"ससुराल रूपी पिंजरा"भाग-5
"ससुराल रूपी पिंजरा"भाग-5


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धीरे-धीरे ससुराल में पूनम ने अपने आप को ससुराल के रंग-ढंग में ढाल लिया और घर की सभी जिम्मेदारियां संभाल लीं।वह बड़े घर की बहु की तरह व्यवहार करने लगी।
अब आगे....
अब वह पार्टियों में सभी से बहुत घुल मिल जाती, इतना कि घर वालों पर भी उसका ध्यान नहीं रहता था सभी मेहमान उसकी बड़ी तारीफ करते और उसे अपने घर इनवाइट करते कभी पति के दोस्त उसके पति को अपने साथ लाने को कहते तो कभी सास की सहेलियां उसकी तारीफ करतीं।
"तुम्हारी बहू बहुत समझदार और सुंदर है।बहुत किस्मत वाली हो।"
अपने से ज्यादा बहू को तबज्जो मिलते देख सास का चेहरा बुझ जाता और औरतों वाली ईर्ष्या उसकी सास के मन में पैदा होने लगी।उन्हें लगने लगा कि बहु एक ही महीने में कुछ ज्यादा ही आधुनिक होती जा रही है।उनके घर के रीति-रिवाज,खानपान और तौर-तरीकों को कुछ ज्यादा ही अपना लिया है।घर में भी नौकरों से काम लेना और घर के छोटे छोटे फैसले वह स्वयं ले रही थी।उन्हें घर में अपना स्थान कम होता लगा।
जब भी वह टोकतीं वह हमेशा कह देती,
"मम्मी मैं बेशक छोटे गरीब घर की हूं लेकिन सीखने में मैं आप पर हूं।आपने मेरे को चुनकर भूल नहीं कि मैं आपको दिखा दूंगी आपकी पसंद नंबर वन है।आपकी सभी सखी सहेलियाँ आपसे ईर्ष्या करेंगी।"
अब इस पर वो आगे कुछ ना कह पातीं।
तीज आने वाली थी और एक दिन उसके पिता उसे लेने आ गये।वह देखकर बहुत खुश हुई।पर उसने सास के सामने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और ना ही उत्साह प्रदर्शित किया।वह अपनी योजना में कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी।वह जान गयी थी कि अगर उसने अपने मायके का मोह दिखाया तो ससुराल वाले उसे वहां से दूर रखने की कोशिश करेंगे।
पिता ने उसकी सास से उसे ले जाने के बारे में कहा तो वह बीच में ही बोल पडी़,
"पापा मैं नहीं आ पाऊंगी इतने दिनों के लिए,मम्मी जी सोशल कामों में बिजी रहतीं हैं।घर में पार्टी बगैरह का इन्तजाम भी देखना होता है।मम्मी जी के भाई आयेगें राखी पर और... बात अधूरी छोड़कर उसने आगे कहा आप शिवम को भेज देना।"उसकी सास उसको बोलते देख हैरान रह गयी।पूनम इतनी जल्दी इतनी ज्यादा बदल गयी कि मायके भी नहीं जाना चाहती।
" नहीं.. नहीं पूनम बेटे हम मैनेज कर लेंगे।तुम कुछ दिनों जाकर रह आओ।वैसे भी शादी को छह महीने हो गये और तुम एक दिन भी जाकर रह नहीं पाईं मायके।"
उसको हैरानी में डालते हुये उसकी सास ने मुलामियत भरे स्वर में कहा।अब तक उसके ससुर और पति भी आ चुके थे।दोनों ने उसके पिता से घर में सभी का हालचाल पूछा।
सच कहते हैं कि अगर आपको मान पाना है और स्वाभिमान से जीना है तो दूसरों को भी मान और अपनापन दो और देखोगे कि पत्थर क्या इंसान भी बदलने लगते हैं लेकिन जरूरत है धैर्य और संयम की परन्तु परिस्थितियां विपरीत होने पर साथ में बुद्धि और चतुराई भी चाहिए।उसके पिता के आने का कारण जान ससुर ने सहमति दे दी पर नितिन थोड़ा चुप हो गया।
सासु की आज्ञा पालन कर पूनम कमरे में आ पैकिग करने लगी।मन ही मन वह बहुत खुश थी।सासु भी पीछे-पीछे आ गयी।
पूनम ने पूछ लिया"क्या मैं सच में इतने दिनों के लिए जाऊं..?
क्यों...? तुम्हारा मन नहीं लगेगा वहां... या तुम्हें यहां के ऐशो आराम की आदत पड़ गयी है" सास ने व्यंग्य करते हुए कहा।
"अब बहु तो आप ही की हूं।पैसेवालों की कभी गरीबों से निभी है क्या..?
वैसे भी गरीब मायके वालों से सम्बन्ध रखने से क्या फायदा...?" सभी ऎसा करते हैं तो...
उसने एक तीर निशाने पर मारा। सास ने भौचक्का होकर उसे देखा पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।उसने आगे जोड़ा,
वैसे मम्मी आपके मायके वाले कहां रहते हैं शादी में नहीं देखा.... मैंने..?
" तुम तैयार होओ... मैं तुम्हारे पापा को चाय नाश्ता करवाती हूं।"
" ओ हां..वो तो मैं भूल ही गयी हमारे यहां मेहमानों का बहुत ख्याल रखा जाता है। "पूनम ने एक और तीर फेंका।
जैसे ही वह जाने को मुडी़ं,पूनम पूछ बैठी
" मम्मीजी अब मुझे वहां सभी के लिए भेंट भी तो ले जानी होगी आखिर बडे घर की बहू हूं तो घर का मान तो रखना पडे़गा ना... ।"
" हां.. मैं अभी इन्तजाम करवाती हूं।" कहकर वो जल्दी से मुड़ गयीं।
कुछ देर बाद उसकी सास वापिस कमरे में आई और एक साड़ी और सिंगार का सामान देकर तीज के व्रत विधान समझाने लगी, तुम्हारी पहली तीज है जो मायके में ही मनाते हैं।
उसने झुककर आशीर्वाद लिया और सभी सिर माथे लगा अपने सूटकेस में रख लिया।बहुत से तामझाम के साथ उसकी सास ने गाड़ी में बिठाकर उसे मायके के लिए विदा किया।
क्रमशः - -