डाॅ.मधु कश्यप

Inspirational Children

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डाॅ.मधु कश्यप

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आपकी सास कैसी है?

आपकी सास कैसी है?

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" बधाई हो !लक्ष्मी आई है।" नर्स ने जैसे ही शोभित के हाथों में नन्ही परी को दिया शोभित के हाथ काँप उठे और आँखों में आँसू थे।" कितना तरसाया आपने परी....पाँच साल ...अब हाथों में आई हो... अब तुझे कहीं नहीं जाने दूँगा ।"

"लाइए मेघा के पास ले जाना है।"

" मैं ले जा सकता हूँ ?"

"बिल्कुल! नर्स ने मुस्कुराते हुए कहा। शोभित प्यार से अपनी परी को सँभालते हुए मेघा के पास ले गया।

" लो सँभालो !अपनी परी को !"मेघा ने अपने दोनों हाथ फैला दिए।" लाओ! मेरी ...सॉरी ..हमारी बिटिया को।" शोभित ने सँभालते हुए उसे मेघा को थमा दिया। मेघा के लेते ही उस परी ने मेघा की उँगली को पकड़ लिया ।

"यह देखो शोभित! इसने मेरा हाथ थाम लिया। अपनी मम्मी को पहचानती है ।"तभी मेघा उदास हो गई ।

"क्या हुआ! कोई दर्द हुआ क्या ?डॉक्टर को बुलाओ?"

" अरे !नहीं मैं ठीक हूँ ।वह माँजी...।"

" बहुत खुश होंगी तुम चिंता मत करो ।आखिर पाँच साल बाद उनकी पोती आई है।"

" नहीं !पोती आई है यही बात तो उन्हें दुखी कर देगी। उन्हें तो....।"

" ऐसा नहीं है मेघा! कहते सब है पर बच्चे को देख कर सब भूल जाते हैं ।तुम निश्चिंत रहो।"

" मुझे समझा रहे या खुद को समझा रहे हो।"

"खैर छोड़ो इस बात को मैं नर्स को बुला देता हूँ। तुम्हें फीड भी तो करवाना होगा ।"शोभित चला गया तभी नर्स आ ही रही थी। नर्स आकर मेघा को फीड कराने में मदद करने लगी।

" कोई आया नहीं आपके यहाँ से ?"

"बस सासु माँ, ससुर जी आने ही वाले हैं।"

" अच्छा मैं चलती हूँ ।आप सब कुछ सीख गई है । अगर कुछ दिक्कत हो तो मुझे बुला लीजिएगा, नहीं तो मैं शाम के राउंड पर फिर आऊँगी ।"

"ठीक है !"मेघा मुस्कुरा दी। दो घंटे बाद शोभित माँ और बाबू जी को लेकर आ गया। कला जी को पहले ही पता चल गया था कि उनके घर पोती आई है जो उनके चेहरे से साफ दिख रहा था कि उन्हें कोई खुशी नहीं थी। बच्चे को देखते ही वह कहने लगी," अरे इसके कान कैसे हैं? बिल्कुल काले हैं, कितने बाल है कान पर। दिखने में भी साफ नहीं लग रही है। खैर चलो जो हो गया सो हो ही गया ।"उन्होंने उसे कुछ देर गोद में लिया फिर उसे झूले पर डाल दिया और आश्चर्य की बात यह थी कि उन्होंने मेघा को एक नजर देखा भी नहीं ।मेघा यह सब कुछ महसूस कर रही थी पर क्या कहती ?

तभी नर्स भी शाम के राउंड पर आ गई। उसने भी सभी को नमस्ते किया। महेश जी ने नर्स को पैसे दिए और कहा कि सभी में बाँट लीजिएगा पर कला जी ने ना एक शब्द कुछ कहा और ना ही नर्स को देखा। 

"अच्छा शोभित हमें घर पहुँचा देना, यहाँ तो रहने की जगह भी नहीं है दिक्कत हो जाएगी और तुम यहीं रुक जाना ठीक है ना !" विकास जी चाय लेने के लिए चले गए और शोभित भी उनके साथ चला गया। कलाजी वॉशरूम चली गई।

 तभी नर्स ने धीरे से मेघा को कहा," कैसी सास हैं आपकी? इनके चेहरे से तो लग ही नहीं रहा कि इन्हें थोड़ी सी भी खुशी हुई है और आपकी तरफ तो ये देख भी नहीं रही है ।कोई भी इस चीज को महसूस कर सकता है ।खैर आप परेशान मत होइएगा वर्ना फीडिंग पर असर पड़ेगा।"

" ठीक है!" तभी वे लोग चाय लेकर आ गए। चाय पीने के बाद कुछ देर रुक कर सभी लोग निकल गए। रात को शोमित जब सभी को छोड़ कर घर आया तो मेघा की आँखों में आँसू थे।

" क्या हुआ ?"

"कुछ नहीं !"

"माँ ने कुछ कहा क्या?"

" कुछ नहीं कहा यही तो दुख की बात है। नर्स भी कह रही थी कि आपकी सास ने तो आपको देखा ही नहीं। क्या उन्हें खुशी नहीं है कि मेरी गोद भर गई?" शोभित ने आँखें नीची कर ली।

" क्या कहूँ ? मुझे माँ से यह उम्मीद नहीं थी। हम तो अपने बच्चे को प्यार करते हैं ना और यह परी भी जानती है। हम लोग खुश है इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती है। क्यों?" मेघा मुस्कुरा दी क्योंकि वह जानती थी कि इस बात का कोई हल नहीं निकलने वाला है तो क्यों भविष्य का सोच कर इस पल को दुखी करके खुशी के पल को खोया जाए।

 दोस्तों! बच्चे बच्चे होते हैं। लड़का लड़की अपने हाथ में नहीं होता है ।ईश्वर की देन होती है फिर भी आज भी कुछ लोग इस बात को नहीं समझते हैं। आधुनिक कह देने से हम आधुनिक नहीं बन जाते हैं बल्कि हमें अपनी सोच भी आधुनिक करनी चाहिए।



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