डाॅ.मधु कश्यप

Tragedy

0.8  

डाॅ.मधु कश्यप

Tragedy

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा

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"अब रोने से क्या होगा मीना ? जो होना था वह हो चुका। अब उसे हम बदल भी नहीं सकते। क्या क्या सोचा था बेटी के लिए? पर कुछ न कर पाया। इतनी उम्र हो कर भी हम दोनों से आदमी पहचानने में भूल हो गई। गुस्सा आता है खुद पर। तुमने तो एक बार कहा भी था कि पता कर लो, लड़का नौकरी करता है कि नहीं, पर मैंने ही टाल दिया। सोचा इंजीनियर है तो नौकरी करता ही होगा। पैसे भी बढ़िया मिलते होंगे।"

"आपने आज तक मेरी बात सुनी जो उस समय सुनते। एक बार पता कर लेते तो आज हमारी बेटी भले ही ग़रीब घर में रहती पर खुश होती।" मीना जी बीच में ही बोल पड़ी जो कब से बेटी की किस्मत पर रोए जा रही थी।" अब तो बच्चे भी हो गए। कहाँ जाएगी ?" मीना जी फूट-फूटकर रो पड़ी।

"ऐसे मत रो मीना। इतनी भी बुरी किस्मत नहीं है हमारी बेटी की। मैं कल ही उससे मिल कर आता हूँ। देखो तो घर का क्या माहौल है।" आशुतोष जी सुबह-सुबह ही सुमन के यहाँ पहुँच गए।" अरे पापा ! सुबह-सुबह सब ठीक है ना। आपने फोन भी नहीं किया। मम्मी ठीक है ना। "

"हाँ बेटा! सब ठीक है। अंदर आने को नहीं कहेगी। यही सब कुछ पूछ लेगी।"

"अरे ! मैं भी ना। आइए पापा।"

" पापा जी आप! कैसे हैं ?समीर ने पैर छूते हुए कहा।

"ठीक है ! दामाद जी। आप ठीक है ना और समधन जी।"

" माँ ठीक हैं। सो रही है। सुमन पापा को कमरे में ले जाओ। फ्रेश हो जाए। फिर साथ में नाश्ता किया जाएगा।"

" आइए पापा।"

 आशुतोष जी फ्रेश होने चले गए और सुमन किचन। वह मन ही मन सोच रहे थे सब तो ठीक लग रहा है पर सुमन ने ऐसा क्यों कहा? नाश्ते के बाद आराम से बात करूँगा।" पापा चाय पी लीजिए, सभी आज देर से नाश्ता करते हैं, संडे है ना। इसलिए चाय, बिस्किट ले लीजिए। बच्चे भी सो रहे हैं और मम्मी कैसी है ? उनको क्यों नहीं लाए?"

"अचानक से प्रोग्राम बन गया बेटा। एक बात बताओ, सुमन सब तो बढ़िया लग रहा। फिर तूने यह सब क्यों कहा। तेरी माँ कब से रोए जा रही है।"

सुमन अचानक से शांत हो गई। दरवाज़ा बंद करने उठी और फिर अपने पापा के पास आकर बैठ गई।" माफ़ कीजिएगा पापा मैंने आप लोगों को बहुत परेशान कर दिया। इतने दिनों से चुप थी, अभी भी रह जाती। कुछ नहीं बिगड़ता। पर रहा नहीं जा रहा था लगा किससे अपने दिल की बात कहूँ? तो आप लोगों से कह दिया। यह सब एक मृगतृष्णा है, छलावा है पापा जिसमें हमें शानो शौकत दिखाकर छल लिया गया। जिससे सब को लगे कि मैं कितनी खुश हूँ, इस घर की बहु होना सौभाग्य की बात है, जो मुझे मिला। इकलौता लड़का है, वह भी इंजीनियर, अपना मकान, दो प्यारे बच्चे और क्या चाहिए पर इन्हें चाहिए था पापा एक फ्री की नौकरानी जो मैं मिल गई। आपने सब कुछ देख कर शादी की कि मेरी बेटी राज करेगी पर यहाँ बेटी पर राज किया जा रहा है पापा। यह कुछ नहीं करते। कहने को इंजीनियर है पर ससुर जी के दौलत पर सबकुछ चल रहा। ना कहीं जाते हैं, ना कुछ करते हैं। सासु माँ की हर बात पर हाँ में हाँ मिलाते हैं। यह भी नहीं सोचते कि क्या गलत है क्या सही है। बच्चों का भी ध्यान नहीं देते। क्या, क्या बताऊँ पापा।" सुमन मुँह छिपा रोने लगी।आशुतोष जी पर मानो बिजली गिर पड़ी। ऐसा छलावा, धन दौलत की आड़ में ऐसी धोखाधड़ी। किसी तरह खुद को सँभाल उन्होंने बेटी को समझाने की कोशिश की पर लगा अब क्या फायदा समझाने से। मृगतृष्णा के छलावे में आकर वह लोग फँस चुके थे।



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