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manisha sinha

Romance Action

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manisha sinha

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देश और मैं

देश और मैं

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हर रोज़ तुम्हें मैं ,ख़त लिखती हूँ

एक नहीं, दस दस लिखती हूँ

किसी में अपने दिल का हाल

तो किसी में बस शिकवे करती हूँ

कभी इंतज़ार की दास्तान ,तो दर्द

तन्हाई का कभी बयान करती हूँ

हर रोज़ तुम्हें मैं ख़त लिखती हूँ।


सरहद से जब कोई भी

संदेश तुम्हारी लाता है

मायूस भले हो जाऊँ कितनी

होठों पर ,मुस्कान हर पल ही रखतीं हूँ

कोई जो पूछे मेरा हाल

सब ठीक है, ये कह टाल देती हूँ

फिर बंद कमरे में उस सवाल का

सही जबाब तुम्हें,ख़त में लिखती हूँ

हर रोज़ तुम्हें मैं ख़त लिखती हूँ।


सात फेरों के वचन मैं तुमको

याद दिला दूँ भी तो क्या

आँसू से लिखे हुए ख़त को

भिजवा दूँ , तुम तक भी तो क्या

खबर मुझे है, तुम हर हाल में

भारत माँ के ही वचन निभाओगे

फिर भी सब अनदेखा कर

दिल के राज बताती रहतीं हूँ

हर रोज़ तुम्हें मैं ख़त लिखती हूँ।


मैं जानती हूँ, कि तुम भी तो

मेरे लिए विचलित होंगे

मगर ये भी तय है, मुझमें वतन में

हर हाल में ही, तुम देश चुनोगे

इसीलिए ये ख़त लिखकर मैं

फिर फाड़ दिया करती हूँ

पैग़ाम तुम तक पहुँचे ना पहुँचे

दिल तो , बहला लिया करती हूँ

हर रोज़ तुम्हें मैं ख़त लिखती हूँ।


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