Priti Sharma

Horror

4.8  

Priti Sharma

Horror

एक लेखिका का अंत

एक लेखिका का अंत

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उसने ऑफिस से आकर चाय बनाई और चाय के प्याले के साथ मोबाइल उठा लिया।जैसे ही मोबाइल में फेसबुक चलाई, तुरन्त एक नई न्यूज़ दिखाई दी, न्यूज पर लगी फोटो पर उसकी नजर पडी़, ये तो.....

न्यूज चल रही थी मशहूर लेखिका पूर्णिमा शर्मा ने सुसाइड किया और अब उनकी आत्मा ले रही है बदला .. उन सभी लोगों से जो जुड़े हुये हैं रिद्धिमा साहित्य पब्लिकेशन से ... ऐसा क्यों हुआ आइए.......... हम इस रहस्य की गहराई में जाते हैं..... ।

उसने बार-बार इस खबर को ध्यान से सुना। बस इतनी ही खबर आ रही थी..... एकबारगी तो उसे लगा कि शायद प्रचार का कोई हथकंडा है क्योंकि आजकल वह यहां पर "हॉरर प्रतियोगिता" के लिए कुछ कहानियां लिख रही थी।यह उसका प्रथम प्रयास था हॉरर लिखने का...... . मानवीय संवेदना से भरपूर पूर्णिमा भयंकर और वीभत्स डरावनी कहानियां लिखने में अपने को असफल पा रही थी।भूत-प्रेत,पिशाच आदि वह बारे में सोचना ही अपनेआप में तनाव पैदा कर रहा था।सोचती लिखना छोड़ दे।लेकिन लेखन से मजबूर, अपनी जिद की पक्की, सकारात्मक सोच वाली पूर्णिमा हार नहीं मानना चाहती थी..... वह पूरी कोशिश कर रही थी कि अपनी रचनाओं में भयंकरता लाए,भयानक डरावने दृश्यों का समावेश करें और इस जद्दोजहद में तनावग्रस्त हो रही थी।उसका सारा समय इन कहानियों में ही जा रहा था और कल वह शरद के साथ इसी बात का जिक्र कर रही थी......।

लेकिन इसमें आत्महत्या जैसी बात का उसको कोई आभास नहीं था... वह ऐसा कैसे कर सकती है..?

सिर्फ एक लेखन के लिए,सिर्फ एक नंबर पाने के लिए...

नहीं... नहीं.....यह सच नहीं है...

न्यूज में इसके आगे कुछ नहीं बताया जा रहा था,एंकर सिर्फ इतना ही बोल रहा था।

शरद को सुनकर बड़ा झटका लगा। उसका दिल बैठा जा रहा था। कहीं यह सब सच तो नहीं,पर ऐसा कैसे हो सकता है.....

अभी कल ही तो उसकी बात हुई थी...

लेकिन फिर उसने खबर की सच्चाई जानने के लिये पूर्णिमा को फोन किया, पर.... फोन... बंद आ रहा था।

आधे घंटे बाद फिर फोन किया अभी भी बंद था।फिर उसके पति को भी फोन लगाया तो उन्होंने भी फोन उठाया नहीं, फोन शायद बिजी चल रहा था।

अब वो कैसे पता करे... सोचने लगी.. हो सकता है कि लोकल चैनल पर कोई खबर. हो...

उसने लोकल चैनल लगाया पांच मिनट इंतजार के बाद ही उसको ब्रेकिंग न्यूज़ दिखाई दी।मशहूर कवियित्री और लेखिका पूर्णिमा शर्मा का निधन।

कहा जा रहा है कि उन्होंने कल रात सुसाइड कर लिया और उससे पहले एक पत्र रिद्धिमा साहित्य पब्लिकेशन के नाम लिखा है।पुलिस छानबीन कर रही है ये सुसाइड है या कोई हत्या। चलिए हम ले चलते हैं उनके बंगले में जहां वह कल रात तक सुरक्षित जीती जागती थीं।स्क्रीन पर पूर्णिमा का बंगला...

और कैमरा सारे बंगले को कवर करने लगा, पूर्णिमा के बेडरूम तक गया जहां उसकी स्टडी टेबल, कुछ किताबें, और बहुत सी चीजें दिखाई दे रही थीं।

तभी एक और ब्रेकिंग न्यूज़ आ गई और माफी मांगते हुए खबर बदल दी गई।

ऐसा कैसे हो गया शरद सोचने लगी पूर्णिमा तो बहुत ही जिंदादिल,हंसमुख और सकारात्मक सोच वाली थी, जिंदगी में कितने बदलाव आए,इतनी खुशियां और मुकाम उसने अपनी जिंदादिली की वजह से ही प्राप्त किया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था,वह कैसे पता लगाए...

उसका दिल बहुत दुःखी था।

इधर हॉरर प्रतियोगिता का आज दसवां दिन था और निर्णायक मंडल रचनाओं को पढ़ने में और अपने -अपने मत देने में व्यस्त था कि तभी एकदम से लाइट चली गई और पैर पटककर चलने जैसी आहट हुई और फिर कुछ गुर्राहट जैसी आवाजें आने लगी जैसे कोई जंगली जानवर जंगल से शहर में आ गया हो।थोड़ी देर तो किसी को कुछ नहीं दिखा जैसे ही आंखें थोड़ी सी अंधेरे की अभ्यस्त हुईं उन्होंने देखा,

 एक भयंकर शख्स अंधेरे में सुर्ख लाल आंखों से उनको देख रहा था। उसके लंबे काले बाल जैसे हवा की तरह उड़ रहे थे,बड़े बड़े कान ऊपर की ओर उठे हुये थे,उसके ऊपर के दो दांत बाहर निकलकर आगे लटक गए थे और उनसे खून बह रहा था,सबकी सांसें मानो थम गईं।जानवर मानव का मिला-जुला रूप बहुत डराबना था।

यह कौन सी विपदा... आ गई..

एक बार सब ने आपस में चकोटी काटी...

क्या यह सच है या किसी लेखक की कहानी का असर... क्योंकि सभी कुछ देर पहले इसी तरह की हॉरर कहानियां पढ़े जा रहे थे और जो भी उन्हें पसंद....

मतलब कि डरा रही थी उसको मेरिट में लेते जा रहे थे और आज ही क्या....

पिछले नौ दिन से यही क्रम चल रहा था और वे हॉरर कहानियों के इतने अभ्यस्त हो गए थे कि उन्हें भूत- पिशाच प्रेत - डाकिनी, पिशाचिनी सब प्रत्यक्ष से नजर आने लगे थे।एक बार तो सबको यही लगा कि यह सब उनका बहम है या कोई साथी मजाक कर डराने की कोशिश कर रहा है लेकिन जब तक होश आया,वह उनके बिल्कुल नजदीक आ चुका था।उसके बालों से और उसकी शरीर की आकृति से स्पष्ट होने लगा यह कोई महिला है सबकी जुबान जैसे तालु से जा लगी,शरीर जाम हो गए....

क.. क्.. कौन हो तुम..

क्.. क्... क्या.. या.. य्...चा..हिए ..?

बडी़ मुश्किल से कोई एक जिगरवाला बोल पाया।

"कमाल है...... रोज इतनी बीभत्स कहानियां लिखवाते हो, लिखने को मजबूर करते हो..... और जब हकीकत में देखा तो. ..... हलक सूख गया..... हा.. हाहा... हहहहाहा...  ही ही ही.... "बड़ी खौफनाक हंसी थी।

"कल के परिणाम में पहला नाम मेरा ही होना चाहिए..." उसने गुर्राहट भरी आवाज में उन्हें आदेश दिया।

निर्णायक मंडल के अध्यक्ष जितेन्द्र जी ने जैसे-तैसे हिम्मत जुटाई और पूछा,........ "क्.. क.. क्या ना.. ना.. म्. म है तु.. म्हा.. रा..."

"पूर्णिमा... शर्मा.. पूर्णिमा शर्मा..... पूर्णिमा शर्मा..........."सब एक-दूसरे की तरफ देखने लगे।यह नाम तो.....सुना सा लगता है और तभी उन्हें याद आया, अरे हां इसकी कुछ कहानियां शायद हमने पढ़ी हैं,एक के मुंह से अचानक निकला।

अब उसका क्रोध बढ रहा था, हां शायद पढ़ी हैं..... क्योंकि आपने ठीक से पढ़ी ही नहीं, अगर पढ़ी होती तो मेरिट में ऊपर मेरा भी नाम होता...

आप शोषण कर रहे हो नए लेखकों का....

" आप उन्हें प्रेरित नहीं कर रहे.... उन्हें डिप्रेशन में डाल रहे हो... पुराने और जमे हुए लेखकों को बार-बार सम्मानित कर,एक ग्रुप बना रहे हैं... ..

आप सबने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी..."

अब वो ज्यादा आवेश में आने लगी थी।आंखें सुलगने लगीं थीं, दांतों से खून तेजी से टपकने लगा और आवाज में गुर्राहट बढ गई.. गुर्र्र. र्र. गुर्रर्र्र... र्।

सभी की समझ में नहीं आया स्थिति से कैसे निपटा जाए, सिवाय इसके कि वह कह दे कि मेरिट में उसका नाम डाल देंगे....

इस समय इस संकट से निकलने का उनके पास और कोई रास्ता नहीं था और सभी ने एक स्वर में कहा, अ. आ. ज की कहानी में.. प.. प. हल.. ला. नंबर.. आपका ही होगा...

वह जोर से हंसी...गु.. ुर्रर्.. हीहिहीही... हहहहाहा... हहहहाहा.... तुम्हारे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं...... तुम्हारे पास और कोई रास्ता नहीं.......

और उसके बाद मानवभेड़िया जैसा वो भयानक साया वहां से अंधेरे में गायब हो गया।

कुछ देर तो सभी स्तब्ध रहे।लाइट आ चुकी थी।सबने देखा आस पास कुछ भी नहीं था लेकिन जो घटा था वह सत्य था,सब ने एक दूसरे की तरफ देखा।

क्या किया जाए...

इसमें मत विभाजन हो गया। कुछ कह रहे थे, यह सब कोई बहम् या हमें डराने की कोशिश है।अब तो हम बिल्कुल भी ऐसा नहीं करेंगे..

लेकिन कुछ कह रहे थे कि हमें उसका नाम डाल देना चाहिए।

क्या फर्क पड़ता है... कुछ कह रहे थे कि हमें उसकी कहानी फिर से पढ़नी चाहिए... शायद वह ठीक हो। हमने कहीं कुछ निर्णय में गलती की हो...

लेकिन आखिर में बहुमत का निर्णय हुआ कि हम उसका नाम नहीं डालेंगे, दुबारा पढने का समय नहीं है।कल की कहानी में देख लेगें और घण्टे बाद ही प्रतियोगिता के परिणाम प्रकाशित कर दिये गये।

सैर से लौटकर जितेन्द्र जी अखबार पढ़ रहे थे, तभी पूर्णिमा शर्मा का नाम अखबार में दिखाई दिया। एकदम से उनके दिमाग में क्लिक किया और वह उसे पढ़ने लगे पढ़ते शॉक हो गए,, ऐसा कैसे हो सकता है....?

कल रात 11:00 बजे तो हमारे साथ यह घटना घटी थी और यहां सुसाइड का समय 10:30....

ऐसा कैसे.... हो सकता है... उनके माथे पर पसीना आ गया...

मतलब कि कल रात जो कुछ हुआ, वह वास्तव में सच था पूर्णिमा शर्मा मानव भेड़िया बन चुकी है और वह अपनी अंतिम इच्छा पूरी कराने आई थी, जो हमने नहीं की और उसे अब तो.. तक इसका पता लग गया होगा.....

अब क्या होगा.....?

उनके दिल की धड़कन बढ़ गई और उन्होंने तुरंत ऑफिस में फोन किया और एक मीटिंग बुला ली तुरंत टी. वी. ऑन किया और टीवी पर वह न्यूज़ दिखाई दे गयी।

हे भगवान! अब क्या होगा.... उन्हें लगा जैसे सारी मुसीबतें एक साथ उनके सिर पर आ पड़ीं और अब वह कैसे इससे निकलेंगे...

अगर कल रात उन्होंने उसका नाम डाल दिया होता तो शायद

  हॉल में सभी लोग इकट्ठे थे पब्लिकेशन के सभी कर्ता- धर्ता, जो हाॅरर प्रतियोगिता के निर्णायक थे। सभी की आंखों से भय टपक रहा था। दिलों कीधड़कन 140 की स्पीड से दौड़ रही थी, डर था कि कहीं हार्टअटैक ही ना आ जाए।

मतलब यह हाॅरर सीरीज पढ़ते, लिखते हुए हम खुद ही हॉरर का शिकार हो जाएंगे...

पढ़ना अलग बात है, देखना अलग बात है और.....

भोगना.... ओह.. नो..

अब क्या होगा....? यही चिंता हम सबके चेहरे पर लिखी हुई थी।

क्या किसी से मदद लें...? जैसा कि अक्सर कहानियों में ली जाती है या उसकी संतुष्टि के लिए हम दोबारा परिणाम घोषित करें....

कल के परिणाम हम कैंसिल कर सकते हैं...

लेकिन वह तो पाठकों तक जा चुके..

तो क्या हुआ....

नहीं अब ऐसा नहीं हो सकता....

उसको तो पता लग ही गया होगा...

सभी अलग-अलग तरह की सलाह दे रहे थे लेकिन किसी को कोई भी बात नहीं जम रही थी। अंदर ही अंदर चिंता खाए जा रही थी कि अब उनका भविष्य क्या होगा.. आपसी बातचीत के बाद भी कोई संतोषजनक हल नहीं निकला, सिवाय इसके कि सब भगवान के भरोसे छोड़ दें और ईश्वर से प्रार्थना करें कि वो उन पर रहम करे...

क्या इतनी छोटी सी बात के लिये कोई सुसाइड कर सकता है...?

सबके दिमाग में अलग-अलग प्रश्न चल रहे थे।निष्कर्ष कुछ ना निकला और सब अपने-अपने घर की तरफ चल दिये।

जितेन्द्र जी की गाड़ी ड्राइवर चला रहा था कि तभी ड्राइवर ने ब्रेक मारा,

क्या हुआ..... क्लब से लौटते हुये रात्रि के 8:00 बज चुके थे,थोड़ी सी ड्रिंक भी अन्दर कर चुके थे।सारे दिन पूर्णिमा शर्मा उनके दिमाग में छाई रही थी,जिससे बचने के लिए ही क्लब गए थे और वहां ड्रिंक पी ली थी।

ड्राइवर ने बताया ऐसा लगा जैसे गाड़ी के आगे कोई साया आ गया,

जितेन्द्र जी तो पहले से डरे हुये थे.. उनका दिल बहुत जोर से धड़का और फिर धड़कना भूल गया... एक लम्बा- चौड़ा साया आया और राजेंद्र जी के ऊपर झुक गया उसके नुकीले दांत उनके सीने में गड़ गये।

  पब्लिकेशन की कर्ता-धर्ता मीनाक्षी जी डिनर के बाद पति के साथ घूमने निकली थीं।तभी ऐसा लगा जैसे कोई पीछा कर रहा है,उन्होंने पीछे मुड़कर देखा कुछ नहीं था। पति पूछने लगे, क्या हुआ...?

क्..कुछ नहीं.. लेकिन अंदर ही अंदर मीनाक्षी जी डरने लगीं और रात की घटना उनके जेहन में ताजा हो गयी.....

क्या सच में कुछ अघटित घटेगा उनके साथ......

उन्होंने दिमाग को झटका दिया.... मैं कुछ ज्यादा सोच रही हूं शायद...

तभी ऐसा लगा जैसे किसी ने पूरा जोर लगाकर उन को धक्का दिया......... सर सीधा सड़क पर लगे बिजली के खंभे से टकराया और.... वहीं खुल गया....... माथे के बीचो-बीच से खून.. धल. धल.... करके निकलने लगा। पति की समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ था..?

तभी धीरे धीरे, खून जमीन से गायब होने लगा मानो कोई साथ के साथ साफ करता जा रहा हो।

कौन... न.. कहते हुये वे बेहोश हो गए।

     जयप्रताप मन ही मन बेचैन थे।रात की घटना और फिर सुबह की खबर ने उसकी शांति समाप्त कर दी थी, जब से पता लगा था कि पूर्णिमा शर्मा सुसाइड कर चुकी है, उन्हें एक पल चैन नहीं था।सलीम, गौरव और, राघव तीनों साथियों को फोन कर होटल में बुलाया।

    वास्तव में सभी डरे हुए थे।डर को भुलाने के लिए सभी ने ड्रिंक मंगवाईं,जितना पीते,उतना ही रात की घटना ज्यादा याद आती, उन्हें डराती,उन्हें लग रहा था कि पूर्णिमा शर्मा की आत्महत्या के शायद वह भी जिम्मेदार हैं और यह फीलिंग उन्हें भूलने नहीं दे रही थी गट.. गट.. गटागट... जाम पर जाम पिए जा रहे थे, जब तक कि होश रहा।

       9:30 बज रहे थे, ड्राइवर ने उनको घर छोड़ने के लिए एकएक कर नशे की हालत में गाड़ी में बिठाया।अभी गाड़ी चार-पांच किलोमीटर ही चली थी कि अचानक रुक गई।

      क्या कमी है, वह उतरकर देखने लगा,देखने से कुछ समझ नहीं आया।

शायद कोई सहायता मिले... वह थोडा़ आगे गया और तभी एक ट्रक तेज गति से आया और गाड़ी को खींचता, घसीटता.. हुआ दूर तक ले गया।गाड़ी के परखच्चे उड़ गए थे।सड़क के बीचो बीच एक काला साया, लाल लाल आंखों से गाड़ी को घूर रहा, उसके ठहाके फिजां में गूंजने लगे।हाहा ही ही ही.. ई.. इ..

आवाज इतनी भयानक थी कि ड्राइवर और कुछ ना देख पाया.. और बेहोश हो गया।

   पुलिस जब आई तो सड़क पर खून नाम मात्र के लिये भी नहीं था।ऐसा कैसे हो सकता है...?

सवाल.... सवाल बनकर रह गया।

    रजनीशकांत अपनी लाइब्रेरी में बैठे थे और दिन के वाकये पर गौर कर रहे थे। क्या यह सच हो सकता है.. कल रात से ही वो परेशान थे,वह तो चाहते थे कि उसको मैरिट में डाल दिया जाए लेकिन बाकी साथी माने नहीं.. और उन्होंने कोई ज्यादा जोर नहीं दिया लेकिन जब से पूर्णिमा शर्मा की आत्महत्या के बारे में पता लगा था,वह अपने को जिम्मेदार मान रहे थे... काश वे गौर से सभी रचनाएं पढते।

उन्होंने पूर्णिमा शर्मा की कुछ रचनायें पढीं थी और तारीफ भी की थी।वे खुद लिखते थे और जानते थे कि इस तरह की प्रतियोगिताओं में पूर्णतः न्याय तो नहीं हो पाता।जो स्थापित रचनाकार होते हैं वो सदस्यों के ध्यानाकर्षण का केन्द्र होते हैं और वो वरीयता भी पा जाते हैं।निर्णायक मंडल के सदस्य आपस में कुछ रचनाएं बांट लेते हैं और नंबरिग द्वारा मैरिट बनाकर परिणाम घोषित कर देते हैं।

हर प्रतियोगिता में ऐसे ऊपर के पन्द्रह बीस नियमित जुड़े रचनाकार बाजी मार ले जाते हैं।बचे स्थानों पर बहुत ने नवांकुर होते हैं, जिसमें जिसकी किस्मत काम कर जाये..

    वह पूर्णिमा की हॉरर रचनाएं पढने लगे।ये उसका पहला प्रयास था और उन्होंने तारीफ कर रखी थी..

दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं, वो अपने जोनर से अलग लिखने का प्रयास कर रही थी पर उसकी बेसिक नेचर उसे रचनाओं में भी मानवीय बना रही थी।फिर छठी, सातवीं और ये आठवीं... यहां रजनीशकांत जी रुक गए,

ये रचना तो उन्होंने पढ़ी थी,तारीफ भी की थी और यह भी कहा था कि यह तो पिछले दिन की है,आज दूसरा विषय है।इसके बाद उन्होंने पूर्णिमा का जवाब पढ़ा, जिसमें लिखा हुआ था कि,

"हां आज की रचना उसने रात को पूरी की थी लेकिन नेटवर्क की प्रॉब्लम की वजह से वह प्रकाशित नहीं हो पाई और पब्लिकेशन की किसी कमी की वजह से ड्राफ्ट में सेव भी नहीं हो पाई और सुबह जब उसने प्रकाशित नहीं देखी और सेव भी नहीं देखी तो बहुत ज्यादा बुरा लगा, डिप्रेशन में आ गई,।

 अपने स्वभाव के विपरीत हॉरर लिखने की कोशिश कर रही हूं लेकिन मुश्किल बहुत आ रही है,सोचती हूं लिखना छोड़ दूं फिर सोचती हूं,आधा रास्ता पार कर लिया है,पूरा करके ही छोडूंगी।"

     रजनीशकांत जी सोच में डूब गए इसका मतलब कि सात-आठ परिणाम आने के बाद अपना नाम ना देख कर वह मायूस हो रही थी और उसने इसका जिक्र भी किसी- किसी से किया।

और इसी टेंशन में किसी पल वो बहुत ज्यादा भावुक हो गई। एक छोटा सा ख्वाब उसके लिए इतना मायने रखता था..

यह तो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।जिंदगी में ऐसी छोटी मोटी प्रतियोगिताएं तो पता नहीं कितनी आती- जाती है लेकिन उनसे निराश होकर सुसाइड कर लेना । 

      पूर्णिमा शर्मा की अभी तक की रचनाओं में उन्होंने उसको हमेशा बहादुर, बुद्धिमान,संवेदनशील,सकारात्मक ही पाया था, रचनाओं के जरिए जितना जाना था उसको, सुसाइड करना उसके बिल्कुल विपरीत था।अब उन्होंने उसकी आखिरी रचना खोली।

  "ब्लडी मैरी" वास्तव में शानदार रचना थी।कथानक में संवेदना के साथ मनोवैज्ञानिक चित्र मानव मस्तिष्क का, हमें यह रचना वास्तव में... इस पर विचार करना चाहिए था। यह बातें सोचते हुए उनकी आंखों में अनदेखी पूर्णिमा शर्मा के प्रति करुणा जागी और दो बूद आंसू उस कहानी के ऊपर गिर गए, तभी उन्हें लगा कि कोई कमरे में आया सामने साक्षात पूर्णिमा शर्मा खड़ी थी,

"कहिए वर्मा जी..... रचना पसंद आई.... अच्छी है ना".... वर्मा जी की समझ में नहीं आया, क्या जवाब दें............." हां... बहुत अच्छी... रचना है। "

" हम सभी से गलती हुई है। मैंने चाहा था कल कि.....".

"फिर अब आप इसकी भरपाई कैसे करेंगे....".

"तुम बताओ... मुझे क्या करना चाहिए......"

मैं तुमसे माफी मांगता हूं कि उस निर्णायक मंडल में मैं भी था लेकिन मैं तुम्हारी अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं कर सका, इसके लिए जो भी सजा तुम.... मुझे दो मंजूर है।

पूर्णिमा जोर से हंसी...हं हं.. हीही.. .. हाहाह. हाहा... हंसते हुए उसका चेहरा बदल गया और वह भेडि़यामानव के रूप में आ गई।

अब मेरे लिए क्या बाकी है... अब तो जो भी करना है मैंने ही करना है..... कहते-कहते हैं उसका चेहरा भयानक हो गया....... आंखो से आग निकलने लगी और दांत मुंह से निकल कर बाहर लटकने लगे, बाल तेजी से हवा में घूमने लगे।

.... वह नजदीक आई कि उसकी निगाह मोबाइल पर गयी, जहां उसकी रचना खुली पड़ी थी।

"ब्लडी मैरी" देखते ही वो कुछ शांत हो गई।

उन्होंने आंखें बंद कर ली थीं और अपने को भगवान भरोसे छोड़ दिया था। जो कुछ करना था....

पूर्णिमा शर्मा ने ही करना था... ,भगवान का स्मरण करते हुए जब उन्होंने थोड़ी देर बाद आंख खोली तो. देखा ..

पूर्णिमा वहां नहीं थी।

 रचना और रोमा दोनों डाइनिंग टेबल पर परिवार के साथ खाना खा रही थीं, दोनों खामोश थीं।सभी ने जब खामोशी के बारे में पूछा तो उन्होंने पूर्णिमा शर्मा की सुसाइड के बारे में सभी को बताया और रात कल रात होने वाली घटना के बारे में भी...

सुनकर सभी परेशान हो गए, सुनते हैं अतृप्त आत्माएं भटकती हैं और जिनको अपनी मौत की वजह मानतीं हैं, उससे बदला लेने आती हैं। तुम सभी सावधान रहना... कल हम किसी तांत्रिक या पुरोहित से मिलकर कोई उपाय करते हैं।

  रचना,रोमा दोनों खाने के बाद ऊपर बालकनी पर चली गईं और पूर्णिमा के बारे में चर्चा करने लगीं....

हमने भी तो उसकी कुछ रचनायें पढीं थीं ना,अच्छा लिखती थी।हमने कुछ तो पक्षपात किया शायद.....

दोनों खामोश हो गईं।

और कल और भी बुरा किया....

अगर हम उसकी अन्तिम इच्छा पूरी कर देते......

तभी लगा जैसे कोई पीछे खड़ा है, देखते ही उनके होश गुम हो गये... शैतान का नाम लिया और शैतान हाजिर..

दोनों के दिमाग में एक साथ आया...

त.. तु.... म. म्.... यहां... दोनों हकलाते हुये बोलीं।

हां मैं यहां.... अब आना ही था....

मुझे जो करना होता है... मैं वह करती ही हूं...

चाहे वह रचना हो या मिटाना...

अब जब मैं खुद को मिटा सकती हूं तो मुझे मिटाने वालों को क्यों नहीं...... इसमें देरी... ऊं.. हूं.. कभी नहीं.....

क्. क.. क्या... मतलब... दोनों के मुंह से एक साथ निकला।

भयानक हंसी के साथ पूर्णिमा का चेहरा बदल गया और आंखों से आग निकलने लगी,मुंह के अंदर से दोनों दांत बाहर निकल आए,बाल गोल-गोल हवाओं में चक्र की तरफ घूमने लगे।उसको भयानक रूप में देख उमा और मेघना भयभीत हो गईं।उन्होंने चीखने की कोशिश की लेकिन आवाज उनके गले में अटक कर रह गईं। तभी पूर्णिमा ने अपने नुकीले पंजों वाले दोनों हाथ उन दोनों की गर्दन पर लपेट दिये और ऊपर उठा दिया।बालकनी से नीचे धड़ा.. म् म्...

जमीन पर दोनों के शरीर बिना आत्मा के पहुंचे,आत्मा बीच रास्ते ही साथ छोड़ गई।चारों तरफ खून और सिर के टुकड़े बिखर गए... ।

आवाज सुनकर घर के लोग आये तब सब समाप्त।कुछ देर में खून भी ऐसे गायब हुआ कि एक बूंद भी ना दिखी.....

परिवार वालों के लिये ये एक और बड़ा सदमा था।

सुबह सुबह रिद्धिमा साहित्य पब्लिकेशन से जुड़े आठ व्यक्तियों की असामयिक मौत की असामान्य और भयानक खबर अखवार की हैडलाइन थी।

रजनीशकान्त के घर पत्रकारों का जमघट था और सभी उनसे पूर्णिमा शर्मा के बारे में सवाल पूछ रहे थे।

 निर्णायकों में अभी एक और बाकी है... क्यों....

क्या पूर्णिमा शर्मा ने उसे छोड़ दिया... या इसके पीछे कुछ और राज छिपा हुआ है...??? 


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