Moumita Bagchi

Romance

4  

Moumita Bagchi

Romance

एक मुहब्बत ऐसा भी

एक मुहब्बत ऐसा भी

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जब से परमिंदर की नौकरी लगी, उसकी माॅ हाथ धोकर उसकी शादी के लिए पीछे पड़ी हुई है। उनके सारे सहेलियों के बच्चों की शादियाॅ इस दौरान हो गई तो अपनी जिम्मेदारियों से निजात पाने की लालसा माॅ के मन में भी जग उठी। लेकिन परमिंदर की एक ही रट- शादी नहीं करनी ! माँ ने कितना मनाया कि तुझे कोई पसंद है तो बता दे नहीं तो मैं ही कोई रिश्ता ढूंढती हूं। परंतु उसे मनाना इतना आसान थोड़े ही था ?

परमिंदर को किसी ऐसे- वैसे से शादी नहीं करनी। उसे तो ऐसा जीवनसाथी की तलाश थी जो उसकी भावनाओं को पूरी तरह से समझे। उसे हमसफर से ज्यादा एक हमनवां की जरूरत थी। माॅ तो कभी किसी की सुनती नहीं, केवल वही करती है जैसा उनका मन करें। खुशनसीब होते हैं वे बच्चे जिनके माता-पिता उन्हें समझते हो।

उसे सिर्फ और सिर्फ नेहा ने समझा था। वे दोनों साथ -साथ काॅलेज में पढ़ते थे। तब नेहा से उसकी मुलाकात हुई थी। फिर दोस्ती और फिर---। ईश्वर ने उसे खूबसूरती के साथ-साथ एक सुंदर हृदय से भी नवाज़ा था। नेहा उसे बहुत जल्द ही पसंद आ गई थी। परंतु नहीं ,कभी उससे कहते हुए न बना। नेहा ने कभी-कभार उसकी भावनाओं को आंखों में पढ़ लिया होगा, परंतु दोनो को कभी इस विषय पर चर्चा करने का अवसर न मिला।

दोनों पढ़ाई में अच्छे थे। काॅलेज के बाद उच्चशिक्षा हेतु नेहा विदेश चली गई और फिर कभी उससे मिलना न हो पाया।

परंतु नेहा को भूल पाना असंभव था। आज भी उसकी मोहिनी सूरत और सदा खिलखिलाते चेहरे की याद रह रह कर उसके मन मस्तिष्क को आंदोलित करती रहती है।

काॅलेज के रति और विनय की शादी के लिए आखिरकार उसके घरवाले मान गए। और उनकी जिद्द के आगे किसी की न चली! सबको उनके प्यार को स्वीकृति देनी ही पड़ी। आज उनका रिसेप्शन है।उन दोनों ने अपने बैच के सभी दोस्तो को बुलाया था। उनके प्रेम के चर्चे काॅलेजभर में मशहूर थे। पर कुछ लोग उनकी इस बेमेल और अनोखी जोड़ी के खिलाफ थे और उन दोनों की घोर निन्दा किया करते थे। अब लोगों के सोच का क्या करें। कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।अब दूसरों की सुने या अपनी खुशियों के बारे में सोचे?

संयोगवश, वर्षों बाद इस रिसेप्शन के दिन परमिंदर की नेहा से भेंट हो जाती है। दोस्तों में से किसी को भी नेहा को फिनलैंड से इस शादी में आकर शामिल होने की उम्मीद न थी। पर वह आई थी! सबसे खुशी -खुशी गले मिली। फिर परमिंदर के पास आकर बोली,

" पम्मी तेरा प्यार तो तब भी दिखता था और आज भी मुझे ज्यों का त्यों दिख रहा है। परंतु एकबार तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं। तू हाॅ कहेगी तो तेरे साथ अपनी जिन्दगी बाॅटने को तैयार हूं। तेरे कारण मैं कभी किसी और की न हो सकी ।बस तू एकबार हाॅ कह दे, प्लीज।"

"परंतु हमारा परिवार, यह समाज?" पम्मी को इन दोनो की ज्यादा परवाह थी।

नेहा ठहाका मारकर हंस पड़ी। "तूने रतिनाथ और विनय से कुछ सीखा कि नहीं? यूं ही उनकी शादी देखने आ गई? अरे आजकल तो कानून भी हमारे साथ है।"

" फिर इसमें हमारी क्या गलती है? हम दो वयस्क इंसान यदि एक साथ जीवन बीताना चाहे तो इसमें किसी को कुछ कहने की क्या आवश्यकता हैं ?"

जी हाॅ, रतिनाथ, विनय, पम्मी, नेहा ये आम लोग नहीं हैं। ये विशेष और असाधारण है जो कि LGBTQ संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं। परंतु यकीन मानिए ये भी हम और आपकी तरह इंसान है और उनके सीने में भी वैसा ही हृदय धड़कता है जैसा कि हमारा। परंतु हम सर्वगुण संपन्न मनुष्यों के पास इतनी सहृदयता कहाॅ है कि इनको भी अपने जैसा समझे। उन्हें तो सिग्नलों पर भीख मांगते और बच्चों के जन्म होने पर पैसा मांगते हुए देखने को ही हम आदी हैं। अगर वे लोग कुछ अलग करना चाहे तो हम थोड़े ही उन्हें ऐसा करने देंगे ? हमारा अहम इसकी कभी इजाजत देगा भी क्या ?


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