपने जीवन के छ महीने एक प्रवासी का जीवन गुजारने के बाद जब मै वापस अपनी सरजमीं पर पहुंचा तो मन अपार प्रसन्नता से भर गया।तब जाकर मुझे एहसास हुआ प्रवासी होना इतना भी आसान नहीं है।कितनी घुटन, कितनी इच्छाएं, अपनो का साथ सब भुलाना पड़ता है तब जाकर कहीं एक प्रवासी विदेशी सरजमीं पर सफलता पूर्वक जीवन व्यतीत कर पाता है।
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आगे का पेज तो खाली है।आगे इसमे कुछ नही लिखा है इसमे।ये अविनाश भी न कोई भी बात साफ साफ नही कह सकता।मेरा ही जिक्र किया है इसमें और मुझे ही कुछ नहीं पता।घुमा कर बात करने की इसकी पुरानी आदत है।हाथ में लाल रंग की एक खूबसूरत डायरी पकड़े गोरी चिट्टी स्वीटी ने बड़बड़ाते हुए कहा।चलो आज तो मैं इससे फाइनल बात कर ही लेती हूँ।ये बावरा है तो है,लेकिन मैं तो समझदार हूँ न मै ही साफ साफ पूछ लेती हूं।बड़बड़ाते हुए स्वीटी टेबल से उठी और कमरे से निकल हॉल में पहुंची जहां पहुंच उसने चारो ओर अवि को ढूंढा जो अपने मां पापा के पास बैठ कर हंसते हुए बातें कर रहा था।उसके चेहरे पर खुशी और चमक देख स्वीटी मुस्कुराते हुए बोली 'सही कहा अवि तुमने एक प्रवासी होना इतना भी आसान नहीं होता'।बातें करते हुए अवि की नजर स्वीटी पर पड़ी तो उसने उसे अपने पास आने का इशारा किया।स्वीटी डायरी पकड़े ही पकड़े वहां चली आती जिसे देख अवि ने चौंकते हुए उसे देखा और बोला 'ये तुम्हे कहां से मिली'।स्वीटी सबकी ओर आते हुए बोली 'कहां से मिली ये बताना जरूरी नहीं बल्कि ये बताना जरूरी है कि मै सोच रही हूं कि अब मै भी प्रवासी भारतीय से यहीं अपने देश में वापस रच बच जाऊं।क्यूंकि विदेश में किसी के साथ सफर करते करते मुझे मेरी मंजिल के के यहीं होने का एहसास होने लगा है क्या ख्याल है अवि तुम्हारा'!!
स्वीटी की बात समझ अवि की मां खड़े होकर मुस्कुराते हुए बोली 'नेक ख्याल है शुभस्य शीघ्रम'..!जिसे सुन अवि और स्वीटी दोनों के चेहरों पर मुस्कुराहट छा जाती है।।

