एक कोशिश
एक कोशिश
आज ये समाचार पूरे देश की सुर्ख़ियों में था कि प्रीति वर्मा अदालत में केस जीत गई है। जहाँ एक तरफ उसके बहादुरी और दृढ़ता की सराहना हो रही थी वही दूसरी तरफ़ लोग थोड़े हैरान भी थे, कि प्रीति ने ये किया कैसे!
पूरा देश उसे बधाई देना चाहता था और साथ में उसके इस जटिल सफ़र की दास्तान भी सुनना चाहता था।
उसके अपने शहर में तो जैसे ईद और दीवाली का माहौल था। वहाँ के विद्यालयों की सारी बच्चियों ने प्रीति के चेहरे का मुखौटा पहना था। सब उसकी तरह बनना चाहते थे। माँ बाप भी यही चाहते थे कि उनकी बेटियाँ प्रीति की तरह निडर बने।
वहीं प्रीति जब अदालत से बाहर निकली,उसके उम्मीद के परे हजारों लाखों की संख्या में लोग और पत्रकार उसकी एक झलक और उससे बात करने की आतुरता में उसकी तरफ़ बढ़े लेकिन पुलिस के कड़े इंतज़ाम के कारण कोई प्रीति के पास तक नहीं आ सका। मगर प्रीति ने आँखों में आँसू लिए दूर से ही, थोड़ी देर रुक हाथ जोड़ सबका अभिवादन किया।
चारों ओर से प्रीति के नाम की गूँज सुनाई दे रही थी। सबकी आँखों में नमी थी। सबके दिल से प्रीति के लिए दुआ और उसके इस जीत के लिए बधाइयाँ मिल रही थी।
प्रीति की निगाहें सबको एक एक कर देखती और सबके साथ के लिए सबका शुक्रिया अदा कर रही थीं। लेकिन प्रीति की निगाह जैसे ही पत्रकार नम्रता सहाय पर पड़ी उसने उसे पास बुलाया और ज़ोर से गले लगा लिया।
नम्रता भी उससे उसी गर्मजोशी से मिली और उसने प्रीति को कहा ,आख़िर तुमने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।
प्रीति ने भारी आवाज़ में कहा, मैंने नहीं हमने कर दिखाया। फिर प्रीति अपने माता पिता के साथ सबको अलविदा कह चली गई।
नम्रता के आँखों के सामने पाँच साल पुराना मंजर दौड़ गया, जब उसने प्रीति को पहली बार देखा था। वह एक पत्रकार होने के नाते थाने एक पुलिस के साक्षात्कार के लिए पहुँची थी। मगर उस पुलिसकर्मी के व्यस्त होने की वजह से नम्रता को वहाँ इंतज़ार करना पड़ रहा था।
तभी उसकी नज़र प्रीति पर पड़ी थी। प्रीति पुलिस थाने में बैठी थी और उसके माता- पिता उसके साथ हुए दुष्कर्म की कहानी पुलिस को सुना रहे थे। मगर पुलिस ये सब प्रीति के ज़ुबान से सुनना चाहती थी। फिर प्रीति ने अपनी ज़ुबान से सारी घटना को दोहराया था। बोलते समय उसकी आँखों में वो डर ,वो घृणा ,वो तड़प साफ़ दिख रहा था जो वह पिछली रात घटना के समय महसूस कर रही थी। बड़ी ही बेदर्दी के साथ उसका बलात्कार हुआ था और उसे उसके बाद जलाकर मारने की कोशिश की गई थी। मगर बड़ी मुश्किल से वह हिम्मत दिखा वहाँ से बच कर निकल आई थी। इतना कुछ होने के बाद लड़खड़ाती ज़ुबान में ही सही मगर जिस अन्दाज़ से प्रीति ने सारी घटनाक्रम पुलिस के सामने रखी थी नम्रता के साथ पुलिस भी अचंभित थी। कुछ भी बताने के पहले उसकी आवाज़ में थोड़ी भी हिचक नहीं थी। वह बस किसी भी तरह उन आरोपियों को सजा दिलाना चाहती थी। पुलिस ने प्रीति के हिम्मत की प्रशंसा तक कर डाली थी।
लेकिन प्रीति ने जैसे ही आरोपियों का नाम लिया था थाने में सन्नाटा सा छा गया था। नम्रता भी ये यक़ीन नहीं कर पा रही थी कि ये काम वहाँ के एक नामी समाज सेवक ने अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर किया था। शायद नम्रता को भी इस बात का यक़ीन नहीं हो पाता की ये दुष्कर्म शंकर आहूजा ने किया है अगर वो खुद के कानों से नहीं सुनी होती। क्योंकि सारा शहर शंकर आहूजा के नेक दिली की वजह से उन्हें आज का भगवान मानता था। बहुत किया भी था शंकर आहूजा ने इस शहर के लिए। मगर कभी सपने में भी नम्रता या पुलिस ने ये नही सोचा था कि शंकर आहूजा पर कोई ऐसा आरोप भी लगा सकता है।पुलिस भी प्रीति से बार बार पूछ कर यह आश्वस्त होना चाहती थी कि प्रीति सही बोल रही या नहीं। प्रीति से कही पहचानने में कोई भूल तो नहीं हो रही।इसपर प्रीति और उसके परिवार के साथ आए कुछ लोगों ने हंगामा भी किया था, कि कोई लड़की झूठा आरोप क्यों लगाएगी।
उसके बाद पुलिस ने प्रीति की शिकायत दर्ज कर ली थी।
इतना सब सुनकर नम्रता को एक बात का तो यक़ीन हो गया था कि अगर ये लड़की सच बोल रही है तो इसकी ये इंसाफ़ की लड़ाई आसान नहीं होने वाली।
उसके बाद जैसे ही ये खबर बाहर निकली, पूरे देश की सुर्ख़ियों में छा गई। पूरा देश बस इसी की बात कर रहा था। आधे से अधिक लोग प्रीति को झूठा साबित करने पर लगे थे। प्रीति और उसके परिवार पर दबाव बनाया जा रहा था कि वह वो शंकर आहूजा पर से आरोप हटाकर सबके सामने उनसे माफ़ी माँगे। कुछ लोग जो शुरू में प्रीति के साथ थे अब धीरे धीरे उसका साथ छोड़ने लगे थे। कोई वकील भी प्रीति का केस लड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहा था।शंकर आहूजा भी अपने नाम और ताक़त का इस्तेमाल कर प्रीति को झूठा साबित करने पर लगा था। प्रीति के घर वाले भी हिम्मत हारने लगे थे।
सबके साथ छोड़ने और सारे वकील के बार बार मना करने पर निडर प्रीति ने वो कदम उठाया जिसकी कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी।
प्रीति ने अपने बलात्कार का केस खुद लड़ने का निश्चय किया। उसने ये तय किया था कि वह किसी भी वकील के बिना ये लड़ाई लड़ेगी और जीत कर दिखाएगी। वह अपनी वकील खुद बनेगी। कोई भी उसके इस फ़ैसले से ख़ुश नही था।मगर प्रीति किसी भी हाल में आरोपियों को सजा दिलाना चाहती थी।
लेकिन नम्रता एक ऐसी शख़्स थी जो इस पूरे केस के दौरान प्रीति का पूरा साथ दिया था। अकेले पड़ जाने पर भी प्रीति ने जिस तरीक़े से हिम्मत दिखाया था ये देख नम्रता बहुत प्रभावित थी और दुखी भी होती कि इस लड़ाई में कोई प्रीति का साथ नही दे रहा। इसपर नम्रता ने पेपर में लिख सबको प्रीति की लड़ाई के प्रति सबको जागरुक करवाया था।
प्रीति का साथ देने की वजह से नम्रता को भी कितनी बार अपने दफ़्तर में बहुत कुछ सुनना पड़ा था। लेकिन नम्रता अडिग रही और कहा, प्रीति की जगह मैं भी हो सकती थी।
बलात्कारी एक संक्रमित रोग के समान हैं। अगर उन्हें मिलकर नहीं रोका गया तो ये पूरे समाज को, देश को अपने चपेट में ले लेंगे और हम देखते रह जाएँगे अगर हमने समय रहते इसका उपचार नहीं किया।
लेकिन फिर भी नम्रता को शंकर आहूजा के ख़िलाफ़ लिखने पर नौकरी से निकाल दिया गया था। मगर नम्रता ने भी हार नहीं मानी थी। अपनी राइटिंग से सबको प्रीति और शंकर आहूजा की सच्चाई से अवगत करती जा रही थी। छोटे छोटे पर्चे बनवाकर शहर की दीवारों पर लगाती और उसमें प्रीति के साथ देने की गुज़ारिश करती। धीरे धीरे केस आगे बढ़ रहा था और देश भी धीरे धीरे प्रीति की सच्चाई से अवगत हो रहा था।
जो लोग प्रीति का साथ छोड़ चले गए थे अब सब उसके साथ आकर खड़े थे। जहां एक तरफ़ प्रीति और नम्रता ने अकेले लड़ाई की शुरुआत की थी। आज पूरा देश उनके साथ था।
और आज वह दिन था जब आख़िरकार प्रीति को न्याय मिला था। उसकी जीत हुई थी। ये सब किसी फ़िल्म की तरह नम्रता के आँखों के सामने से गुज़र गया। नम्रता ये सब सोचती हुई बुत बनकर खड़ी थी। तभी नम्रता के फ़ोन की घंटी बजी। नम्रता जो अब एक बड़े TV चैनल में नौकरी कर रही थी के boss ने नम्रता को फ़ोन करके बधाई दी। आख़िर कार ये नम्रता की भी जीत थी।
अदालत की कारवाई ख़तम होने के कुछ दिनों बाद एक दिन नम्रता , प्रीति के घर उसका हाल चाल लेने आई। प्रीति ने ख़ुशी ख़ुशी उसका स्वागत किया।प्रीति अपनी थमी हुई ज़िंदगी को शुरू करने जा रही थी। उसने MBA में अपना दाख़िला कराया था। अगले महीने से उसे कॉलेज शुरू करनी थी।
नम्रता ने कहा, मैं एक बार फिर से तुमसे प्रभावित हो गई। तुम पूरे समाज के लिए एक मिसाल हो। क्यों ना तुम एक बार TV पर आकर एक इंटरव्यू में अपनी इस सफ़र के बारे में सबको बताओ। शायद तुम्हें सुनकर वैसी लड़कियाँ आगे आने की कोशिश करे जो किसी हिचक या मदद नहीं होने के करण अपने साथ हुए अत्याचार को मन में ही दबाई रह जाती हैं। और जीवन भर अपने मन की कुंठा से घिरी रह जाती है। प्रीति ने इंटरव्यू के लिए हाँ कर दी।
एक सप्ताह बाद प्रीति का TV पर साक्षात्कार होना था। सभी उस पल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।प्रीति के इस सफ़र की दास्तान सभी सुनना चाहते थे। तय समय पर नम्रता ने प्रीति का इंटरव्यू शुरू किया। सबसे पहले नम्रता ने प्रीति को अपनी लड़ाई जीतने पर बधाई दी। फिर नम्रता ने प्रीति को संबोधित करते हुए कहा ,ये कोई सामान्य साक्षात्कार नही जिसमें मैं प्रश्न करूँ और आप जवाब दो।
ये एक मंच है जहां आप वो सब बताओ जो आपने अब तक महसूस किया। कैसे आपने इतनी हिम्मत जुटाई कि आपने अपनी लड़ाई खुद लड़ी। अपनी वकील खुद बनी? क्या आपको डर नहीं लगा? इतना कह नम्रता की आँखें भर आई और वो शांत हो गई।
प्रीति बड़े शांत भाव से बैठी थी। थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने कहा, जब शरीर पर घाव लगते है तो उसकी गम्भीरता हमें दिखती है और हमारा दिल दिमाग़ सब शरीर की मदद को तत्पर हो जाते हैं। मगर जब घाव आपकी आत्मा पर बनती है तो उस समय आपका शरीर , दिल दिमाग़ सभी बिखरने लगते हैं। उस समय शरीर रूपी घर में हलचल सी मच जाती है। जैसे भूकंप में घर गिरने लगते हैं वैसे ही जब आत्मा घायल होती है तो शरीर रूपी घर गिरने लगता है ,बिखरने लगता है क्योंकि आपकी आत्मा आपके शरीर की नीव है। और जब नीव कमजोर हो जाएगी तो घर को तो बिखरना ही है।
ठीक ऐसा ही मेरे साथ पाँच साल पहले हुआ था। तीन लोगों ने मिलकर मेरे शरीर के नीव तक को हिला दिया था। ये हालत हो गई थी कि कुछ देर मानो लगा कानों को ना कोई शोर सुनाई दे रही ना आँखों को कोई मंजर ही दिख रहा। दिल की धड़कन बंद हो गई हो और साँसें आना जाना भूल गई हो। शरीर और आत्मा दोनो को एक दूसरे के दर्द का भार उठाने की ताक़त नहीं बची थी। मैं कैसे भाग कर अपने घर तक आई मुझे नहीं पता। मगर थोड़ी देर के बाद जब हलचल शांत हुई तो मैंने पाया कि दिल, दिमाग़ ,आत्मा टूटे ज़रूर थे मगर अभी तक बिखरे नही थे। दिमाग़ ने फुर्ती दिखाते हुए दिल का और आत्मा का हाथ थामा और कहा ,कि अगर हम जल्द ही एक दूसरे का सहारा बन गए तो हम बिखरने से बच सकते है। और आज नतीजा आपके सामने है।
जहां तक हिम्मत की बात है , तो वो होती तो सब में है मगर हालात बहुत बड़ी किरदार निभाती है ये तय करने में कि आप उसका इस्तेमाल कब करते हो।अगर कोई आपकी हिम्मत बनता है तो आप उसपर आश्रित होने लगते हो। मगर किसी ने बीच मंझधार में आपका साथ छोड़ दिया तो आप अपनी हिम्मत खुद बनते हो।
मेरे साथ दुष्कर्म करने के बाद वे जब मुझे मारने में सफल नहीं हो पाए तो मेरे परिवार, दोस्तों सब को जान से मारने की धमकी देने लगे। इस डर से मेरे अपने एक एक कर मेरा साथ छोड़ रहे थे। और जो मेरे साथ थे वो तो केवल मेरा सहारा ही बन सकते थे। सही मायनों में तो लड़ाई मेरी थी तो पहल भी मुझे ही करनी थी। ऐसे में अगर मैं खुद अपना साथ नहीं देती तो क्या मैं इन गुनहगारों को सजा दिला पती। वो भी वैसे इंसान से क्या डरना जो छुप कर वार करता हो। हाँ मैं सबके सामने कहती हूँ और कहा है कि मेरा बलात्कार हुआ है। मैं नहीं अपने चेहरे को ढक खुद को गुनहगार मानती रहूँगी। मगर जिन्होंने ये किए, क्या उनमें हिम्मत थी कि वो सबके सामने कहते की हाँ मैंने बलात्कार किया है।
अंत में मेरा समाज को ये ही निर्देश है कि , समाज को इस समस्या के प्रति बहुत ही संवेदन शील बनने की ज़रूरत है। कुछ भी नया होता है तो समाज को उसे समझने में, स्वीकार करने में वक्त लगता है। और हमारा समाज जो कि एक पुरुष प्रधान समाज है, भी इसी नयेपन से गुज़र रहा है। उसे ये बर्दाश्त ही नहीं हो रहा कि कल तक उसके आगे मानसिक और आर्थिक रूप से आश्रित रहने वही नारी आज खुद सब चीज़ों के लिए सक्षम है।
और फिर कभी कपड़ों का हवाला देकर तो कभी मुँह फट का बहाना देकर बलात्कार जैसी सजा की फ़रमान सुनाते रहते है।
बिना ये सोचे कि जब एक लड़की के साथ ये होता है तो , उसपर क्या बीतेगी। और ये कैसे लोग है जो तब ख़ुश हो रहे होते है , जब कोई दर्द में कराह रहा होता है।
मगर ग़लती सिर्फ़ उनकी नहीं जो बलात्कार करते है, हालात तो तब बिगड़ती है जब समाज उस लड़की को ही दोषी ठहरा बार बार बलात्कार करता है।समाज बस अपनी बोलता जाता है। ये सुनने की कोशिश ही नही करता कि जिसके साथ हुआ उसे क्या कहना है। हम अपनी अपनी राय बना जिसके साथ हुआ वो जाने बोल कर आगे निकल जाते हैं।
इतने दिन बीत गए । मेरे गुनहगारों को सजा भी हो रही। मगर अभी तक मैं उस रात से निकल नहीं पाई हूँ। हर दिन मैं उस घटना को अपने अतीत से मिटाती हूँ। मगर अभी तक मिटा नहीं पाई हूँ। विश्वास करना भूल गई हूँ मैं लोगों पर। अब मेरे में वो बचपना नहीं रहा। धीरे धीरे मेरे दोस्त परिवार सब सामान्य हो रहे, मगर मैं अब तक उसी रात में अटकी हूँ। सामान्य होना और सामान्य होने की ऐक्टिंग करना दोनो बहुत अलग बात है। और मैं अब तक ऐक्टिंग कर रही हूँ।
विडम्बना ये है कि ये एक ऐसी गुनाह है जिसमें आरोपी को सजा मिले या ना मिले ,पीड़ित को सजा ज़रूर मिलती है।
मुझे अब रात में बाहर जाने की इजाज़त नहीं। कहीं अकेले जाने की इजाज़त नहीं। कैसे कपड़े हैं, कुछ दिख तो नहीं रहा, और ना जाने क्या क्या!
अभी तक समाज में बहुत सारी ऐसी लड़कियाँ हैं ,जिनके साथ बलात्कार होने के बावजूद उनके अपने ही उससे भूल जाने कहते हैं। उसे ही दोषी ठहराते है। मेरी उसने विनती है कि अपनी बेटी को सुनो। उसपर भरोसा करो ना कि उसके कोमल मन को और प्रताड़ित करो। क्योंकि हर एक लड़की के ऊपर भविष्य की जिम्मेदारी है। हर लड़की एक माँ बनेगी और जब माँ का मन ही डरा हुआ, संकुचित होगा तो वो क्या अपने बच्चे की परवरिश कर एक सुदृढ़ समाज बनाने में अपना योगदान दे पाएगी।
मैं बहुत क़िस्मत वाली हूँ कि मैंने अपनी बात खुल कर सबके सामने रखी। और देर से ही सही मगर सब ने मेरा साथ दिया। और इसी का नतीजा है कि मैंने फिर से अपने लिए सपने देखे हैं। और उन्हें मैं पूरा ज़रूर करूँगी।
सीने में आती जाती साँसें मुझे केवल उस समय की याद दिलाते है। मेरा वादा है उन लम्हों से कि साँसों में ख़ुशियों के लम्हे एक दिन ज़रूर भरूँगी।
आज जहाँ मुझे किसी का छूना नागवार है, मुझे यक़ीन है एक दिन मैं किसी से प्यार ज़रूर करूँगी।
प्रीति की आँखों में एक चमक थी, और भविष्य के सपने। और अंत में उसने बात कही जिसने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया..
एक यक़ीन भरी नज़र और थोड़ा सा साथ अगर मिल जाए तो फिर इस दर्द से गुज़र रही लड़कियाँ अपने लिए नए सपने बुनने में ज़रूर सफल होंगी। मुझे और आपको मिलकर ही ये पहल करनी होगी। घाव सूख कर दाग छोड़ दे वो फिर भी ठीक है मगर घाव में रिसाव नहीं होती रहनी चाहिए। मेरे इस सुझाव पर विचार जरूर कीजिएगा।
