manisha sinha

Romance

4.9  

manisha sinha

Romance

एहसास

एहसास

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मीरा आज बहुत ख़ुश थी। अनाथालय में पले बढ़ें होने के कारण हर बार उसने अपनी इच्छाओं को मारा था। मगर आज उसकी मेहनत रंग लाई थी। आज उसने छोटे शहर में ही सही मगर अपनी एक पहचान बनाई थी।अब उसे अपनी ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं थी और आज तो उसे अपने ऑफ़िस में बेहतर पत्रकार के ख़िताब से पुरस्कृत किया गया था। ख़ुशी और गर्व से उसकी आँखें चमक रही थी। वह इस ख़ुशी को उस इंसान के साथ जल्द से जल्द बाँटना चाहती थी जो सही मायने में उसकी तरक़्क़ी से ख़ुश था,जिसका नाम था संजय। वह भी मीरा की ही तरह अनाथालय में पला बढ़ा था और आज उसने भी समाज में अपने लिए एक ख़ास जगह बनाई थी। वह एक NGO चलाता था जो बेघर बेसहारा लोगों को आसरा और काम दिलवाते थे। अभी ५ साल पहले ही जब संजय मीरा के आॉफिस किसी काम के सिलसिले में आया था तो वहीं उसकी मुलाक़ात उससे हुई थी। उसी समय मीरा ने नयी नयी नौकरी शुरू की थी। हमेशा डरी सहमी मीरा के चारों तरफ़ उसने अपने शब्दों की ऐसी ढाल तैयार की थी कि आज मीरा आत्मविश्वास से भरी थी। ऐसे बार बार काम के सिलसिले में आने की वजह से एक दूसरे की अच्छी जान पहचान हो गई थी और यह पहचान धीरे धीरे गहरी दोस्ती में बदल गई थी। वैसे संजय के मन में मीरा के लिए कुछ और भी था लेकिन उसने कभी भी उसके सामने अपने इस एहसास को ज़ाहिर नहीं किया था। उसे तो यह भी नहीं पता था कि मीरा उसके बारे में क्या सोचती है। इसीलिए जैसा चल रहा था वैसे चलने दे रहा था। लेकिन दोंनों जब भी मिलते घंटों बातें करते,एक दूसरे की सुनते और कोई तो था भी नहीं इस दुनिया में एक दूसरे के सिवा। इधर मीरा भी हमेशा यही सोचती कि संजय पता ना उसके बारे में क्या सोचता है, कभी वह अपने प्यार का इज़हार नहीं करता तो मैं कैसे बोलूँ इसीलिए वह भी चुप ही रहती।

उधर जैसे ही मीरा के ऑफ़िस की छुट्टी हुई उसने तुरन्त ही ऑफ़िस के पास की टेलिफ़ोन बूथ से संजय के ऑफ़िस फ़ोन किया । मगर पता चला कि वह घर के लिए निकल गया था। वह भी रिक्शा बुला तुरन्त ही संजय के घर के तरफ़ चली गई। जैसे ही वह संजय के घर पहुँची संजय भी उसे देखकर काफ़ी ख़ुश हुआ। काफ़ी दिनों से काम में व्यस्त रहने की वजह से वे एकदूसरे से मिल नहीं पाए थे। उसने तुरन्त ही मीरा के लिए चाय चढ़ाई और पास जाकर जल्दी से समोसे ले आया। जैसे ही संजय समोसे लेकर आया उसने संजय को पास बिठाया और अपने पुरस्कार के बारे में बताया। संजय भी फूला नहीं समा रहा था। वह मीरा के लिए बहुत ही ज़्यादा ख़ुश था। लेकिन आगे जो मीरा ने उससे कहा वह सुनकर वह थोड़ा मायूस हो गया।

मीरा ने कहा पुरस्कार के रूप में उसे दिल्ली के ऑफ़िस में ५ महीने और काम सीखने के लिए भेजा जा रहा है। अगर उन्हें मेरा काम पसन्द आएगा तो वहीं पर मुझे नियुक्त कर लिया जाएगा। सोचो संजय, यह मेरे जीवन का कितना ख़ूबसूरत पल है।

फिर ख़ुद को सँमभालते हुए कहा,लेकिन दिक़्क़त यह है कि मैं कभी दिल्ली गई नहीं, इसीलिए तुम्हें भी मेरे साथ दिल्ली चलना होगा।

संजय जो यह सब सुनकर मायूस सा हो गया था समझाते हुए बोला,ठीक है तुम्हें पुरस्कार मिला तुम्हारी तारीफ़ हुई लेकिन दिल्ली जाने की क्या ज़रूरत है । तुम वैसे भी बहुत जानती हो। और तुम यह भी कह रही कि तुम्हें वहाँ नौकरी भी मिल सकती है। आख़िर क्यों, करना है यह सब। अच्छा तो चल रहा सब हमारा यहाँ। इस तरह संजय ने मीरा को बहुत समझाने की कोशिश की । वह किसी भी तरह से मीरा को दूर जाने से रोकना चाहता था। मगर उसकी किसी भी बात का मीरा पर कोई असर नहीं हुआ। अंत में मीरा ने वह बात कह दी जो उसे नहीं कहनी चाहिए थी। उसने कहा,कि तुम मेरी तरक़्क़ी से अब चिढ़ने लगे हो। मैं तुमसे आगे बढ़ूँ यह तुम्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा अब। तुम्हें क्या लगता है अगर तुम मेरे साथ दिल्ली नहीं आओगे तो, मैं दिल्ली नहीं जा सकती। ज़िंदगी बार बार मौक़े नहीं देती है। मुझे तो इसी तरह एक एक कर बहुत ऊँचाई तक पहुँचना है। मुझे लगा था तुम मेरा साथ दोगे । मगर कोई बात नहीं। अपनी मंज़िल तक मुझे जाने से कोई नहीं रोक सकता है। इतना कहकर जो वह मुड़ी वह दिल्ली जाने के दिन भी उससे मिलने नहीं आई,और ना ही संजय को जाने की सूचना दी। संजय को अंत तक यह यक़ीन नहीं हो रहा था कि मीरा अपने करियर और नौकरी को लेकर इतनी ज़्यादा गंभीर हो जाएगी कि उसे उसका ध्यान तक नहीं रहेगा। बहुत उदास हो गया था वह।

महीने में वह एक दो बार ज़रूर मीरा के ऑफ़िस का चक्कर लगा लिया करता था कि उसकी कोई ख़बर आई क्या ! या वह कब वापस आ रही है ? उसे बार बार यही ख़याल खाई जाती थी कि मीरा के कहने पर भी वह उसके साथ दिल्ली नहीं गया। अब पता ना वो वहाँ कैसी होगी। मगर दुसरी तरफ़ यह याद कर ग़ुस्से से भर जाता था कि ना तो उसने जाते वकत इसकी ख़बर ली और ना वहाँ पहुँचकर ही कुछ बताया ना कोई ख़त लिखा।

इसी कश्मकश में ६ - ७ महीनें बीत गए। मगर मीरा की कोई ख़बर नहीं आई।

एक शाम जब वह ऑफ़िस से अंक आया तो अनायास ही मीरा के बारे में सोचकर उदास हो गया। वह रात भर इसी बेचैनी में रहा कि वहाँ सब ठीक तो होगा। सब मेरी ग़लती है। मैंने उसे वहाँ अकेले क्यूँ जाने दिया। रात बड़ी मुश्किल से कटी। फिर वह अगली सुबह मीरा के ऑफ़िस पहँुच गया। बार बार वहाँ जाने और मीरा की खोज ख़बर लेने से मीरा की एक दोस्त स्नेहा से उसकी अच्छी जान पहचान हो गई थी। जैसे ही ऑफ़िस पहुँचा उसकी नज़र तुरन्त ही स्नेहा पर गई। वह स्नेहा के पास मीरा की ख़बर लेने गया और इससे पहले कि वह मीरा के बारे में कुछपूछता सनेहा ने कहा,कल मीरा का ख़त मिला। संजय ने स्नेहा की बात को काटते हुए कहा,मेरे बारे में कुछ पूछा क्या ? कैसी है वह ? कब वापस आ रही ?

सनेहा संजय को किनारे ले आई और थोड़ा कड़े शब्द में कहा,भूल जाओ उसे। उसने वहीं रहने का मन बना लिया है और उसने वहाँ शादी भी कर ली है। संजय को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। वह कुछ बोलने की हालत में नहीं था। उसने कह।, उसने एक बार भी मुझे बताना भी ज़रूरी नहीं समझा। स्नेहा थोड़ी देर वहाँ रूक कर, वहाँ से चली गई। संजय बहुत देर वहीं जड़ बना खड़ा रहा। उसे यह यक़ीन नहीं हो रहा था कि मीरा ने एक बार भी उससे बात करने की कोशिश भी नहीं की। बड़ी मुश्किल से उसने ख़ुद को सँभाला और अपने अर चला गया।

१० दिनों तक वह दिन दुनिया से बेख़बर मीरा के ख़यालों में ही डूबा रहा। मगर फिर हिम्मत जुटाते हुए वह अपने ऑफ़िस वापस आया और ख़ुद को मीरा की यादों से दूर करने लगा। मगर यह उसके लिए इतना भी आसान नहीं था।

इस तरह दिन बीतते गए। देखते देखते २ साल हो गए। संजय बड़ी मुश्किल से मीरा की यादों से उबर पाया था। मीरा के साथ बीता हुआ पल उसके लिए सपने के समान था। जो हर रात उसकी नींद उड़ाता था।

रविवार का दिन था। वह अपने घर में बैठे अपने पुराने दिनों को याद कर रहा था । तभी एक रिक्शा उसके घर के पास आकर रूकी। पहले तो संजय ने ध्यान नहीं दिया। फिर जब उसके घर का दरवाज़ा किसी ने खटखटाया तो उसे यक़ीन हुआ कि उससे ही मिलने कोई आया है। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला स्नेहा उसके सामने खड़ी थी। तुरन्त ही स्नेहा ने कहा,देखो तुमसे कौन मिलने आया है ? संजय ने आश्चर्य से घर से बाहर निकल कर देखा। वहाँ मीरा खड़ी थी। पहले को उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे, फिर उसने ख़ुद को सँभालते हुए कहा,,क्या करने आई हैं ये यहाँ ?इनका मेरे से क्या वास्ता ?

सनेहा ने बात सँभालते हुए कहा, अरे ! पहले अंदर तो आने दो। फिर जो चाहे बोल लेना। फिर संजय ने ग़ौर से देखा और अभी सोच ही रहा था,कि कुछ तो गड़बड़ है मीरा के साथ और कुछ बोलता, तभी सनेहा मीरा का हाथ पकड़कर धीरे से उसे घर के अंदर लेकर आई। मीरा का चेहरा भी पूरा बिगड़ा हुआ था।

मीरा ने संजय से कहा-बात नहीं करोगे ? ग़ुस्सा तुम हो, तो मैं भी हूँ। वैसे भी कुछ दिनों की छुट्टी में यहाँ आई हूँ। कल ही मेरे पति यहाँ मुझे छोड़कर गए हैं। उन्हें २ साल के लिए कनाडा जाना है तो सोचा थोड़ा अपने शहर घूम आऊँ। इसी बहाने तुमसे मिलना भी हो जाएगा। काफ़ी बदल गया है ये शहर।

तुम भी तो बदल गई ना। संजय ने बेचैन होकर कहा ।

वैसे ये सब छोड़ो और यह बताओ तुम्हें क्या हुआ ? तुम्हारी आँखों की रोशनी कैसे चली गई ?इतना कह संजय भाव विभोर हो गया। सनेहा ने उसे ढाढ़स बँधाया और दोनों को बात करने के लिए अकेला छोड़ वहाँ से चली गई।

फिर मीरा ने कहा कि कैसे उसकी दिल्ली में एक वाहन दुर्घटना में आँखें चली गई। फिर कैसे नवीन उसके पति उसके लिए एक फ़रिश्ता बनकर आए। वह उससे उसके इस हाल के बावजूद भी बहुत प्यार करते हैं। वह भी अपने पति से बहुत प्यार करती है। उनके बिना रह नहीं सकती । लेकिन उसके पति को अचानक से कनाडा जाना पड़ा। जिस वजह से वह यहाँ कुछ दिनों के लिए रहने आई है।

संजय मीरा की आपबीती सुन बहुत दुखी हुआ। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोले। उसे इस बात का बहुत बुरा लग रहा था कि वह मीरा के बुरे समय में उसके साथ नहीं था। मगर उसे इस बात की ख़ुशी थी कि उसे खोई सच्चा प्यार और ध्यान रखनेवाला साथी मिल गया था। अपने मन के दुख और वैर को भूलते हुए उसने शांत भाव से मीरा से पूछा,चाय लोगी ? मीरा ने भी हाँमी भरी।

फिर चाय बनाते बनाते संजय ने मीरा से पूछा, कहाँ रूकी हो ?

मीरा ने कहा सनेहा के घर रूकने का सोचा था मगर अभी उसकी शादी हो रही तो वह व्यस्त रहेगी। अभी तक और तो कुछ इंतज़ाम नहीं हुआ तो वही तुम्हारे पास पूछने आई थी कि तुम्हारे NGO के तरफ़ से कुछ इंतज़ाम हो सकता है क्या रहने का ?

संजय उत्तेजित हो बोला,बिलकुल नहीं। तुम्हें अगर कोई दिक़्क़त ना हो तो तुम यहाँ रूक सकती हो। जब तुम्हारे पति आए तो तुम चली जाना। इस हाल में कैसे तुम अकेले रहोगी। मगर मीरा नहीं मानी। और संजय को मीरा के लिए एक रहने की जगह का इंतज़ाम करना पड़ा। मगर संजय इस बात से ख़ुश था कि मीरा के लिए घर उसके घर के पास ही मिल गया था। ताकि समय समय पर वह उसकी मदद कर सकता था।

फिर तो मीरा और संजय का रोज़ ही मिलना होने लगा। संजय की मानों पुरानी ख़ुशी वापस लौट आई थी। उसे फिर से मीरा के साथ समय बिताकर अच्छा लग रहा था। जबकि वह इस बात से अंजान नहीं था कि मीरा अब उसकी कभी नहीं हो सकती थी।

ऐसे ही धीरे धीरे समय बीत रहा था। मीरा बार बार संजय से पूछती मेरा कोई ख़त आया है क्या ? मगर संजय हर बार मना कर देता।

मीरा हरवकत अपने पति की बातें करती और उसके ख़त का इंतज़ार करती।

ऐसा करते दो महीने बीत गए। फिर एक दिन संजय ख़ुशी ख़ुशी मीरा के घर आया और कहा तुम्हें पता है मैं क्या लेकर आया हूँ ?

कया ? मीरा ने पूछा।

संजय ने कहा, नवीन का ख़त। यह सुन मीरा भी फूली ना समाई।

कब मिला,मीरा ने पूछा।

आज ही मेरे ऑफ़िस के आगे पड़ा मिला।

फिर मीरा ने याद करते हुए कहा,हाँ मैंने नवीन को वहीं का पता दिया था।

फिर मीरा ने कहा,पढ़ो ना क्या लिखा है।

संजय ने कहा, मैं पड़ूँ ।

तभी मीरा ने कहा हाँ,पढ़ना तो पड़ेगा । मुझे तो आँखों से दिखता नहीं।

फिर संजय ने पढ़ना शुरू किया,

प्रिय मीरा, १२/२/१९९६

कैसी हो ? तुम्हारे बिना मेरा बिलकुल ही मन नहीं लगता है। मन होता है या तो मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ या तुमको अपने पास बुला लूँ।

तुमहारे बिना एक पल भी काटना पहाड़ जैसा लगता है। तुम मेरे दिल दिमाग़ में बसी हो। तुमहारे बिना मेरा यहाँ बिलकुल मन नहीं लगता।हर पल ऐसा लगता है कि तुम मेरे पास हो। तुमहारे लिए कुछ पैसे भेज रहा हूँ । धीरे धीरे और भेजूँगा । तुम किसी अच्छे चिकित्सक से मिलकर अपने आँखों के इलाज के लिए बात करती रहो।

तुमहार सिर्फ़ तुम्हारा, नवीन।

खत पढ़ने के बाद संजय ने मीरा को पैसे और ख़त दोनों पकड़ा दिए। और कहा, तुमहारे पति बहुत प्यार करते हैं तुमको। बहुत ख़ुशक़िस्मत हो तुम। और कहा, तुम बेकार ख़त के लिए इतनी परेशान रहती हो रही थी। १२ फ़रवरी को लिखा ख़त आज २० मार्च को मिला है। तुम ऐसे हिम्मत ना हारा करो। कनाडा इतना भी पास नहीं। और हाँ, तुम एक अच्छे से आँख के चिकित्सक से मिलना शुरू करो। मैं कुछ पता करता हूँ फिर तुम्हें वहाँ ले चलूँगा।

इतना कह, संजय अपने घर चला गया।

फिर ऐसे ही जब नवीन का ख़त आता संजय उसे मीरा के लिए पढ़ता और पैसे मीरा को दे दिया करता।

इधर संजय ने मीरा के लिए एक अच्छे चिकित्सक का पता लगाया । जो शहर में अभी नया नया ही खुला था। वहाँ हर तरीक़े के आधुनिक इलाज की सुविधा थी। संजय मीरा को उस चिकित्सक के पास ले जाने लगा।

सारे जाँच होने के बाद सर्जरी का एक निर्धारित समय तय हुआ। सर्जरी १महीने बाद होनी थी।

एक शाम संजय फिर से मीरा के लिए उसके आए ख़त को पढ़ रहा था, तभी सनेहा भी मीरा का हाल लेने वहाँ आ गई। सनेहा ने कहा, चलो अच्छा है सर्जरी के बाद तुम फिर से देख पाओगी।

इसपर मीरा ने कहा,नहीं करानी मुझे कोई सर्जरी।

संजय ने चौंकते हुए पूछा, क्यों ?

इतने पैसे का इन्तज़ाम, इतनी भाग दौड़ कौन करेगा। और मैं तुम सब पर बोझ नहीं बनना चाहती । जब मेरे पति वापस आएँगे, तभी मैं अपना इलाज कराऊँगी।

इसपर संजय ने झंझलाते हुए कहा,कितनी मुश्किल से एक सर्जन का पता चला है । तुम कयों नहीं अपने पति को आज ही ख़त लिखकर बता देती । वह समय निकालकर आ जाएँ । अगर तुम्हें हमपर भरोसा नहीं । लेकिन सर्जरी नहीं टालो। बड़ी मुश्किल से एक अच्छे सर्जन ने सर्जरी का समय दिया है।

मीरा बिलकुल ख़ामोश हो गई । फिर कहा,तुम्हें क्या करना है, मैं कभी भी इलाज करवाऊँ। जब मेरे पति आएँगें मैं करा लूँगी।

तभी सनेहा ने कहा, अब और मत छुपाओ मीरा। जो सच है वो बता दो।मीरा फिर अपने मन के भावों को सँभाल नहीं पाई और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।संजय को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ।

संजय ने कहा,क्या बात है..कोई बताएगा मुझे?

सनेहा ने बड़ी मुश्किल से मीरा को शांत किया।

फिर मीरा ने कहा,मेरी शादी कभी हुई ही नहीं। मैं कभी दिल्ली गई ही नहीं। जिस रात मैं तुमहारे घर से निकली उसी रात मेरे रिक्शे की एक कार से बहुत बुरी तरह टक्कर हो गई थी। रिक्शावाले की वहीं मौत हो गई। लेकिन जिस गाड़ी ने मुझे टक्कर मारी वह एक चिकित्सक की थी। उसने मेरी जान बचाई और कई दिनों तक अपने अस्पताल में दूसरे बड़े डाक्टर से मिल मेरा इलाज किया। जब मैं महीनों बाद होश में आई तो उसने अपने किए की माफ़ी माँगी और पुलिस में जाने से मना किया।

मैं ख़ुद इस हाल में नहीं थी कि मैं कहीं जाऊँ। फिर उसने अपने घर रूकने कहा। ताकि मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊँ। उसने मुझसे मेरे जानने वाले के बारे में पूछा। मगर मैं अपने इस बेबस हाल लिए तुमहारे पास नहीं आना चाहती थी। फिर मैंने स्नेहा को वहाँ बुलाकर अपना हाल बताया और तुम्हें कुछ भी बताने से मना किया।

फिर सनेहा ने भी बोला कि तुम मुझे बार बार खोज रहे हो। मैं चुपचाप सनेहा के साथ यहाँ आकर इसके घर रहने लगी। और अपनी शादी की झूठी ख़बर के बारे में तुम्हें कहलवाया। ताकि तुम मुझे भूलकर कहीं शादी कर लो। मेरे लिए भी आसान नहीं था संजय तुमसे अलग रहना। मेरी ज़िंदगी हो तुम। यह कह मीरा फूट फूटकर रोने लगी। और अब यह सर्जरी का बोझ, मैं नहीं डाल सकती तुम्हारे उपर। इसीलिए अब मैं और अपना सच नहीं छुपा सकती थी।

तभी संजय ने चिल्लाकर कहा,मगर ऐसा हुआ नहीं ना। कितना दुख दिया है तुमने मुझे अपनी एक नासमझी की वजह से।

और मैं पागल की तरह सिर्फ़ तुम्हें ख़ुश करने के लिए झूठी चिट्ठियाँ सुनाता रहा। मुझे लगता था कि तुम्हारे पति को तुम्हारी कुछ पड़ी नहीं। इसीलिए वह तुम्हें ख़त नहीं लिखते।मुझे क्या पता था ,इतना बड़ा झूठ बोला है तुमने,सिर्फ़ मुझे ख़ुद से दूर करने के लिए।

मीरा ने संजय के पास जाकर रोते हुए कहा,तुम जब मुझे ख़त पढ़कर सुनाते थे मुझे पता होता था कि तुम अपना हाल सुना रहे। मगर मैं अपनी बेबसी तुमपर डालना नहीं चाहती थी। बहुत झेला है तुमने बचपन से। मैं चाहती थी तुम्हारी आगे की ज़िंदगी बिना किसी दुख तकलीफ़ के बीते। मेरे साथ तो जो होना था, हो गया।

फिर संजय ने ज़ोर से मीरा को गले लगा लिया और कहा,प्यार करता हूँ मैं तुमसे। और इसमें किसी तरह का सौदा नहीं होता। पूरी ज़िंदगी तुमहारे साथ जीना चाहता हूँ। अब और सज़ा मत दो मुझे अपने से दूर रहने की।

फिर दोनों फूट फूटकर रोनें लगे। सनेहा से भी यह सब ना देखा गया। उसकी आँ खों में भी आँसू आ गए।

फिर निर्धारित समय पर संजय ने मीरा के आँखों का इलाज कराया। दोनों ने अपनी एक दुनिया बनाई जहाँ सिर्फ़ प्यार ही प्यार था।


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