प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Children Stories Drama Fantasy

4.0  

प्रीति शर्मा "पूर्णिमा

Children Stories Drama Fantasy

"परियों की कहानी"

"परियों की कहानी"

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दिव्या एक बिन मां की बच्ची थी।उसकी मां एक दुर्घटना में चल बसी थी और उसके पिता ने कुछ समय बाद दूसरी शादी कर ली।दूसरी मां ने दिव्या को को मां का प्यार देने के बजाय दुख देना शुरू कर दिया और फिर एक दिन अनाथ आश्रम में छोड़ दिया।

6-7 साल की दिव्या के लिए अनाथ आश्रम में रहना बहुत ही कठिन कार्य था। अभी-अभी उसकी मां उससे दूर हुई थी और अब पिता से भी दूर हो गयी थी।अनाथ आश्रम में ऐसी बहुत सी बच्चियां थी जिनके मां बाप नहीं थे और उन्हें उनके बिना रहने की आदत थी लेकिन दिव्या ने तो अपना बचपन अपने मां-बाप के साथ ही बिताया था और बहुत प्यार पाया था।

  यहां वह हमेशा उदास रहती और अपनी मम्मी पापा को याद कर रोती रहती।आश्रम का माहौल भी कोई ज्यादा खुशनुमा नहीं था।बस समय पर बच्चों को काम चलाऊ खाना-पीना मिल जाता और उनको छोटे-छोटे काम बांट दिए गए थे जो करने पड़ते।

 काम क्या होता है ?

दिव्या को तो यह पता ही नहीं था।वह बाकी सब बच्चों से अलग थी क्योंकि उसके पास उसके कपड़ों की एक पूरी अटैची,उसके खिलौने से भरा एक बैग और उसके मम्मी पापा की कुछ फोटो उसके पास थीं।

 जब भी वह अकेली होती वह अपने छोटे से बिस्तर पर फोटो लेकर उनको याद करती।सभी बच्चों को अपने मां-बाप के लाड़-प्यार के बारे में बताती।

  बच्चे बड़े ध्यान से उसकी बातें सुनते और कल्पना करते कि अगर उनके मां-बाप होते तो क्या वह भी इतना प्यार पाते लेकिन फिर सब यह सोचते कि अच्छा ही हुआ कि उनके मां-बाप नहीं थे।मां-बाप होने के बाद फिर अगर उन्हें यहां आना पड़ता तो उन्हें कितना कष्ट होता ?

बड़े बच्चे मिलकर दिव्या को भी समझाते कि अब उसे बिना मां-बाप के रहने की आदत डालनी चाहिए।

एक दिन आश्रम के बगीचे की बैंच पर मां की तस्वीर लेकर दिव्या आंसू बहा रही थी।तारे आकाश में जगमगा रहे थे।तभी सुनहरी परी घूमते-फिरते वहां पर आई।छोटी सी प्यारी बच्ची को अकेले देख परी को उससे मिलने की इच्छा हुई।

  यह तो बिल्कुल हमारे परीलोक के बच्चों जैसी ही है।गोरा रंग,गुलाबी गाल नीली आंखें, बस उसके पंख नहीं है।बहुत सुंदर बच्ची है।

पर यह.. रो क्यों रही है.. ?

परी को उसे देखकर दया आई और उसने पास आकर प्यार से पूछा,

नन्ही राजकुमारी तुम क्यों रो रही हो.. ?

दिव्या ने देखा उसके सामने मम्मी की सुनाई कहानियों जैसी ही कोई परी खड़ी हुई है।

उसने सुबकते हुये पूछा, "तुम कौन हो,क्या परी हो.. ?

परी ने कहा, हां मैं परी ही हूं और परी लोक से आई हूं।

तुम मुझे कैसे जानती हो राजकुमारी.. ? परी ने पूछा।

मेरी मम्मी ने आपकी कहानियां सुनाईं थी ना.. दिव्या का रोना रुक गया था।

सुनहरी परी की उत्सुकता बढ गयी।

और क्या बताया तुम्हारी मम्मी ने हमारे बारे में.. ? परी उसके रोने की बात पूछना भूल गयी।

यही कि आप बहुत सुन्दर होती हैं।सुन्दर सुनहरे पंख होते हैं।परीलोक में रहती हैं और बच्चों को खुशियाँ प्रदान करती हैं।बहुत दयालु होती हैं।किसी को दु:खी नहीं देख सकतीं...

परी दिव्या की सभी बातेँ ध्यान से सुन रही थी।

लेकिन तुम्हारी मम्मी कहां हैं.. और तुम अभी रो क्यों रहीं थीं ?

मम्मी तो ऊपर.. भगवान के घर चली गईं हैं और मुझे उनकी याद आ रही है।

दिव्या को फिर से मां की याद आ गयी और सुबकते हुये उसने अपनी मां का फोटो परी को दिखाया।

परी को सुनकर दुःख हुआ कि दिव्या बिन मां की बच्ची है।तुम्हारी मम्मी बहुत प्यार करती थीं तुम्हें.. ?

तुम्हारे पिता कहां हैं.. ? क्या वो तुम्हें प्यार नहीं करते. ?

पापा भी बहुत प्यार करते थे पर नयी मम्मी बहुत डांटती थीं और एक दिन यहां छोड़ गयीं।दिव्या को जैसे ही सौतेली माँ का व्यवहार याद आया वह सहम गयी।

 ओह.. परी समझ गयी कि बच्ची अनाथ की तरह पल रही है।उसे इसकी सहायता करनी चाहिए।

क्या आप भगवान से कहकर मेरी मम्मी को वापिस भेज सकतीं है परी रानी... आप तो सभी बच्चों की विश पूरी करती हैं ना...

दिव्या ने आंखो में आँसू भरकर परी से आग्रह किया।

परी को समझ नहीं आया कि वह बच्ची को क्या जबाब दे.. ?

तुम्हारा नाम क्या है छोटी राजकुमारी.. ?

मैं तुम्हारी मदद करुंगी।परी ने दिव्या का ध्यान हटाने को कहा।

"दिव्या"मेरी मम्मी भी मुझे प्यार से राजकुमारी ही कहतीं थीं।

ओ.. परी ने दिव्या के सिर पर प्यार से हाथ फिराया और झुककर उसके माथे को चूमा।

क्या तुम मेरी दोस्त बनना पसंद करोगी ?

छह महीनों बाद मां जैसा स्पर्श पाकर दिव्या सुनहरी परी से लिपट गयी।

अगले दिन मिलने का वादा कर सुनहरी परी उड़ गयी।

उस दिन के बाद सुनहरी परी का नियम बन गया कि वह रोज रात को दिव्या से मिलने आती,उसको मां की तरह लाड़ दुलार करती और फिर उसको उसके बिस्तर पर सुला कर वापस चली जाती।धीरे-धीरे दिव्या अपनी मां को भूलने लगी और परी का इन्तजार करने लगी लेकिन उसे अपने पापा की याद अभी भी आती थी।

 एक दिन उसने फिर सुनहरी परी से कहा,

" परी रानी क्या तुम मेरे पापा को मुझसे मिला सकती हो ?

परी ने दिव्या को वायदा किया कि वह उसके पापा से जरूर मिलायेगी और फिर एक दिन परी ने पता किया तो उसे पता लगा कि उसकी मां ने उसके पापा को यह कहा है कि दिव्या खो गई है और उसके पापा उसकी याद करके दुःखी रहते हैं।

तब एक दिन परी उसके पापा के सपने में आई और उसने उनकी नयी पत्नी के बारे में सच्चाई बताई कि किस प्रकार उसकी पत्नी ने उनकी बेटी को एक आश्रम में छोड़ा है।

दिव्या के पापा की जब नींद खुली तो उन्हें लगा कि उन्होंने यह कैसा सपना देखा!

उन्होंने एक बार फिर पत्नी से पूछा कि मेरी दिव्या कहां चली गई थी,उसे क्या हुआ था ?

लेकिन पत्नी से कोई सन्तोषजनक जबाब उन्हें नहीं मिला और फिर दोनों में लड़ाई हो गई।

 तब दिव्या के पापा ने आश्रम में जाने का फैसला किया और पता करते हुए वह उस आश्रम पहुंच गए।उन्होंने फोटो दिखाते हुए आश्रम के संचालक से पूछा,

"क्या यह फोटो वाली लड़की उनके आश्रम में है।

फोटो देखकर संचालक पहचान गए और उन्होंने कहा"

  हां! यह तो दिव्या बिटिया है,इसको तो एक औरत हमारे यहां छोड़कर गयी थी कुछ सामान के साथ,यह कहकर कि उनके दूर के रिश्तेदार की लड़की है।वह दोनों एक्सीडेंट में गुजर गए हैं और बच्चे की परवरिश करने वाला कोई नहीं है।" सुनकर दिव्या के पापा को बहुत बुरा लगा और वह दिव्या के कमरे में पहुंच गए।जहां दिव्या अपने मम्मी पापा के फोटो लेकर उन्हें याद कर रही थी।

जैसे ही दिव्या ने पापा को देखा वह अपने पापा से लिपट गई।

 पापा भी अपनी बेटी दिव्या से मिलने पर बहुत खुश हुए और उसको गोदी में लेकर उसे बहुत प्यार किया और उससे अपनी गलती की क्षमा मांगने लगे कि उन्हें दूसरी शादी नहीं करनी चाहिए थी और उसको अपने साथ चलने को कहा।

  तब दिव्या ने बताया कि वह उनके साथ नहीं जा सकती क्योंकि नई मां उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है और यहां पर मुझे मम्मी की तरह प्यार करने वाली परी रानी मिल गई हैं।मैंने उनसे ही कल विश की थी और उन्होंने आज ही मेरी विश पूरी करदी। 

दिव्या के पापा की समझ नहीं आया कि दिव्या क्या कह रही है लेकिन तभी उन्हें अपने सपने की बात याद आ गई और उन्हें समझ आ गया कि जरूर दिव्या की बात में कुछ दम है।

 तब उन्होंने दिव्या से वायदा किया कि वह उसकी नई मम्मी को घर से निकाल देंगे और उसकी परी रानी उससे मिलने वहां भी आ सकती हैं।

वे उसका धन्यवाद करेंगे।

दिव्या ने कहा,"लेकिन मुझे सुनहरी परी को धन्यवाद भी देना है।"   

शाम हो चली थी उसके पापा ने वहां रुकने का फैसला किया और दिव्या बगीचे में जाकर बैठ गई और परी रानी का इंतजार करने लगी।

समय होते ही सुनहरी परी वहां आई और दिव्या उससे लिपट गई और उसको अपनी विश पूरी करने के लिए धन्यवाद किया।

"आप सचमुच वैसी ही परी हो, जैसा मेरी मां ने बताया था बिल्कुल मेरी मां जैसा ही प्यार करने वाली हो।अब मेरे पापा मुझे घर ले जाएंगे,आप मुझसे मिलने वही आया करना।मेरे पापा भी आपसे मिलना चाहते हैं।

तब सुनहरी परी ने समझाया,

"वह धरती वासियों से नहीं मिल सकती और ना ही वह मुझे देख सकते हैं।हम परियां सिर्फ छोटे बच्चों को ही दिखते हैं और उनकी ही विश पूरी करते हैं।जब भी कभी तुम दुखी होओगी और मुझे याद करोगी तब मैं तुमसे मिलने आ जाया करूंगी।"

दिव्या परी के गले लगी और फिर उस से विदा लेकर अपने पापा के साथ घर चली गई।अब जब भी उसे अपनी मां की याद आती,सुनहरी परी को याद कर लेती और सुनहरी परी आकर उसको बहुत प्यार करके लोरी सुना कर सुला देती।इस तरह सुनहरी परी के प्यार से दिव्या की जिंदगी में मां की कमी पूरी हो चुकी थी और वह अपने पिता के साथ सुख पूर्वक रहने लगी।


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