ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेगें

ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेगें

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" कैसे हो सुमित ? बहुत सालों बाद हम मिल रहे। बचपन में एक पल के लिए भी अलग नहीं रह पाते थे और आज देखो साल बीत जाते हैं एक दूसरे को देखे बिना। मिलने की बात तो सपने जैसी हो गई है। "

 "सही तो है अमित। कैसे सब हमें चिढ़ाते थे। वह देखो दो शरीर एक जान जा रहे हैं।" पुरानी बातों को याद करते हुए सुमित के चेहरे पर एक मुस्कान सी आ गई। "सही तो है। वर्ना आज के जमाने में कौन किसके लिए इतना करता है। तुमने अपनी सारी जिंदगी मेरे लिए....।" सुमित ने भावनाओं में आकर कहा। 

"फिर शुरू हो गया तेरा। कितनी बार कहा है ऐसे मत बोला कर। तुझ में काबिलियत थी इसलिए तू यहाँ तक पहुँचा। मैंने तो बस तेरी मदद की। आज तू डॉक्टर है, मुझे लगता है मेरी मेहनत सफल हुई और मैं लेनदेन में आगे था तो बिजनेसमैन बन गया। पढ़ाई तो मेरे बस की थी ही नहीं। फिर क्यों मुझे महान बनाता है? मैंने तेरी नहीं अपनी भी मदद की है। हा हा हा...।" अमित सुमित को गले लगाते हुए बोला।

" फिर भी यार। रोज घर में तुझे मेरी वजह से डाँट पड़ती थी। पैसों की तंगी दोनों घरों में थी। हम दोनों एक ही समय में घर से निकलते थे। मैं स्कूल जाता था और तू काम पर जाता था। जितना कमाता , उसमें से आधा मेरी किताबों पर तू खर्च कर देता था। घर में झूठ भी बोलता। कितनी परेशानियाँ झेली तूने पर मेरी मदद करना नहीं छोड़ा। मुझे भी झूठ बोलना पड़ता था कि मुझे इनाम में यह किताबें मिली है। नहीं तो मुझे भी डाँट पड़ती थी कि मैं तुझसे क्यों मदद ले रहा हूँ? आज मैं जो कुछ भी हूँ तुम्हारी वजह से हूँ। अगर मैं ना होता तो तू भी शायद अपनी पढ़ाई.... पूरी कर लेता।"

" ऐसा कुछ नहीं है। पढ़ाई मेरे बस की थी नहीं। जोड़ना घटाना आ गया बहुत है मेरे लिए। वर्ना पहली कक्षा में ही मैं फर्स्ट करता और तू दो बार फेल होता। क्यों ...?"अमित ने ठहाका मारते हुए कहा।

" तू नहीं सुधरेगा। गले लग जा। बहुत पैसा कमाया है ना चल कॉफी पिला।"दोनों दोस्त काॅफी पीने चल पड़े।


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