क्या खोया क्या पाया जीवन में
क्या खोया क्या पाया जीवन में
जीवन के हर मोड़ पर हम सभी के पास एक तराजू होता है—जिस पर हम अपने अनुभवों को तौलते हैं। आज जब मैं अतीत के पन्नों को पलटती हूँ, तो यही सोचती हूँ कि क्या खोया, क्या पाया।
खोया समय का साथ
किशोरावस्था के दिनों में, जब सूरज की किरणें ऊर्जा का संचार करती थीं, मैंने किताबों के बीच अपना संसार बसाया था। पढ़ाई के नाम पर दोस्तों के साथ बिताए पल छूट गए। जहाँ एक ओर बच्चे सब अपने कैरियर में सफल होते गये , वहीं दूसरी ओर कुछ मासूम रिश्तों और स्वयं को मैं समय नहीं दे पायी। कई बार सोचा, अगर थोड़ा समय दोस्तों के साथ बाँटा होता, तो शायद आज मुझे और संजीवनी देतीं और मेरा खुद का जीवन कुछ और होता ।
पाया आत्मनिर्भरता का साथ
समय के साथ समझ आया कि जो खोया, उसने मुझे मजबूत बनाया। संघर्षों ने मुझे आत्मनिर्भरता का महत्व सिखाया। अकेलेपन में अपनी राहें खोजी। उस समय जो कठिनाइयाँ लगती थीं, वही आज मेरे व्यक्तित्व की नींव हैं।
खोया अपनों का साथ
जीवन की दौड़ में जब माता-पिता की आँखों की चमक देखी, तो महसूस हुआ कि उनके साथ बिताए पल कितने कम थे। जब मैं अपने परिवार के सपने पूरे कर रही थी, तब मायके नहीं जा पाती थी वे मेरे आने की उम्मीद करते थे। समय उनके साथ बिताने का जो सुख खोया, वह अब किसी भी सफलता से पूरा नहीं हो सकता।
पाया अपनों का विश्वास
जो खोया, उसका दर्द था, लेकिन जो पाया, वह गर्व से भर देता है। माता-पिता का विश्वास, दोस्तों का साथ, और अपने सपनों को साकार करने की संतुष्टि, एक सम्पूर्णता इन सबने मेरे जीवन को संतुलित बनाया पर कहीं कुछ टीसता है खुद को समय न देना ।
भावपूर्ण निष्कर्ष
जीवन के इस तराजू पर जब मैं अपनी यात्रा को देखती हूँ, तो समझ आता है कि खोना और पाना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो खोया, उसने सिखाया; जो पाया, उसने सँवारा। यह संस्मरण यही सिखाता है कि हर अनुभव, चाहे अच्छा हो या बुरा, जीवन को एक नई दिशा देता है।
शायद, यही जीवन की सबसे बड़ी सीख है—खोने और पाने के बीच संतुलन ढूँढ़ना।
