जीना इसी का नाम
जीना इसी का नाम
सुबह की पहली किरण के खिड़की से झांकते ही नंदिनी ने चाय का प्याला हाथ में लिया और बगीचे की ओर बढ़ गई। बगीचे में खिले गुलाब और चमेली के फूलों को देखकर उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। यह वही नंदिनी थी, जो कुछ साल पहले तक जिंदगी से हार मान चुकी थी।
पिछले दस वर्षों में उसने कई मुश्किलों का सामना किया था—पति का असमय निधन, बच्चों की पढ़ाई का खर्च, और समाज के तानों का बोझ। लेकिन नंदिनी ने कभी हार नहीं मानी जबकि उसकी शिक्षा भी शादी होने से अधूरी ही छूट गयी थी । उसने सिलाई का काम शुरू किया और धीरे-धीरे एक छोटी सी बुटीक खड़ी कर दी। आज उसकी बुटीक शहर की सबसे लोकप्रिय दुकानों में से एक थी।
अचानक बगीचे में उसकी बेटी रिया दौड़ती हुई आई, "मम्मा, मैंने एमबीए में टॉप किया है!" नंदिनी की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। उसने बेटी को गले लगाया और महसूस किया कि उसकी मेहनत रंग लाई है।
शाम को जब नंदिनी ने थके हुए कदमों से छत पर चढ़कर ढलते सूरज को देखा, तो उसके मन में संतोष का एक भाव आया। उसने धीरे से बुदबुदाया, "जिंदगी में मुश्किलें तो आएंगी, लेकिन उन्हें पार करके जो हासिल होता है, वही असली खुशी है। जीना इसी का नाम है।"
उस रात नंदिनी चैन की नींद सोई, क्योंकि वह जानती थी कि उसने न केवल खुद को, बल्कि अपनी दोनों बेटियों को भी एक मजबूत व जीवट इंसान बना दिया है।
