सपने सच होते हैं
सपने सच होते हैं
“ सिया, तेरा नाम लिखा गया उस शहर के बड़े वाले काॅलेज में। अब तो मिठाई खिला। देख तेरा सपना पूरा हो गया। “तू सच कह रही है कविता, झूठ तो नहीं बोल रही। “
“मैं क्यों झूठ बोलूँगी, ले खुद पढ़ ले। “
“क्या पढ़ रही है सिया?उठ शाम हो गई। कितना सोएगी?जा सब्जी ले कर आ। “माँ ने कहा।
“क्या माँ, मैं सपना देख रही थी?हे भगवान!वह भी दिन में। अब तो कभी पूरा नहीं होगा। “सिया मन ही मन बुदबुदा रही थी। “माँ दिन के सपने पूरे होते हैं क्या?वो कविता कह रही थी कि दिन के सपने......। “ किता क्या कह रही थी रात में बताना। वैसे सभी सपने पूरे होते हैं दिन के हों या रात के। बस अपनी कोशिश करना नहीं छोड़ना चाहिए। अच्छा जा, सब्जी लेकर आ। ठेले वाला चला गया तो बहुत दूर जाना होगा। फालतू में पैसे खर्च होंगे। “माँ ने सिया को समझाते हुए कहा।
“ठीक है माँ। “सिया ने रूँआसी होते हुए कहा। सिया अपनी माँ के साथ एक छोटे से गाँव में रहती थी। बापू के देहांत के बाद सिया ने ही अपनी माँ को सँभाला और खुद को सँभाला और एक नई जिन्दगी की शुरुआत की। बद से बदतर दिन देखे उन्होनें पर सिया ने सपने देखना नहीं छोड़ा। सीमा घरों में जाकर बर्तन माँजने का काम करती और सिया गाँव के स्कूल में पढ़ने जाती। उसे पढ़ने का बहुत शौक था। क्लास में हमेशा अव्वल आती थी वह। उसका सपना था शहर के काॅलेज में पढ़ना जिसे वह हर हाल में पूरा करना चाहती थी। स्कूल की टीचर जी का भी कहना था कि वह पढ़ने में बहुत होशियार है। शहर के काॅलेज जाएगी तो वहाँ भी अव्वल आएगी अपनी सिया। पर सपने देखना आसान है लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए हिम्मत और हौसला चाहिए जो हमारी सिया में था। वह दिन रात ज्यादा से ज्यादा नंबर लाने की सोचती जिससे उसका नाम शहर वाले काॅलेज में लिखा जाए और फिर बड़ी अफसर बनकर वह माँ को आराम करने को कह सके। कल ही बोर्ड का रिजल्ट आएगा जो उसके सपनों को तय करेगा।
“कहाँ खोई है सिया ?” कविता ने उसे टोक दिया।
“कुछ नहीं, वही कल को लेकर बहुत टेंशन हो रही है। और मेरा सपना पता नहीं पूरा हो ना हो। “
“ऐसे नहीं कहते। सब पूरा होगा। तू चिंता मत कर। चल मैं भी तेरे साथ चलती हूँ वर्ना तू फिर कहीं खो जाएगी। “
रात में जब दोनों माँ बेटी खाने बैठे तो सिया खोई खोई सी थी। रिजल्ट को लेकर वह बहुत परेशान थी। शायद कल उसके सपनों को खोलने वाली चाभी उसके हाथ लग जाए। उसके सपनों को पंख मिल जाए। “क्या हुआ सिया?कल को लेकर परेशान है। अरे!तूने इतनी मेहनत की है। अपने बापू के जाने के बाद भी तूने हिम्मत नहीं छोड़ी। सपने देखना नहीं छोड़ा। मैंने भी सबकुछ फिर से शुरू किया वर्ना मैं तो टूट चुकी थी। तूने सबकी मदद की है। भगवान तेरी मदद जरूर करेंगे। “कहते-कहते सीमा रो पड़ी। “मत रो माँ, नहीं तो मैं भी रोने लगूँगी।
“उठ सिया, कितना सोएगी। तू पास कर गई वह भी फर्स्ट क्लास से। सबसे ज्यादा नंबर है तेरे। अब तो तेरा नाम उस शहर वाले बड़े काॅलेज में पक्का। चल मिठाई खिला। “कविता ने सिया को जगाते हुए कहा। “क्या माँ, सोने दो ना। कितना अच्छा सपना देख रही थी। “
“ सपने की बच्ची। मैं तुझे माँ दिख रही। “चिकोटी काटते हुए कविता ने कहा। “आहहह, ऐसे कौन उठाता है?तू सच कह रही थी। वह सपना नहीं था। “सिया अभी भी विश्वास नहीं कर पा रही थी।
“हाँ बिल्कुल सच है। “सिया कविता के गले लगकर फूट फूट कर रोने लगी। “तूने एक बात गलत कही थी लेकिन। “क्या?”यही कि दिन के सपने सच नहीं होते। मेरे दिन के सपने भी सच हो गए। मैं बहुत खुश हूँ। अब मैं बड़े काॅलेज में पढूँगी और अपने सपनों को जीते हुए एक नई उड़ान भरूँगी। चल माँ को बताते हैं, वे काम पर गई होंगी। “