बहू क्या लाई है ?
बहू क्या लाई है ?
"मुँह दिखाई की रस्म कब शुरू करोगी पुष्पा ? कब से बुला कर बैठा लिया है ?बहु के नखरे है क्या ? जो इतनी देर हो रही है।"पड़ोस में रहने वाली आरती जी ने झुंझलाते हुए पूछा।
" अरे !ऐसे क्यों बोल रही हो ?अभी बहु आ रही, तब तक तुम नाश्ता पानी करो।"
"सब कर लिया।अच्छा यही बता दे क्या-क्या लाई है बहु दहेज में।"
" हाँ! भाई बताओ बताओ हमें भी जानना है।"सभी औरतें एक साथ बोल पड़ी।
"ऐसा लग रहा तुम लोगों को बहु से ज्यादा दहेज जानने की इच्छा है।"पुष्पा जी ने ताना मारते हुए कहा।
" अरे नहीं,नहीं ! कब से बैठे हैं तो सोचा यही पूछ ले।"
"लो!बहु आ गई।"सभी औरतें उत्सुक होकर उधर देखने लगी। रिचा को उसकी दोनों ननदें साथ लेकर आ रही थी।दोनों रिचा को वहाँ बैठाकर बगल में खड़ी हो गई।
"आरती! पहले तुम ही देख लो।बहुत इंतजार किया तुमने।"
" हाँ!क्यों नहीं ?"आरती जल्दी-जल्दी रिचा की ओर चल पड़ी। "वाह !क्या चाँद का टुकड़ा लाई हो। दहेज भी भर भर के मिले होंगे।इसलिए छिपा रही। क्यों पुष्पा ?"
"सही कहा तुमने! दहेज तो बहुत मिल रहा था।गहने, साड़ी बर्तन ,कार सब कुछ पर हमने बहु को लिया और चले आए।"
"हाँ, हाँ साड़ी, बर्तन बाकी सामान तो आराम से आते रहेंगे।"
"हाँ आरती! बाकी सामान आराम से रवि अपनी पत्नी और हमारी बहु के लिए खरीदेगा और बाकी सामान तो पहले से ही बहू के लिए घर में मौजूद है। तुम्हारी तीन तीन बेटियाँ कुँवारी बैठी है, मेरी भी दो बेटियाँ हैं।कभी सोचा है तुमने हमारा, तुम्हारा क्या हाल होगा अगर हम भी दहेज लेने और देने का रोना लेकर बैठेंगे।समाज हमीं से बनता है और समाज की सोच भी।हमें अपनी सोच बदलनी होगी आरती। तभी हमारी आने वाली पीढ़ी नए समाज का निर्माण कर सकेगी।" घूँघट में बैठी रिचा अपने सास के खुले विचारों और खुद को इस घर की बहू बन कर नाज़ कर रही थी।