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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Inspirational

मुझे आवरण से मत तोलो

मुझे आवरण से मत तोलो

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दिसम्बर माह 1

हम किसी को बिना जाने-समझे क्यों अपनी राय बना लेते हैं ? अगर किसी के काम को हम सराह न सकें तो कम से कम उसकी भावनाओं को आहत कर नुक्ताचीनी तो न करें । ऐसी ही एक कहानी "आवरण से न तोल मुझे" ।


पूर्वी को ऑफिस ज्वाइन किये 1 साल हो गए थे, बस अपने काम से काम रखती थी । ना कोई से मिलना जुलना न इधर-उधर की बातचीत। हां काम व अनुशासन में आज तक कोई उंगली नहीं उठा सका था । काम व व्यवहार में ऐसी कुशल कि सामने वाला मंत्र मुग्ध हो देखता रह जाए ।कभी ऑफिस में खाली बैठे या बिना काम फोन में चिपके न देखा होगा ।  


वैसे तो वह कंपनी की सर्वेसर्वा हेड डायरेक्टर थी ।उसके काम को देखते हुए ही हेड ब्रांच की ये पोस्ट ऑफर की गयी थी । कभी-कभी कंपनी प्रमुख कुछ दिशा निर्देश को आते बाकी तो सब उसी की जिम्मेदारी थी, जो वह बखूबी निभा रही थी। 


पूर्वी ऑफिस में ऊपर से ले नीचे तक के कर्मचारियों को एक अबूझ (सबकी समझ से परे )पहेली ही लगती । हमारे मानव मन का स्वभाव ही ऐसा होता है कि जो पर्दे में होता है उसी की ताक-झांक में जिज्ञासु रहता है। 


यदि उसके कुछ बालों में चांदी ना उतरी होती तो 30 से अधिक उम्र समझ ही न पड़ती थी । पूरे 38 बसन्त देख चुकी थी । ऑफिशियल पेपर्स से कुछ लोगों ने खोजबीन कर ली थी । इससे अधिक कुछ हाथ नहीं लगा था ।


हां पश्चिमी परिधान पहनने में उसे सहजता लगती । सुविधा के चलते बाल भी बाब्ड करा लिये थे इसका मतलब ये नहीं था कि उसे अपनी संस्कृति व संस्कारों का अहसास नहीं था । ऑफिस का ड्रेसकोड हमेशा फाॅलो करती । उसे दूसरों के लिए दिखावा करना बिल्कुल न अच्छा लगता। वह अंदर बाहर एक सी थी । 


लोगों को तो दूसरे में नुक्स देखने की आदत होती है तो बस उसकी कार्य कुशलता को नकार आधुनिका की उपाधि से नवाज दिया गया था । सब दबे-छुपे खुसुर-पुसुर शुरू कर अपने-अपने तर्क लगाते कुंवारी होगी,बेचारी को कोई मिला ही नहीं होगा विवाहिता होगी पर कोई दूसरे से चक्कर रहा होगा तो बेचारा पति ,तभी कोई तीसरा कहता पति से बनी न होगी ,तलाक ले आजाद घूम रही होगी बगैरा-बगैरा । 


आज की बयार ऐसी है कि कोई भी सुहागन चिन्ह वैसे भी नहीं धारण करतीं। अब उनसे कौन मुंह लगे कि वे खुद कितनी सांस्कृतिक हैं तब बगलें झांकते मिलेंगी। पूर्वी ने कभी किसी को अपनी जिन्दगी में झांकने का अवसर ही नहीं दिया था यहां तक कि ऑफिस की नेम प्लेट में केवल डॉक्टर पूर्वी अस्थाना ही लिखाया था । अक्ल के घोड़े दौड़ाते परिणाम सिर्फ जीरो बेचारे !! खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत चरितार्थ करते। 


आज किसी को किसी के दुख से सरोकार नहीं, है तो बस बखिया उधेड़ने या किसी के फटे में टांग फंसाने में मजा आती है । बहुत सी महिला कर्मी व उनके पति दोनों ही इस ऑफिस में काम करते थे ।


पूर्वी लंच अपने ही केबिन में कर लेती। एक दिन आद्या जो अपने को बहुत ही स्मार्ट समझती थी, पूर्वी लंच के लिए हाथ धोने को जैसे ही निकली कि घात लगाए बैठी आद्या झट लंच बॉक्स ले अंदर आ गई । पूर्वी ने बहुत ही संयमित होकर कहा, "कहिए आद्या जी मुझसे कुछ कहना या पूछना था ।आज शर्मा जी (आद्या के पति ) नहीं आए क्या" ? मीठा कटाक्ष करती बोली । 


आद्या के मुंह से हां या ना से अधिक बोल निकल ही ना सके । तभी अनुभा की आवाज सुनाई पड़ी "ठीक है जी पहले आप निर्णय कर लें, मुझसे कौन सी बात डिस्कस करना चाहती हैं , आफ्टर लंच करते हैं "।आद्या अपना सा मुंह लेकर चली गयी ।


कभी लगता सहकर्मियों का कहना भी गलत नहीं । मुझे भी आए इस ऑफिस में 6 माह हो रहे थे । पूर्वी के सहायक के रूप में मेरी नियुक्ति हुयी थी ।


लंच में सभी लोग एक साथ बैठते तो सबकी आंखें मुझ पर ही टिक जाती शायद मैं पूर्वी का असिस्टेंट हूं तो उसके बारे में कुछ विशेष जानकारी होगी ।

आखिर जब मेरी तरफ से कोई भी टीका-टिप्पणी न होते देखते तो बस अपनी मनगढ़ंत शुरू हो जाते ,बड़ी फैसनेबिल है ,अपने को जाने क्या समझती है ,पढ़े लिखे होने का घमंड है ।


वैसे मेरी भी पूर्वी से बातचीत ऑफिस तक ही सीमित थी उसने अपने चारों ओर एक सीमा रेखा बना ली थी या कहें कच्छपी की तरह एक खोल निर्मित कर लिया था । कुछ भी हो उसकी संयमित व्यवहारिकता ,वाक्पटुता में एक अद्भुत आकर्षण परिलक्षित होता ,पूर्वी अपूर्व लगती । 


ऑफिस लंच टाइम में वही चर्चा का विषय होती । पुरुष वर्ग में उसका रहन-सहन, आकर्षक बोलचाल का ढंग, कातिल मुस्कान के बारे में बातें होती तो महिलाओं की बातों में जलन ईर्ष्या मिश्रित बू आती । 


उसने महिलाओं के सबसे बड़े गुण गाॅशिप को जो नकार दिया था । ऐसा भी नहीं था कि अपने पीठ पीछे होने वाले आक्षेपों का भान नहीं था । किसी ने उसके बारे में कुछ जानना भी चाहा तो वह चिर परिचित मुस्कान दे आगे निकल जाती । पूर्वी इस सब से तटस्थ अपने काम में व्यस्त , मानो संदेश दे रही हो जीवन काम के लिए है व्यर्थ की बातों में गंवाने को नहीं । संयमित सहज भाव से अपने काम में लग जाती ।कभी-कभी मेरा धैर्य भी जवाब दे जाता कि पूर्वी भी आज की लड़कियों जैसी होगी दिखावे की बगुला भगत ।


1 साल होने को आए थे पूर्वी ने ना कभी छुट्टी ली थी ना उससे कोई मिलने ही आया था खैर कुछ भी रहा हो मन ही मन उसका मैं भी कायल हो गया था । उसकी इस संयमित चिरपरिचित मुस्कान का । मैं भी घर में अकेला था शादी हुई भी और नहीं भी हुई थी । मेरी पत्नी नेहिल भी साधारण नाक-नक्श व परिवार की थी पर पता नहीं उसे किस बात का घमंड था । इस बात को 7 साल बीत जाने पर भी मैं नहीं समझ पाया वह हमेशा अपने में ही खोई रहती ना घर के कामों में रुचि न बाहर में । मां बाबूजी को बात-बात में जवाब लगा देना आपको यह समझ नहीं आपको वह समझ नहीं ।सब गंवार उसकी नजर में । 


एक दिन अचानक घर पहुंच बम विस्फोट सा हुआ, आकाश अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती मुझे कोई बहुत ही अच्छा मिल गया है । उसके मां पिताजी ने समझाया पर उसकी आंखों में तो प्यार का पर्दा चढ़ा हुआ था जब नहीं मानी तो सब ने उसको समझाना ही छोड़ दिया आखिर में तलाक ले चली गयी । 


कुछ दिन मैं गमगीन रहा । अब सोचता हूं तो हंसी आती है कि ऐसा नेहिल का और मेरा संबंध ही कितना था और लगाव जैसी तो कहीं कोई बात ही नहीं थी । पुनः विवाह का मेरा मन ही नहीं हुआ ,एक अजीब सी वितृष्णा संबंधों को सोचकर होती ।


अचानक पूर्वी की आवाज से मैं सचेत हुआ हेलो मिस्टर आकाश आप कहां खोये हैं ? 

"कहीं नहीं मैं बस यूं ही नहीं न नऽऽऽ"

" शायद आप थकान महसूस कर रहे हैं। आपको थोड़ा रेस्ट करना चाहिए । 1 घंटे के लिए कॉमन रूम में जाकर रेस्ट कर लीजिए ।

आज पूर्वी का अलग ही रूप महसूस हुआ जबकि नेहिल मेरे साथ 3 साल एक ही कमरे में रही पर उसे कभी क्यों नहीं मेरी भावनाओं का अहसास हुआ? और पूर्वी को जो मौन में भी मेरे अंदर के भाव समझ गयी । आज सबकी सुनी-सुनाई बातों की नींव भरभराकर ढह रही थीं ।


समय धीरे-धीरे गुजर रहा था अचानक पूर्वी 2 दिन ऑफिस नहीं आई तीसरे दिन एक संक्षिप्त मैसेज, "प्लीज आकाश जी मेरी अनुपस्थिति में 2-3 दिन ऑफिस मे काम संभाल लीजिएगा फिर मैं आती हूं ।


आकाश का मन नहीं लग रहा था बस उसे लगता कि पूर्वी को कोई परेशानी तो नहीं पर उसे पूर्वी का पता-ठिकाना भी नहीं मालुम था। दूसरे दिन सन्डे था ।आकाश का मन नहीं लग रहा था । वह पास की सोसाइटी में रहने वाले अपने दोस्त सजल के यहां निकल गया । काम की व्यस्तता के कारण अभी तक एक शहर में होने के बावजूद मिलने नहीं आ पाया था । मित्र अभी अकेले ही रह रहा था ।


मैं पानी पीने के लिए किचेन गया कि देखता हूं सामने के फ्लैट में पूर्वी जैसी कोई , ठीक से तो नहीं देख पाया । मैने सजल से बात चलाते हुए पूंछा ये तुम्हारे सामने के फ्लैट में कहां से हैं ? "पूंछो मत आकाश उनके साथ बहुत बड़ी ही ट्रेजडी हुई है उनका अपना बेटा उन्हें व अपनी पत्नी को छोड़ किसी एनआरआई से शादी कर अमेरिका जा बसा । वह तो उनकी बहू जीवट वाली है कि दोनों को अपने मां-बाप का मान दे रहती है ।


क्या तुम उनकी बहू से मिले ? नहीं, हां आन्टी से दो-चार बार गुड मार्निग हुयी । आन्टी अंकल दोनो अच्छे हैं । अंकल ने बताया था उनकी बहू मल्टीनेशनल कंपनी में डायरेक्टर है । मैं चौंकते हुये बोला क्या नाम बताया कंपनी का ।  

"वेदांत राय ऐन्ड कंपनी सुन", मैं समझ गया पूर्वी होगी संशय की गुंजाइश ही न रही ।

मैने सजल को चलने के लिए तैयार कर लिया ।

सजल और मैने दोनों(अंकल,आंटी) को प्रणाम कर पूंछा आप कैसी हैं ? बेटा अब तो सब ठीक है पर 3 दिन पहले अंकल की बहुत तबियत खराब थी । आन्टी प्रश्नवाचक दृष्टि सजल पर डालते हुए बोलीं ,सजल बेटा ये ? आन्टी ये मेरे मित्र आकाश हैं । सन्डे होने के कारण मेरे पास चले आये । 


"आन्टी आपने कैसे सब मैनेज किया मुझे कह देते तो मैं आ जाता "।


"नहीं बेटा ऐसी कोई बात नहीं मेरा बेटा जो था उसने सब बहुत अच्छे से मैनेज कर लिया। बहुत अच्छे से उसने सब कुछ संभाल लिया । बेटा के रहते मुझे किस चीज की परेशानी" ?आन्टी बोले जा रहीं थीं ।


"बेटा आंटी "? अरे पूर्वी मेरा बेटा ही तो है । पूर्वी जैसा बेटा तो दीपक लेकर भी ढूंढने से नहीं मिलेगा । पूर्व जन्म में पूर्वी मेरा बेटा ही रही होगी । मैं तो ईश्वर से यही मांगती हूं कि ईश्वर हर जन्म में मुझे पूर्वी जैसा बेटा दे" । "समझे नहीं न"?


मुझे प्रश्नसूचक आंखो से ताकते देख बोलीं ,

"बेटा जब मैं इसकी ओर देखती हूं तो मैं बहुत दुखी होती हूं इसने अपना फर्ज बाखूबी निभाया पर हम इसके लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं । मेरा अपना जाया तो नालायक ही निकल गया । अच्छे-अच्छे रिश्ते इसने हम दोनों बुड्ढों के लिए छोड़ दिये बस इसकी एक ही शर्त रहती है जो मेरे माता-पिता को स्वीकार करेगा मैं भी उसी को स्वीकार करूंगी "।


अब बता बेटा हमारा दुर्भाग्य ये क्यों ढोये , हम कितने दिन के साथी हैं और कितने दिन के नहीं पर इसकी तो पूरी जिन्दगी पड़ी है कोई सहारा तो चाहिए। यह हमारी एक नहीं सुनती बस यही कहती है मम्मी जी मैंने अपने माता-पिता को तो देखा नहीं (क्योंकि ये अनाथालय में बचपन से पली -बढ़ी है) ,अब आप ही मेरे माता-पिता है ,क्या मैं अपने माता-पिता को भी छोड़कर इसी तरह चली जाती ? नहीं मां जी मुझसे यह नहीं होगा ।


"मैं मानती हूं मेरा नमन से पति का कोई संबंध नहीं रहा, ना ही मैं उनसे कोई अपेक्षाएं रखती हूं पर फिर भी मैं कहीं नहीं जाऊंगी ,बातें करते-करते भावातिरेक में आन्टी का गला रुंध गया आंखें भर आईं । इतने बड़े ऑफिस में काम करते हुए भी देखो यह हम दोनों को दोनों समय गरम-गरम खाना खुद बना कर देती है । दिन रात एक कर दिए 3 दिन यह ऑफिस नहीं गई । मैं तो कुछ कर ही नहीं पा रही थी ।

अंकल अब खतरे से बाहर है , अस्पताल से आ गए हैं दो रात बिल्कुल नहीं सोई । सुबह मैंने इसको जगाना उचित नहीं समझा चाय का पानी रखने गयी तो हाथ से ग्लास छूट गया आवाज सुन जाग गयी ।बहुत नाराज हुयी मां जी आपने मुझे पराया कर दिया । इतना तो मेरी अपनी बेटी न करती ।

  

बेटा मेरे बेटे ने तो, जब से गया तब से सुध भी नहीं ली कि हम जिंदा भी हैं या मर गये । उसने तो हमें कभी अपना ही नहीं माना ।


जबकि ये पराई जाई ,इतनी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है कितने रिश्ते सामने से आये पर सास-ससुर को छोड़कर जाने को तैयार ही नहीं हुयी । 


तभी पीछे से आती पूर्वी की आवाज सुनाई पड़ी क्या मम्मी जी !! आप मेरी रामकहानी सुना , एकदम पराया कर देती हैं । ऐसा भी क्या मैं आप लोगों के लिए करती हूं । आप जो दिन रात मेरे लिए करती हैं वह कौन करेगा मेरी अपनी सगी मां ने तो मुझे मेरा मुंह देखे बिना अनाथालय में डाल दिया बस यही अपराध था कि मैं पांचवी बेटी थी। भावावेश में पूर्वी कह तो गयी पर मुझे सामने देख संकुचित हो गयी बोली आप ?

मैने ऑफिस से भिन्न ,चुन्नी से मुंह पोंछते पसीने से लस्त-पस्त किचेन से निकलती हाथ जोड़कर नमस्ते करती एक अलग ही पूर्वी को देखता ही रह गया ।


पूर्वी की कहानी सुन नतमस्तक हो 

गयी थी। मुझे आज अपने सहकर्मियों की सुनी-सुनाई पर कान देने के लिए खुद पर शर्मिन्दगी हो रही थी । वास्तव में पूर्वी अपूर्वा थी बिल्कुल अनोखी । आज कुछ ही पूर्वी हो जायें तो जीवन रंग पुष्प बन खिल उठें । 

सच ही किसी ने कहा हे "Don't judge people by their cover".

" मुझे आवरण से मत तोलो"।

          


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