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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Inspirational

एक दिन अचानक

एक दिन अचानक

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सरहद के पार

जीवन में कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो हमारी आत्मा को छू जाते हैं। मैं अक्सर उसे घटना को याद कर सोचती हूं कि अगर उस दिन मैं वहां न होती तो यह अमूल्य अनुभव छूट जाता।


एक सुहानी सुबह मैं राजस्थान के जैसलमेर के बाघा बार्डर को देखने गयी थी। सरहद के करीब स्थित तनोट माता मंदिर जाना था । 


जब हम सीमा चौकी पहुंचे, तो बीएसएफ के जवान जो जिनकी आंखों में सख्ती के साथ एक खास नरमी और देशभक्ति का अद्भुत संगम था। उन्होंने हमें सीमा की बारीकियाँ बतायीं। तभी, हमारे एक साथी ने पूछा, "सर, क्या हम सरहद के पार देख सकते हैं?"


यह सुनकर जवान मुस्कुराए और रहस्यमयी अंदाज में बोले, "आप सरहद के इस पार होकर भी अगर पारखी नजर से देखेंगे, तो उस पार की जिंदगी भी दिखेगी।" 


जवानों ने हमें बाड़ के पास से सामने पाकिस्तान का क्षेत्र दिखाया । दूर-दूर तक फैला रेगिस्तान, इंसान का नामोनिशान नहीं थ। अचानक मैंने देखा, कुछ हमारी तरह के लोग ऊंटों पर गुजर रहे थे। 


मुझे लगा कि सरहदें केवल राजनीतिक होती हैं, इंसान और इंसानियत के बीच नहीं। मेरे मन में सवाल उठा, "क्या वहां भी कोई हमारे जैसा सोचता होगा?"


ठीक उसी समय, सरहद के उस पार से एक छोटी बच्ची ने अपनी माँ से हिन्दी में पूछा, "यहां कौन है?"


मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हम हैं।" उसकी मां ने उसे तुरंत खींच लिया, लेकिन उसकी उत्सुकता दिल को छू गई ,वह जानना चाहती थी कि बाड़ के इस तरफ कौन है?? 



मैं महसूस कर रही थी कि सरहदें भले ही देशों को बांट दें, लेकिन दिलों को नहीं। उनकी संस्कृति और भावनाएं हमारी ही तरह हैं , फर्क बस राजनीतिक दृष्टिकोण से अलग है।


सरहद से लौट, मैं सोच रही थी कि क्या हम कभी इन सरहदों को मिटा , ऐसी दुनिया बना पाएंगे जहां इंसान सिर्फ इंसान हो?


यह संस्मरण ,सिर्फ एक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक आत्मा की यात्रा थी। उस दिन की सरहद के उस पार की झलक ,जीवन भर याद रहेगी।

         



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