#शिक्षकदिवस"यूँ बढ़ा आत्मविश्वास
#शिक्षकदिवस"यूँ बढ़ा आत्मविश्वास


माँ और प्रकृति हमारी प्राकृतिक शिक्षक होती है। इसके अलावा कभी न कभी हम सभी के जीवन में बहुत से ऐसे अनेक शिक्षक आते हैं जो जीवन में अनेक पाठ पढाकर जाते हैं।कभी वह वह स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापक होते हैं तो कभी कोई रिश्तेदार,परिचित और कभी-कभी कोई अनजान शख्स भी और कभी-कभी हमें पता ही नहीं लगता कि उस एक इन्सान के कारण हम क्या हासिल कर पाये और जब अहसा़स होता है तो बताने के लिए वो हमार सामने नहीं होता।
यूं तो मुझे जीवन में सीखें देकर आगे बढाने में माँ की महत्वपूर्ण भूमिका रही लेकिन समय समय पर और भी लोग मेरे जीवन में आते रहे जिन्होंने मुझे प्रभावित किया और समय-समय पर मैंने उनके बारे में लिखा पर आज एक और व्यक्तित्व जो मेरी आँखों के सामने आ रहा है वह है जिसने मेरे अंदर आत्मविश्वास पैदा किया।
मैं जानती हूँ कि उन्हें इस बारे में पता नहीं होगा। मैंने भी तक अपने अन्दर होने वाले इस परिवर्तन पर ध्यान नहीं दिया जो बहुत ही सहज तरीके से आना आरम्भ हुआ था लेकिन मैं महसूस करती हूँ कि उनकी वजह से मेरे अंदर आत्मविश्वास जागृत हुआ और मेरा व्यक्तित्व धीरे-धीरे बदलने लगा।
वह थे मेरे जी एस ए एस इंटर कॉलेज,मुरसान के प्रिंसिपल "श्री राजपाल सिंह"
ज्यादातर छात्र उन्हें कड़क कहा करते थे।मैंने सुना था कि कुछ समय पहले उनकी किसी बात से नाराज होकर कुछ स्टूडेंट्स ने उनके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया था जिससे उनका चेहरा बिगड़ गया था और लोग पीठ पीछे ने "भर्रा भर्रा" (जला चेहरा) शब्द कहकर पुकारते थे लेकिन पता नहीं क्यों मैंने कभी इस शब्द से उन्हें नहीं पुकारा और ना ही मुझे यह शब्द कभी पसंद आया उनके चेहरे को देखकर कभी भी नफरत या घृणा मेरे अंदर नहीं आई।
वह मुझे कभी भी सख्त नहीं लगे,सहृदय ही लगे लेकिन इसका कारण उनका मेरे साथ व्यवहार ही था लेकिन अब आप पूछोगे कि उन्होंने मेरे अंदर आत्मविश्वास कैसे जगाया?
तो हुआ यह कि पहले मैं थोड़ी शर्मीली टाइप लड़की थी और हमारा इंटर कॉलेज को एड था और इलाका जाट बाहुल्य जो कुछ हुडदंगी टाइप हुआ करते थे लड़कियां वहां के माहौल में डरी सहमी रहती थीं क्योंकि लडकियों से छेड़छाड़ कर देना वहां आम सी बात थी। हमारे प्रिंसिपल सर का सब्जेक्ट था पॉलिटिकल साइंस और वह हमें पढाया करते थे। हम सिर्फ पांच लड़कियों ने ही प्लस वन में पॉलिटिकल साइंस ली थी और क्लास में आगे की सीट पर बैठा करते थे।
साथ ही ये भी
बता दूं कि मेरे दादा जी,नाना जी और बाद में पापा उसी इंटर कॉलेज में लैक्चरर रहे थे।दादा जी व नाना जी रिटायर हो चुके थे और पापा जी दूसरे शहर में ट्रांसफर हो चुके थे। पढ़े-लिखे परिचित परिवार से होने के कारण उनके दिमाग में मेरी एक इंटेलिजेंट स्टूडेंट की छवि थी। जैसे कि वह लेक्चर थे तो लेक्चरर की तरह ही चैप्टर के पॉइंट ब्लैक बोर्ड पर लिख करके एक्सप्लेन करते थे और फिर हमसे पूछा करते थे।इसलिए हमें उनकी बातें ध्यान से सुननी होती थी और जवाब भी देते थे। और सच पूछा जाए तो पॉलिटिकल साइंस सब्जेक्ट मुझे अच्छा भी लगता था और मेरी रुचि इसे पढने में बहुत थी।
हमारे यहां पर रिसैस से पहले 4 पीरियड और इसके बाद भी चार लगा करते और पांचवा पीरियड पॉलिटिकल साइंस का हुआ करता था जोकि प्रिंसिपल सर पढ़ाया करते थे। उन्होंने हम लड़कियों को कह रखा था कि हम दरवाजे के सामने आकर खड़े हो जाएं क्योंकि मिलने वालों की भीड़ उनके ऑफिस में रहा करती थी जिसकी वजह से उन्हें पता ही नहीं लगता था कि रिसैस खत्म हो चुकी है पांचवां पीरियड लग गया है।और हम अक्सर बरामदे के आगे जाकर खड़े हो जाते ताकि सर हमें देख लें और उन्हें याद आ जाए कि पीरियड लग चुका है और जैसे ही सर की निगाह हम पर पड़ती और वह चेयर से उठ खड़े होते और फिर हमारे पीछे चल पड़ते। लेकिन इस बात को कई बार मजाक में लिया करते थे कि सर हमें कितनी रिस्पेक्ट करते हैं कि हमें देखते ही कुर्सी से उठ खड़े होते हैं,हमारे पीछे चल पड़ते हैं।
सच में कमउम्र में हम बातों को किस नजरिए से देख लेते हैं और एक साधारण सी बात को भी अलग मोड़ देकर अलग सील करके उसे खुश हो जाते हैं।
लड़कों की क्लास में इस तरह से प्रिंसिपल से डायरेक्ट बातचीत और उनके तबज्जो देने ने मेरे जहनी डर और शर्मीलेपन को धीरे धीरे कम कर
दिया था। उन्हीं की तरह बाकी लेक्चरर भी मेरी तरफ तवज्जो दिया करते थे।और प्लस वन और प्लस टू के दो सालों ने मेरे अंदर गजब का कॉन्फिडेंस पैदा कर दिया था। और इस आत्मविश्वास ने मेरे जीवन की दिशा और दशा बदली और आज भी मैं इस बात का श्रेय उन्हें देती हूँ और जब तब उन्हें याद भी कर लेती हूँ।अपने उन शिक्षक को मेरा शत शत नमन!
हो सकता है आज वह इस दुनिया में हों या ना भी हों,परन्तु वह जहां भी हों,उन्हें मेरा सादर नमन!
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
05/09/2022