Savita Negi

Romance

4.0  

Savita Negi

Romance

एहसास

एहसास

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"मैं ऑफिस जा रहा हूँ, दरवाज़ा बन्द कर लो।" रवि ने अंजली की तरफ देखते हुए ज़ोर से कहा। लेकिन अंजली बर्तन पटकने में व्यस्त थी।

"जा रहा हूँ.... बंद कर लो।"

"जाओ न फिर किसने रोका है?"

धनधनाती हुई अंजली आई और दरवाज़े को जोर से पटक कर बन्द कर दिया। रवि सहमा हुआ सा, बुझे कदमों से ऑफिस चला गया।


दोनों की शादी को एक साल ही हुआ था। जहां अंजली बहुत चंचल, बातूनी और रोमांटिक स्वभाव की थी वहीं रवि बहुत धीर गंभीर और चुप रहने वाले स्वभाव का था। रोमांस शब्द ही उसकी जिंदगी की डायरी से गायब था। घर और ऑफिस इससे ज्यादा किसी से कोई मतलब नहीं था। घर पर भी या तो न्यूज या फिर ऑफिस का काम। 


अंजली अक्सर अपनी सहेलियों की रोमांटिक तस्वीर उनके पतियों के साथ फेस बुक में देखती थी झप्पी मारते हुए, कैंडल नाइट डिनर की तस्वीरें , तो कभी हाथ पकड़ कर समुंदर की लहरों के साथ भागते हुए। मन मे रवि के स्वभाव को लेकर एक टीस उठती और एक तुलनात्मक अध्ययन उसके दिमाग़ में दौड़ने लगता था, " वाओ!! कितनी लकी हैं मेरी फ्रेंड्स और एक मैं हूँ , हनीमून में भी रवि मेरा हाथ ऐसे पकड़ रहा था मानो पत्नी का नहीं पड़ोसन का हाथ हो। कितनी बार मैं उसे खींच कर उसके कंधे में सर टिकाती, रवि झेंप कर हटा देता की क्या बचपना है, लोग देख रहे हैं। मन तो करता ज़ोर से चिल्लाऊं की वो भी कपल हैं जो एक दूसरे से बीच सड़क में चिपक कर फ़ोटो खिंचवा रहे हैं।"...धीरे धीरे अंजली समझ गयी कि रवि उतना बोल्ड नहीं ,शर्माता है।


अंजली का मूड इसीलिए खराब था दरअसल दो दिन पहले कॉलोनी में किसी की शादी में गए थे। अंजली बहुत मन से तैयार हुई थी जब रवि से पूछने गयी "कैसी लग रही हूँ, ये साड़ी ठीक है?"

तो रवि ने बिना देखे ही बोल दिया "हाँ बहुत अच्छी लग रही हो।"


वहीं से अंजली का बीपी हाई होना शुरू हो गया था। उसके बाद शादी में अंजली को कॉलोनी की दूसरी महिलाओं के साथ छोड़कर खुद किसी बुजुर्ग को पकड़ कर बैठ गया और देश विदेश, राजनीति की चर्चा में व्यस्त हो गया। अंजली कुड़ गयी थी, अंदर तक गुस्से से भर गई थी। क्योंकि वो उनको ज्यादा अच्छे से नहीं जानती थी। जब भी रवि को बुलाने जाती तो "तुम एन्जॉय करो न अपनी फ्रेंड्स के साथ, जान पहचान बढ़ाओ" सुनकर वापस आ जाती।


दूसरे कपल को डांस करते देखती, फ़ोटो खिंचवाते देखती तो उसका मन दुखी हो जाता।


"कैसा पति ढूंढा मेरे घरवालों ने, जवानी में बुढयाया हुआ। कोई फीलिंग्स ही नहीं है इसके अंदर।"

घर आने की देर थी कि...

"खाना बहुत अच्छा था न शादी में अंजली"


"हाँ खाना ही खाना तुम, तुमको खाने के अलावा कुछ और दिखता भी है। खाने से ही प्यार है तुमको मुझसे नहीं। अपनी पत्नी के साथ खड़े होने में तो शर्म आती है तुमको। क्या मैं अच्छी नहीं दिखती? क्या मैं अनपढ़ हूँ? शादी क्यों करी तुमने?" गुस्से में थोड़े आँसू बहाकर अंजली सो गई।


रवि को कॉफी भी पीनी थी लेकिन अभी उसने भी चुपचाप लाइट बंद करके सोने में अपनी भलाई समझी। तब से अंजली रवि से ठीक से बात नहीं कर रही थी।...


रवि ने ऑफिस पहुँचकर अंजली को फ़ोन किया परंतु फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था। कुछ देर बाद रवि ने फिर फोन किया इस बार भी स्विच ऑफ। रवि ने जब तीन चार बार और फ़ोन किया और फ़ोन स्विच ऑफ ही रहा तो रवि डर गया। मन में बुरे खयाल आने लगे कि कहीं गुस्से में अंजली ने कुछ तो नहीं कर लिया। न ही कभी बिना बताए कहीं जाती है ।ये सोच आते ही रवि तुरंत छुट्टी लेकर घर की तरफ दौड़ा। दहशत में जैसे ही घर पहुंचा तो ताला लगा था। रवि घबराहट में पसीने पसीने हो गया।


तभी पड़ोस में रहने वाली भाभी ने बताया कि उसने अंजली को बैग के साथ गेट से बाहर जाते देखा था। बैग के साथ !! ये सुनते ही रवि बस स्टॉप की तरफ भागा। भाभी को कुछ नहीं बताया था।


"एक तो उसके लिए नया शहर है किसी को ठीक से जानती भी नहीं, कहाँ गयी होगी? अपने में बड़बड़ाता हुआ कि बस तुम मिल जाओ एक बार, फिर जैसा बोलोगी वैसा ही करूँगा। जिस रंग में ढालोगी उसी रंग में रंग जाऊँगा... बस तुम मिल जाओ अंजली। अपने हाथों की उंगलियों को भेंटे हुए रवि बेतहाशा बस स्टॉप की तरफ दौड़ा जा रहा था।......


उधर अंजली घर पहुँची तो वही पड़ोस वाली भाभी ने बताया कि रवि घर आया था उसके बारे में पूछ रहा था और बहुत परेशान सा दिख रहा था। "कुछ हुआ है क्या तुम्हारे बीच?"

"नहीं नहीं सब ठीक है" अंजली ने दोनों के बीच की बात उनको बताना ठीक नहीं समझा ।


अंजली भी घबरा गई। क्या हुआ होगा ? क्यों परेशान होगा? आज जल्दी कैसे आ गए? मैं भी न कुछ ज्यादा बोल जाती हूं। कल रात से क्या नहीं बोला उसको। बिल्कुल अक्ल नहीं मुझे भी। वो नौकरी करता है वहाँ भी कितनी परेशानी होंगी, मुझसे ही थोड़ी चिपका रहेगा। कोई भी तो ऐब नहीं उसमें, कितना सीधा भी है, कुछ नहीं बोलता मुझे। हे भगवान!! रक्षा करना उसकी । बड़बड़ाते हुए अंजली भी कॉलोनी के चौराहे तक रवि को ढूंढने चली लगी। 


पड़ोसन के यहाँ से फ़ोन करे तो वो पूरा डिटेल पूछने बैठ जाएगी, थोड़ी खबरी टाइप की भी है और बिना बात का बवाल बन जायेगा। ये सोचकर अंजली हाथों की उंगलियों को भींचे हुए वहीं खड़े खड़े इंतजार करने लगी।


जब बहुत देर हो गयी तो अंजली लौट कर घर की सीढ़ियों में बैठकर प्रार्थना करने लगी कि "भगवान जी रवि को सकुशल घर भेज दो। अब से उसके रूखे स्वभाव को लेकर कभी झगड़ा नहीं करूंगी, न ही उसे जबरदस्ती रोमांटिक बनाऊंगी, वो जैसा है वैसा ही अच्छा है, उसको सही सलामत घर भेज दो"


तभी सामने से अंजली ने रवि को आता देखा और खुशी से उछल पड़ी ,रवि भी सीढ़ियों में अंजली को बैठा देखकर चौंक गया।


"अंजली तुम कैसी हो? कहाँ थी तुम? सुबह से मैं पागलों की तरह तुम्हें ढूंढ रहा हूँ।" कहते हुए रवि ने कस कर अंजली को गले से लगा लिया।

"दुबारा घर से मत भागना, मेरी जान निकल गयी थी। कितने बुरे बुरे ख्याल दिल में आ रहे थे ,उफ़्फ़...शुक्र है भगवान का तुम सही सलामत हो।...


सुनो, कुछ एहसास दिल में होते हैं । अपने एहसासों को शब्दों में पिरोना नहीं आता मुझे इसका मतलब ये नहीं की तुम्हें प्यार नहीं करता, आई लव यू। तुम तो मेरी जान हो।"..


"मुझे भी माफ कर दो मेरे व्यवहार के लिए आई लव यू टू। नहीं पता था तुम मुझे इतना प्यार करते हो।....


लेकिन मैं घर से भागी नहीं थी ये किसने कहा तुमसे ?"


"तुम बैग लेकर कहाँ गयी थी, और फ़ोन कहाँ है?"


"बैग में कपड़े थे। प्रेस के लिए लेकर गयी थी और उसके बाद मार्किट चली गयी थी । वो ...वो.....सुबह..फ़ोन को गुस्से में जरा ज़ोर से पटक दिया था इसलिए वो शांत पड़ा है। सॉरी अब से ऐसा नहीं करूंगी।" अंजली ने कान पकड़ते हुए कहा।


" जरा ज़ोर से नहीं, बहुत ज़ोर से पटका होगा तभी शांत हो गया बेचारा, मेरी जगह पिट गया।" ...दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे।


जो भी हुआ इस बात का दोनों को एहसास दिला गया कि एक दूसरे की परवाह ही प्यार होता है। परंतु अपनी भावनाओं को एक दूसरे से साझा जरूर करना चाहिए।


उन्हें यूँ दिल में न रखकर प्रेम की चाशनी में डुबोकर समय -समय पर एक दूसरे के सामने जरूर परोसना चाहिए। दिल में छुपे हुए जज़्बातों को कौन पढ़ पाता है । इसलिए इन खूबसूरत भावनाओं की अभिव्यक्ति बहुत आवश्यक है।


धन्यवाद।



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