निर्णय
निर्णय
मीरा और राजीव ने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर एक अच्छा मुक़ाम हासिल कर लिया था। जब से शादी हुई थी तब से वे एक अच्छे जीवन के लिय लगातार प्रयास कर रहे थे।और अब तो ऐसा लगता था की ,वो इस में सफल भी हो गए थे।वैसे तो उन दोनो को कभी भी एक साथ बैठने बात करने की भी फ़ुरसत नही होती थी ,मगर इधर कुछ दिनों से मीरा का मन काम में नही लग रहा था।वह ऑफ़िस भी एक दो दिनों से नही जा रही थी।
राजीव ने जब ये देखा तो उसने ,मीरा से कहा अगर तुम्हारी तबियत ठीक नही तो मैं भी रह जाऊँ क्या घर पर?डॉक्टर के पास चलते है।कभी ऐसा नही हुआ क़ि तुम दफ़्तर ना जाओ।कोई दिक़्क़त है क्या।या फिर कोई और बात है"।
मगर मीरा ने कहा नही मैं बिलकुल ठीक हूँ ,बस थोड़ा आराम करना चाहती हूँ।पिछले सप्ताह काम बहुत ज़्यादा था ,लेकिन अभी थोड़ा कम है ,तो सोचा घर में आराम कर लूँ।तुम दफ़्तर जाओ,कुछ होगा तो मैं बता दूँगी।
फिर राजीव अपने दफ़्तर के लिए निकल गया।
मीरा का मन नही लग रहा था तो उसने अपनी दोस्त शालिनी को अपने घर बुला लिया।
शालिनी के दो दो छोटे बच्चें होने की वजह से घर पर रहती थी।स्कूल भेजना ,खाना ,होम्वर्क इन सब की वजह से उसे कभी मौका ही नही मिला कि वह बाहर जाकर काम करे।
शालिनी ने मीरा को भी बहुत समझाने की कोशिश की थी, कि पहले बच्चे की सोचों फिर अपने नौकरी की ,क्योंकि एक तय समय पर ये हो जाए तो अच्छा है।फिर करती रहना आराम से नौकरी।
लेकिन मीरा का कहना था कि,वह पहले एक तय राशि जमा करेगी,एक मुक़ाम हासिल करेगी,फिर बच्चे के बारे में सोचेगी।
शालिनी अपने घर का काम निपटा और अपने बच्चे को स्कूल छोड़ते हुए ,मीरा से मिलने उसके घर आई।उसे भी इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि आज क्या बात है ,मीरा घर पर है।शालिनी ने,मीरा से उसके तबियत का पूछा ,जिसपर मीरा ने सब ठीक है कह कर टाल दिया।
फिर वे दोनो इधर उधर की बातें करने लगें।मीरा चाय भी बना लाई।मगर मीरा के चेहरे पर वो ख़ुशी नही थी ,जो हमेशा रहती थी।
शालिनी के बार बार पूछने पर मीरा ने कहा ,कि मैं माँ बनने वाली हूँ।
शालिनी ने बहुत ही खुश होते हुए कहा,अरे ये तो बहुत हाई ख़ुशी की बात है।और ये समाचार तुम इतनी मायूस होकर सुना रही हो।
अचानक से कैसे मन बदल गया तुम्हारा,लेकिन ठीक है जो हुआ अच्छा हुआ।राजीव कैसे माँ गया।उसे तो बिलकुल भी बच्चा नही चाहिय था।
शालिनी की बातें बंद हाई नही हो रही थी।वो अपने दोस्त के लिए काफ़ी ख़ुश थी।
तभी मीरा ने शालिनी को टोकते हुए कहा,राजीव को नही पता अभी।
शालिनी-क्यों नही बताया अभी तक?और तुम इतनी मायूस क्यों हो?
फिर मीरा से और बर्दाश्त नही हुआ ,और वह रोने लगी।
शालिनी की भी कुछ समझ नही आ रहा था की,हुआ क्या?
फिर उसने मीरा को शांत कराते हूए पूछा ,आख़िर बात क्या है?
उसपर मीरा ने कहा, क़ि राजीव को कभी भी बच्चा नही चाहिए ।मगर इधर बार बार कुछ दिनों से मेरे ज़िद करने की वजह से बड़ी मुश्किल से राजीव मान गए थे।
मगर...
मगर क्या,शालिनी ने ज़ोर देते हुए पूछा।
जब मुझे इसबार प्रेगनेंसी का पता चला तो मैंने जान कर राजीव को नही बताया,क्योंकि वो पहले भी एक दो बार अबोर्ट कराने के लिए बोल चुके थे।हर बार मैं उनकी बात मान लेती थी।
मगर इस बार मैं किसी भी क़ीमत पर ये बच्चा नही खोना चाहती थी,लेकिन इस बार क़िस्मत को हाई मंज़ूर नहीं।
शालिनी मीरा की बात को ध्यान से सुन रही थी।
फिर मीरा ने कहा,मैंने सोचा,क्यों ना मैं ३ महीने रुक कर राजीव को बताऊँ।तब तक मैं अपना चेकअप लगातार कर रही थी और अभी सबको बताने भी वाली थी, कि कल सुबह डॉक्टर का फ़ोन आया ,और मुझे क्लिनिक मिलने बुलाया।
उसने पिछले सप्ताह आए रिपोर्ट ,पर चर्चा सलाह मस्वराह करने बुलाया था।
वहाँ जाकर पता चला की,बच्चे को कोई गंभीर बीमारी है।किसी तरह की ब्रेन की समस्या है।ब्रेन का कोई भाग नही है बच्चे का।
अब मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ।राजीव को बताया तो पता ना क्या प्रतिक्रिया दें।
शालिनी ने गम्भीर स्वर में पूछा,तुम्हारा क्या मन है।
मीरा ने दुःखी होकर कहा,मौजूदा बच्चे की हालत और कल डॉक्टर और काउन्सेलर की बातों से मैं इसी नतीजे पर पहुँची हूँ की अबोर्ट कराना ही सही रहेगा।फिर शालिनी के बार बार कहने पर मीरा ने राजीव को फ़ोन किया और तुरंत घर आने कहा।
राजीव के आने पर मीरा ने,हिचकते हुए राजीव को प्रेगनेंसी और अबॉरशन वाली बात बताई।
मीरा के सोचने की विपरीत,राजीव भी काफ़ी दुखी था,और इन सब के लिय खुद को दोषी मान रहा था।
उसने कहा,पहले जो मैंने जान कर तुम्हें अबॉर्शन करने पर मजबूर किया था,उसी की सज़ा दी है अभी भगवान ने।
फिर उसने मीरा से माफ़ी माँगी और कहा,की वह उसके हर निर्णय में उसके साथ है।
