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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

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मुर्देश्वर मंदिर कर्नाटक

मुर्देश्वर मंदिर कर्नाटक

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मुरुदेश्वर मंदिर उत्तर कन्नड़ जिला की भटकल तहसील मे आता है । ये मंदिर कर्नाटक के तट पर स्थित है यह स्थान तीर्थ यात्रा के लिए बहुत ही शानदार व मनभावन स्थान है। मंगलौर अन्तरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से 160 किमी दूरी में स्थित है। मैं गोवा से कारबोलिम बीच से होकर गई थी । 


गोवा से लगभग 210 किलोमीटर बाया रोड मुर्देश्वर पड़ता है।रास्ते मे अघनाशिनी नदी भी मिलती है । भगवान शिव का दूसरा नाम ही मुर्देश्वर है ।श्मशान वासी मुर्दे की भभूति से जिनका श्रृंगार होता है । 


यह मंदिर तीन ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है यह मंदिर सोमनाथ गुजरात की याद ताजा कराता है इसकी प्राचीरो से लहर पवन से टकराती है मानों मुर्देश्वर भगवान का जलाभिषेक करने को आतुर हों । 

ये मंदिर कंडुका पहाड़ी पर बनाया गया है।इसका पुरातत्व भी द्रविड़ शैली का है भगवान शिव का "गोपुरम" या "गोपुर विमानम ("दक्षिण भारत शैली में एक स्मारक के रूप में अट्टालिका) (बहुमंजिला भवन से तात्पर्य होता है) शिल्प सज्जा द्रविड़ मंदिरो के द्वार पर हिंदू मंदिरों के स्थापत्य का प्रमुख आकर्षण होती है ।


ऊपर कलश शोभायमान होते हैं। वहां के क्षेत्रीय लोगो से पता चला कि रानी चेन्नभरा देवी ने लगभग 4.2 हेक्टेयर में 1611ईसवी सन् में मंदिर बनवाया था रानी कालीमिर्च की रानी के नाम से जानी जाती थी ।


यहां आध्यात्मिकता के साथ-साथ भव्य प्राकृतिक सौंदर्य देखकर आंतरिक शांति मिलती है ।कहा जाता है टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने इसको लूटपाट कर बहुत ही क्षति पहुंचाई थी ।

गोपुरम मुख्य द्वार 


गोपुरम के आगे दोनो ओर हाथी के बराबर की कंक्रीट के 2 हाथी हैं फोटोग्राफ्स मे देख सकते हैं ।

18 खंड का गोपुर बहुत ही सुंदर है । गोपुरम के हर दरो दीवार में देवी देवताओं व अप्सराओं की भावभंगिमाओं के नक्काशी दार अंकन है । दूर से देखने में यह बहुत ही अच्छा लगता है । यह गोपुरम 18 मंजिला इमारत के बराबर है ऊंचाई लगभग 250 फुट है इसमें 18 गोपुर है । द्रविड़ शैली के मंदिरों में लगभग 20 गोपुर बनाते हैं । बाहर कन्नड़ भाषा व अंग्रेजी में मंदिर का नाम लिखा है इसका गोपुरम कुतुब मीनार से भी ऊंचा है।

गोपुरम या गोपुर विमानम----- दक्षिण भारत की शैली में स्मारक के रूप में अट्टालिका जैसी बहुमंजिला इमारत जैसी । ऊपर के 18 मंजिल से लेंस से देखने पर समुद्र का दृश्य हवाई जहाज से देखते हुए लगता है ।


गोपुर के अंदर जाते ही प्रवेश मार्ग दायी ओर ऊपर 18 मंजिल में जाने को लिफ्ट है थोड़ा आगे जाने पर द्वार के  बायीं ओर सीढ़ियां हैं जो प्राचीन मंदिर के मुख्य द्वार तक जाती है ।दायीं ओर हाथी के बराबर ऊंचाई की कंक्रीट व सीमेंट की बनी हुई प्रतिमा है । दर्शनार्थी यहां पर सेल्फी व फोटो लेते हैं ।


बाएं ओर को सीढ़ियां व स्लोपी मार्ग मुख्य प्राचीन मंदिर की ओर जाती हैं । मंदिर के अंदर मंडपम भाग में शंकर जी की एक मूंछों वाली सिरों भाग की धातु की मूर्ति है । गर्भ गृह मे मृदेसा लिंग है ,उस को प्रसिद्ध रूप में मुरुदेश्वर कहते हैं ।मृदेश्वर मे कंडुकागिरि (हिल)भी कहलाता है ।

गर्भ गृह मृदेशा लिंग 




परिसर के चारों ओर शिव जी हनुमान जी बगुलामुखी देवी मां नवग्रह देव अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां है छोटी-छोटी शिवलिंग मूर्तियां भी स्थापित हैं । गर्भ गृह को छोड़कर सम्पूर्ण मंदिर का जीर्णोद्धार हो (नवीनीकरण)चुका है ।


भगवान शिव की प्रतिमा------मंदिर परिसर में दायें तरफ के भाग से स्लोपी मार्ग से गाडियां पार्किंग की ऊपर व्यवस्था है फिर और आगे जाने पर समतल मार्ग के बाद 3 भाग मे टीन शेड से ढकी सीढियां हैं एक भाग में 15-20 सीढियां हैं जीने की अधिक ऊंचाई नहीं है प्रत्येक खंड के परिसर में मूर्तियां व परिसर है मध्य के खंड में रावण की शिवलिंग लेते हुए आदम कद मूर्ति बनी है ।कंक्रीट की गायों की मूर्तियां हैं। 


भव्य विशाल नंदी की प्रतिमा मंदिर के सामने बनी है नंदी के सामने शिव परिवार व राम लक्ष्मण व जानकी जी की

प्रतिमा है।





सबसे ऊपर 123 फुट की शिव प्रतिमा बाएं भाग में बनी हुई है वह मूर्ति बहुत ही भव्य व विशाल मूर्ति है जो कलाकृति का नमूना है यह विश्व की दूसरे नंबर की सबसे ऊंची प्रतिमा मुर्देश्वर भगवान की है इसका सबसे अच्छा समय देखने का सूर्योदय व दोपहर का समय होता है सूर्य किरण के सामने पूरब से पड़ने से प्राकृतिक रश्मिया की चमकीली आभा विखेरती हैं 




दक्षिण परिसर में अठखेलियां करता उदधि का नजारा देखने को मिलता है बहुत ही विहंगम नयनाभिराम दृश्य होता है ।भगवान शिव की विशालकाय प्रतिमा ही यहां के आकर्षणों में एक है ।शिव जी की प्रतिमा के चार हाथ है सोने से सजाया गया है इसकी ऊंचाई 20 मंजिला इमारत के बराबर है । प्रतिमा की ऊंचाई 123 फुट है । 


यह रामायण काल से जुड़ा हुआ पौराणिक व धार्मिक स्थल है ।

मंदिर के बारे में किवदंती है कि शिव पुराण में भगवान शिव के आत्म लिंग का उल्लेख किया गया है रावण ने अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की आराधना उपासना की थी तब भगवान शिव प्रसन्न होकर आत्मा लिंग विग्रह के रूप में उसके साथ लंका जाने को तैयार हो गए थे पर साथ में शर्त यह भी रखी थी कि यदि तुम इसे कहीं जमीन पर रख दोगे तो यह वही स्थापित हो जाएगी ।उसके बाद कोई के उठाने से भी यह मूर्ति नहीं उठेगी । 

रावण शिव लिंग लेता हुआ



देवता नहीं चाहते थे कि यह प्रतिमा रावण लंका ले जाये भगवान गणेश व भगवान विष्णु ने उससे छल से लिंग को जमीन में रखवा दिया था और वह भोलेनाथ के कहने के अनुसार अचल हो गया ।रावण ने लिंग को नष्ट करने की बहुत कोशिश की ।


हमले से लिंग बिखर गया और कई पवित्र स्थान बन गए बैद्यनाथ धाम मे भी एक पवित्र स्थान बना और कर्नाटक का मुर्देश्वर उन्हीं मे से एक है । यहां पर सूर्य व अर्जुन का रथ बने हुए हैं और भगवान कृष्ण उसमें सारथी रूप में दिखाए गए हैं 


मंदिर में गोपुरा का जीर्णोद्धार और भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति का निर्माण स्थानीय व्यापारी और समाजसेवी आरएन शेट्टी के द्वारा कराया गया मूर्ति के निर्माण में ही लगभग 2 साल का समय लगा और लगभग ₹5 करोड़ की लागत आई शिल्पकार शिवमोग्या के काशी नाथ जी हैं ।


वैसे तो यहां हमेशा श्रद्धालु दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है पर प्रदोष सोमवार को अधिक भीड़ होती है श्रावण कार्तिक पूर्णिमा पर शिवरात्रि में पर्वोत्सव होते हैं ।इसके समकक्ष 5 स्थान और भी है शिव लिंग वहां भी स्थित हैं ।


    


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