एक होनहार लड़की की कहानी
एक होनहार लड़की की कहानी


बात एक ऐसे गांव की है जो काफी पिछड़ा हुआ था और ऊंची जाति वाले नीची जाति को घृणा की दृष्टि से देखते थे बच्चों में भी एक दूसरे के प्रति भेद भाव की भावना थीं। उस गांव में एक स्कूल था जिसमें ऊंची जाति के बच्चे अधिक और नीची जाति कम ही पढ़ते थे क्योंकि स्कूल के शिक्षक भी बच्चों में भेद भाव करते थे इसी लिए नीची जाति के लोग बच्चों को स्कूल न भेज कर कामकाज में लग देते थे उसी गांव में एक दलित परिवार जिसमें दादा दादी चाचा चाची माँ बाप और कई बहन भाई थे और उस परिवार में एक ऐसी लड़की जिस का नाम शक्ति देवी था जो पढ़ने के लिए अपनी माँ से स्कूल जाने की ज़िद करती परिवार बड़ा और अधिक गरीब था सभी मजदूरी करते और बड़ी मुश्किल से पेट भर पाते थे।
माँ के बार बार मना के बाबजूद भी स्कूल जाने की ज़िद करती रहती एक दिन उसकी मां ने उसके पिता जी से कहा की शक्ति स्कूल में पढ़ना चाहती है उसके पिता और दादी यह सुनकर गुस्से में चिलाने लगे कि लडक़ी स्कूल जा कर क्या करेगी घर का काम काज सिखाओ दूसरे के घर जाना है माँ की हर कोशिश नाकाम हुई और शक्ति की जिद दिन पे दिन बढ़ती गई और वह चुपचाप रहने लगी और माँ से भी बात न के बराबर करती और करती भी तो स्कूल जाने की ज़िद करती माँ तो माँ ही होती है उसने मन ही मन फैसला किया कि शक्ति स्कूल में जाकर पढ़ेगी
और उसने शक्ति का बड़ी मुश्किल से स्कूल में दाखिला तो कर दिया पर रोज स्कूल भेजने के लिए विचार कर ने लगी कि वह रोज मजदूरी के लिए काम पर जाती थी कैसे भेजेगी उसके मन में विचार आया कि रोज शक्ति को अपने साथ काम के बहाने ले जाएगी और सुबह स्कूल छोड़ देगी और छुट्टी के समय ले लेगी जिससे किसी को पता नहीं चलेगा और शक्ति स्कूल में पढ़ने लगेगी कुछ समय तक सब ठीक ठाक चलता रहा पर कुछ महीनों बाद पिता जी को पता चल गया कि शक्ति स्कूल पढ़ाई के लिए जाती है उसके पिता जी और दादी ने उसकी माँ के साथ लड़ाई झगड़ा किया और कहा इससे तो अच्छा काम पर ले जाती कम से कम कुछ पैसे ही आ जाते उसकी माँ ने कहा कि मैं तीन समय की रोटी की जगह एक समय की रोटी खाऊँगी पर शक्ति स्कूल जा कर पढ़ेगी माँ ने साफ साफ कह दिया कि शक्ति स्कूल जाएगी
और शक्ति स्कूल में पढ़ने लगी और घर के सभी लोगो को झुकना पड़ा स्कूल का शिक्षक उसको एक कोने में जमीन पर बैठता और कोई बच्चा उससे बात भी नही करता अगर शक्ति शिक्षक से कुछ पूछती तो वह उसको डटता और कहता कि जितना समझाया है ठीक है तुझे कौन सा कलेक्टर बनना है शक्ति चुपचाप हो जाती क्योंकि उसको कलेक्टर का मतलब ही नही मालूम था और वह अकेली चुपचाप रहती और सोचती कि माँ से कहूंगी तो वह दुखी होगी और मेरा स्कूल आना भी बंद हो जाएगा एक दिन वह यह सोचते- सोचते सोचने लगी की क्यों न मै अपने लिए किताबों को ही अपना दोस्त बना लू अब वह चुपचाप रहकर किताबों को पढ़ती माँ अगर कभी पैसे देती तो
वह सड़क से किताब खरीद लेती और कोई भी पढ़ने की किताबें मिलती उसको पढ़ने लगती है स्कूल में अच्छे नम्बरों लाती फिर भी वह कक्षा में नीचे जमीन पर बैठी कोई उससे बात नहीं करता पर शक्ति तो पढ़ना चाहती थीं इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था इस तरह शक्ति पढ़ती गई और स्कूल के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया और।
न ही कोई सहेली थीं। बस किताबें उसकी सबसे अच्छी दोस्त हो गई थीं और उनके साथ उसका रिश्ता भी गहरा हो तो जा रहा था एक दिन शक्ति ने सारे स्कूल में सबसे अच्छे नम्बरो से स्कूल पास किया और फिर चुपके से सरकारी नौकरी के तैयारी शुरू कर दी और साथ साथ सरकारी नौकरी के फार्म भर्ती रही और पेपर देती रही एक दिन उसके घर के आगे मीडिया रिपोर्ट कैमरे लिए कुछ लोग शक्ति के घर बहार खड़े हो गए और शक्ति के बारे में पूछने लगे तो माँ और घर के अन्य सदस्य सभी डरे हुए थे और मीडिया के लोगों शक्ति का इंतजार कर रहे थे और शक्ति के आते ही उसकी तसवीरें खींचने लगे गाँव के लोगों चिल्ला रहे थे कि इस ने क्या कर दिया है सब उसको बुरी नजर से देख रहे थे तभी एक रिपोर्ट सामने आया और बोला इस लड़की शक्ति ने आपके गांव का नाम रोशन कर दिया है इसने एक बड़ा एग्जाम पास किया कल के पेपर में आप के गांव का नाम लोगों गर्व से लेगे इस शक्ति ने आपके गांव में जन्म लेकर आपके गांव का नाम रोशन कर दिया है यह लड़की नहीं इस गांव की शान है और एक नई रोशनी के साथ इस गांव को एक पहचान दी है
जिस गांव को कोई ठीक से जानता भी नहीं था आज उसका नाम इस लड़की की वजह से सम्मानित हुआ है लोगों की भीड़ जमा हो गई सब शक्ति को देख रहे थे रिपोर्ट ने कहा कि प्रथम स्थान मिला है ये उसका फ़ोटो छाप है और चारों ओर शक्ति के नाम की गूंज सुनाई दे रही थी तभी उसकी दादी और पिता जी बहार आए यह सब देकर उसकी दादी ने शक्ति को गले से लगा लिया और पिता की आंखे भर आईं उसी समय मीडिया ने कैमरे के सामने शक्ति से पूछा कि आप बताए कि कैसे आप इस जगह पर पहुंची तभी उसने कहा कि एक दिन मुझे स्कूल में एक किताब मिली
जिसको पढ़ने के बाद मेरी जिंदगी में एक बदलाव आया तभी एक रिपोर्ट ने कहा कौन सी किताब थीं उसने कहा वो किताब( आदरणीय डॉ भीमराव अंबेडकर जी के बारे में थी जिसमें उन्होंने कहा कि शिक्षा ही वो ज्ञान है जो आपकी जिंदगी को ऊंचा उठा सकता है अगर देश और समाज के लिए कुछ अच्छा करने की चाहत है तो पढ़ो ) बस मैंने पढ़ाई को जीवन का लक्ष्य बना लिया और माँ ने हर कदम पर मेरी मदद की आधा पेट खाकर किताबों के पैसे दिए मेरी माँ सौ गुरु के बराबर है अनपढ़ हो कर भी पढ़ने में मेरा साथ दिया तभी उसकी नजर अपनी माँ को ढूंढने लगी माँ एक घूंघट में कोने में खड़ी अपनी बेटी को देख रही थी बेटी ने कहा माँ न होती तो यह तक पहुचना मुश्किल था
और उसने अपने अध्यापक का भी शुक्रिया किया और कहा कि यह मेरे गुरु जी है जिनकी दी गई शिक्षा ने मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया आज सारा गाँव गर्व से ऊंचा हो कर कह रहा था कि हमारे गांव की बेटी है। एक दिन शक्ति उसी गाँव की कलेक्टर बन कर गई आज जात पात की दीवार के होते हुए भी लोगों मैडम शक्ति के आगे पीछे गुम कर हाथ जोड़ कर खड़े थे शिक्षा ही वो दरवाजा है जो आपको ऊंचाई तक ले जा सकता है( आदरणीय डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने महिलाओं के साथ सभी से कहा कि शिक्षा जीवन को सही मार्ग और लक्ष्य तक पहुंचा सकता है ) भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाना है तो सबको शिक्षित होना होगा और शिक्षा की दोहरी प्रणाली को इस देश से खत्म करना होगा शिक्षा सबके लिए समान होनी चाहिए।