डाॅ.मधु कश्यप

Romance

3  

डाॅ.मधु कश्यप

Romance

अधूरा प्यार

अधूरा प्यार

5 mins
152


"माँ, मैंने कहा था न! मेरे लिए रिश्ते मत खोजो। मुझे शादी ही नहीं करनी। क्यों किसी लड़की की जिन्दगी खराब करूँ? मैं ऐसे ही ठीक हूँ। "

"क्यों, क्या हुआ? ऐसे क्यों कह रहा है। ऐसे नहीं कहते। ये फोटो पसंद नहीं आई, तो कोई बात नहीं। मैं और देखूँगी। वैसे क्या खोट है इस लड़की में?"

"किसी में कोई खोट नहीं है, माँ। तेरे बेटे में ही खोट है। मुझे माफ़ कर दो माँ। शायद ही मैं तुम्हारा ये सपना पूरा कर पाऊँ। "कहकर अभि ऑफिस

के लिए निकल गया। अभिषेक, जिसे प्यार से लोग अभि बुलाते हैं। जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा है, जहाँ खुशियाँ उसका बाँहें फैलाए स्वागत करने को तैयार हैं, पर उसने खुद ही सारे दरवाजे बंद कर रखे हैं। सभी उसे बहुत प्यार करते हैं। दोस्तों की जान है वह। आॅफिस में उसके आते ही सबके चेहरे पर एक मुस्कान खिल जाती है। खुद को भुला कर सबकी मदद करने को तैयार रहता है, अभि। पर सब को खुशियाँ बाँटने वाले अभि की खुद की खुशी कहीं खो सी गई है। जो शायद ही कभी आ पाए जबतक वह खुद न चाहें। अब तो वह झूठी खुशी का तमगा लिए घूम रहा है।

उसकी मुस्कराहट, खुशी सबकुछ भोली, मासूम "खुशी" के साथ चली गई, जिसे उसने दिल से चाहा था, प्यार किया था। ऐसा नहीं है कि ये कल की बात है। पाँच साल बीत गए, इस बात को, पर अभि के लिए सबकुछ वही थम सा गया। हमारे दिल के दिन, हफ़्ते, महीने, साल, कैलेंडर बाहरी दुनिया के दिन, हफ्तोंं, कैलेंडर से कितने अलग होते हैं। बाहर सबकुछ बदलता रहता है, पर हमारा दिल वही ठहर सा जाता है। अभि ने इस बात को सही साबित कर दिया था। कहने को कुछ नया नहीं था। काॅलेज में मुलाकात हुई, फिर दोस्ती। और ये दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता नहीं चला। रोज मिलना-जुलना, बातें करना, साथ साथ घूमना सबकुछ बहुत पसंद आता दोनों को। अभि को तो मानो उसकी पूरी दुनिया ही मिल गई हो। क्योंकि उसे सबों से ज्यादा बात करना पसंद नहीं था। उसे लगता था शायद ही कोई उसकी बातों को समझ पाए। पर ख़ुशी के रूप में उसे एक अच्छी दोस्त, प्यार, हमसफ़र सबकुछ मिल गया था। उसे अब किसी की जरूरत नहीं थी। काॅलेज की बातें, पढ़ाई की बातें, घर की बातें, दोस्तों की बातें, बहुत कुछ रहता था बातें करने के लिए। एक-दूसरे के साथ समय कैसे बीत जाता, दोनों जान नहीं पाते। मुलाकात न हो पाए तो फोन पर ही एक-दूसरे के दिल की बात जान लेते थे दोनों। पर अपने भविष्य और पढ़ाई को लेकर कभी दोनों ने समझौता नहीं किया। दोनों की ज़िद थी,आगे बढ़ने की, कुछ करने की, साथ जिन्दगी जो बीतानी थी। अभि जल्द से जल्द कहीं सेटल हो जाना चाहता था जिससे वह पूरी इज्जत के साथ खुशी का हाथ माँगने उसके घर जा सके। वह बेसब्री से उस दिन का इंतजार कर रहा था। पर जिन्दगी फिल्मी दुनिया जैसी हसीन और आसान होती, तो क्या बात थी। होनी को कुछ और मंजूर था।

अभि पूरे जोश से सारी प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहा था। कि जल्द से जल्द कहीं उसकी नौकरी लग जाए। खुशी भी रोज ईश्वर से यही प्रार्थना करती थी। क्योंकि दोनों की खुशी एक हीं थी। घर में बड़ी होने के कारण खुशी के लिए रिश्ते भी आ रहे थे। काॅलेज खत्म हो ही चुका था और हमारे तथाकथित समाज में लड़की के शादी के लिए सबसे बड़ी योग्यता यही होनी चाहिए। खुशी की माँ की तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी जिसकी वजह से उसपर ज्यादा दबाव था। खुशी ने घर में अभि के बारे में किसी को कुछ बताया भी नहीं था क्योंकि दोनों ने फैसला किया था कि जब वह कहीं सेटल हो जाएगा तभी बताया जाए। इसलिए उसके पास मना करने का कोई कारण भी नहीं था। बस वह रोज अभि के फोन या मेसेज का इंतज़ार करती। काॅलेज खत्म होने पर दोनों का मिलना भी मुश्किल ही हो गया था।

इधर अभि किसी भी प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पा रहा था। हल्की सी चूक हो जा रही थी। वह बहुत परेशान सा हो गया था। "खुशी, कुछ समझ में नहीं आ रहा, क्या करूँ? कुछ नहीं हो पा रहा। कितनी खराब किस्मत है मेरी। तुमने आज तक मुझसे कुछ नहीं माँगा। एक चीज माँगी अभी, वह भी मैं तुम्हें नहीं दे पा रहा। तुम पर भी दबाव बढ़ रहा है। कहीं बात पक्की हो गई तो आंटी के लिए मान जाना। मैं इतना बड़ा कलंक अपने सिर नहीं ले सकता कि मेरी वज़ह से तुम अपनी माँ को नाराज़ कर दो। मैं पूरी कोशिश करूँगा। पर मेरी तरफ से तुम आजाद हो। अपना ध्यान रखना। "अभि ने खुशी को समझाते हुए कहा और फूट फूट कर रो पड़ा। "रो मत, अभि, तुम जैसा कहोगे मैं वही करूँगी। कभी तुम्हें नाराज़ किया है, जो आज करूँगी। तुम भी अपना ध्यान रखना। कुछ गलत मत करना। "हमेशा के लिए जुदा होने से पहले दोनों की यही बात हुई। और सबकुछ ख्वाब सा हो गया।

"कहाँ, खो गए अभि? फाइल कम्पलीट हुई कि नहीं?" साॅरी, यार हो गई है। ये लो। "अभि ने अपने ख्यालों से बाहर आते हुए कहा। जब भी वह अकेला होता था यही सब उसके दिमाग में चलता रहता था। खुशी की शादी होने के एक हफ्ते बाद उसकी नौकरी लगी जिसकी उसे एकदम खुशी नहीं हुई। वह अपनी बदकिस्मती पर रो पड़ा। एक हफ्ते पहले यह खुशी मिलती तो उसकी जिन्दगी बन गई रहती। पर उसने खुशी से किया हर वादा निभाया। दोनों ने कभी अपनी मर्यादा नहीं भूली थी जिसका अभि को बहुत नाज़ था। एक बार मज़ाक में खुशी ने कहा था "अगर हम नहीं मिल पाए, तो मुझे भूल जाओगे?" खुद को भूल जाएंगे पर तुम्हें नहीं। "क्या डायॅलाग मारा था मैंने। क्या पता था सच हो जाएगा। खुशी बहुत खुश है अपनी नई जिन्दगी में। मुझे उसपर बहुत फख्र है। पर मैं आगे नहीं बढ़ पाया। पता हे, उसे भी बहुत मुश्किल हुई होगी पर वह मुझसे ज्यादा मजबूत निकली। "चलो, अभि टाइम हो गया। "हाँ, यार, चलो नहीं तो मैं यादों में ही रह जाऊँगा। "समझता हूँ, दोस्त। तुम ग्रेट हो। आज के जमाने में कौन ये करता है। "

"मुझे और टाइम चाहिए, दोस्त। इन सबसे बाहर निकलने में। मैं कुछ कर नहीं रहा। बस ये सब भूल नहीं पा रहा। खुद को दोषी मानता हूँ। माँ को भी खुश नहीं कर पा रहा। पर पूरी कोशिश कर रहा हूँ। तुम जैसे दोस्त हैं, मेरे साथ तो मुझे क्या गम है।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance