STORYMIRROR

प्रीति शर्मा

Drama Inspirational

3.5  

प्रीति शर्मा

Drama Inspirational

"अटूट बंधन"

"अटूट बंधन"

3 mins
211


 सुबह-सुबह ही प्रतिमा सुभाष में छोटी सी बात पर ही लड़ाई हो गई।

पति-पत्नी की लड़ाइयां होती ही छोटी-छोटी बातों से शुरू और... हमेशा पत्नी पहल करके उसे समाप्त कर देती हैं।

दस साल हो गए थे दोनों की शादी को, इसी तरह से नोकझोंक में जिंदगी जीए जा रहे थे, दो छोटे छोटे बच्चे थे रिंकी और प्रणव दोनों बच्चे स्कूल चले गए थे। सुभाष और प्रतिमा को भी अपने अपने ऑफिस जाना था। सुभाष चाहता था कि पेरेंट्स टीचर मीटिंग में प्रतिमा ही चली जाए क्योंकि उसकी मीटिंग है और प्रतिमा का कहना था कि हमेशा वही अकेली जाती है, आज सुभाष को चले जाना चाहिए क्योंकि उसके ऑफिस में भी आज अर्जेंट मीटिंग है।

बस यही छोटी सी बात दोनों के बीच लड़ाई का सबब बनी और लड़ाई करते करते पिछले दस सालों में हुई लड़ाइयाँ भी जुड़तीं गईं।

सुभाष की भिन्नाकर ऑफिस चला गया और रो धोकर प्रतिमा भी फ्रेश होकर अपने ऑफिस चली गई लेकिन उसका मन ऑफिस के काम में बिल्कुल नहीं लगा।. हालांकि आज की मीटिंग टल गई थी, उसे खुश होना चाहिए था लेकिन वह दुखी थी।

हमेशा वही क्यों झुके, हमेशा वही क्यों समझौता करें? क्या सारी जिम्मेदारी पत्नी और मां की ही होती है?

पति और पिता को कोई सामंजस्य नहीं बिठाना चाहिए? दस साल की गृहस्थी में प्रतिमा हमेशा ही झुकती आई थी लेकिन आज उसका मन विचलित था। काफी देर तक सोच में बैठी रही।सोच विचार में इतनी डूबी कि दो बार फोन की घंटी बजी, वह भी उसे सुनाई नहीं दी और जब पियोन ने आकर उसे बताया कि सर बुला रहे हैं, तब उसने घड़ी पर नजर मारी।

2:00 बज चुके थे लंच का टाइम हो चुका था और parent-teacher मीटिंग का टाइम भी निकल चुका था। उसे बड़ी कोफ्त हुई, रोना भी आया कि इससे अच्छा तो बच्चों के स्कूल ही चली जाती, सुभाष तो गया नहीं होगा। बच्चे भी मां-बाप के 9:00 से

निराश हुए होंगे। बॉस से मिलने के बाद उसने अपना काम निपटाया और अपने फोन को साइलेंट पर कर लिया। लौटते हुए रास्ते में जो मंदिर पड़ता था, जिसमें वह अक्सर जाना चाहती थी पर कभी गई नहीं। आज वहां जाकर बैठ गई,अंदर बहुत कुछ उमड़ घुमड़ रहा था। ईश्वर के सामने उसने जैसे अपने मन का दर्द रखा।

क्या उसे कोई हक नहीं कि वह भी अपनी तरह से जीवन जीये...

कभी उसका पति भी उसकी भावनाओं की कदर करें... उसको सहयोग दें....?

जब भावनाओं का ज्वार आंसू के जरिए निकल गया तो उसने अपने को हल्का महसूस किया और घर की तरफ चल दी। हमेशा वह 6:00 बजे घर पहुंच जाती थी और बच्चे ट्यूशन पर हुआ करते थे। आज वह 7:00 बजे पहुंची देखा दरवाजा खुला हुआ है। बच्चे घर में ही हैं, अब तक तो सुभाष भी आ गया होगा, उसने सोचा।

पता नहीं बच्चे और सुभाष क्या सोच रहे होंगे...?

उसका मन फिर से मोह में फंसने लगा। बच्चों को नाश्ता मिला होगा कि नहीं...?

सुभाष तो आते ही चाय पीते हैं...?

वह उसके बारे में क्यों सोचे... जब उसके बारे में नहीं सोचता...,उसने अपने मन को झटका और सीधे अपने बेडरूम में चली गई। कमरे में जाते ही उसने ड्रेसिंग टेबल पर अपना पर्स रखा और उसकी निगाह उसके शीशे पर पड़ी, जहां लिखा गया था...

ये बन्धन तो प्यार का बन्धन है......

रिश्तों का... संगम है...

ये बंधन तो...

गाना गाते हुए सुभाष अंदर आ रहा था, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी हाथों में ट्रे, ट्रे में दो प्याले चाय।

प्रतिमा अपलक सुभाष को देखती रह गई। उसका ये रूप पहली बार देखा था।

सुभाष ने ट्रे टेबल पर रखी और उसको बांहों में भर लिया, तुम्हारे फोन ना उठाने से यह रिश्ता टूटेगा नहीं... प्रतिमा...,यह अटूट बंधन है।

और प्रतिमा.... इस बंधन में फिर से बंध गई।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama