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डाॅ.मधु कश्यप

Romance

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डाॅ.मधु कश्यप

Romance

एक दूजे के वास्ते

एक दूजे के वास्ते

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 "शिल्पा मेरे लिए भी सब्जियाँ लेते आना।" आकाश ने शिल्पा को आवाज देते हुए कहा।

"ठीक है ! पैसा दोगे वह भी मैं ही दे दूँ ?"

" अरे ! तुम तो बड़ा हिसाब रखती हो ।"आकाश ने हँसते हुए कहा।

" और क्या रूम शेयर किया है ,पैसे नहीं ।"शिल्पा हँसते हुए मार्केट चली गई ।

"देखा क्या जमाना आ गया है ।बिना शादी दोनों साथ रहते हैं। कभी कोई मिलने भी नहीं आता ।किसी से बात भी नहीं करते। कहेंगे रूम शेयर किया है। हमें क्या पता क्या खिचड़ी पक रही है। क्यों?" और दोनों हँस पड़े ।"छोड़ो हमें क्या कुछ हंगामा होगा तो खुद निकाल दिए जाएँगे ।"कुछ ना होते हुए भी सब कुछ कहते हुए रमा और आरती निकल पड़े पूरे बिल्डिंग में इस बात की चर्चा करने के लिए।

"लो सब्जी ले आई जल्दी बना दो। पता है हमारी बात हो रही सब जगह।"

"अब क्या किया हमने ।"आकाश ने सब्जी में छौंक लगाते हुए कहा।

" अरे साथ रह रहे वहीं कुछ कम है क्या। लोग तो बातें करेंगे ही हमारे यहाँ लड़के लड़कियाँ घर से भाग जाए ,शादी कर ले, नशा पानी करे, सब माफ हो भी सकता है पर बिना शादी हम दोस्त की तरह रहे तो भी सभी को खटक रहा। हमें पति पत्नी ही माना जा रहा ।शायद बच्चे का भी इंतजार हो।" शिल्पा सामान ठीक किए जा रही थी और बोले जा रही थी ।

" तुम पूरे फॉर्म में हो ।छोड़ो जिसको जो बोलना है बोलने दो। हम सही है हमें पता है ।फिर किसी के बोलने पर क्या जाना। हम शादी भी कर लिए रहते तो भी कहते ,पहले ऐसे ही रहते थे जरूर कुछ हुआ होगा तभी शादी की। छोड़ो तुम्हारा खाना तैयार है।आ जाओ।" दोनों दोस्त जो एक दूसरे का सहारा बने थे। पूरी दुनिया में अकेले थे। अनाथ थे, एक दूसरे के लिए थे। साथ में रह रहे एक दूसरे का गम बाँट रहे थे।


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