पहल-२
पहल-२
" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"
उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?
" संदली!, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।
" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।
" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।
" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।
" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।
जानकी ने लम्बी साँस लेते हुए कहा, जीवन के अंतिम पड़ाव पर जीना सीख रही हूँ ।जानकी और संदली की माँ रीना की शादी एक ही समय पर हुई थी।दोनो पड़ोसी होने के साथ साथ अच्छे दोस्त बन गए थे।शुरुआती दिनों में तो सब बहुत अच्छा था।एक दूसरे के घर हमेशा आना जाना लगा रहता था।शादी के पांच साल बाद जानकी के पति ने उन्हें छोड़ दूसरी शादी कर ली थी।अचानक से उनके जीवन में तूफ़ान सा आ गया था।शानो शौक़त से रहने वाली जानकी अब बड़ी मुश्किल से अपना और अपने ३ साल के बेटे का पेट पाल रही थी।उस समय संदली के परिवार ने उन्हें काफ़ी सहारा दिया था।मगर जानकी ऐसे किसी पर भार नहीं बनना चाहती थी।लेकिन काम पढ़े लिखे होने के कारण बड़ी मुश्किल से छोटी सी नौकरी लग पाई थी।उस समय संदली ५ साल की थी।संदली का एक बड़ा भाई था जो की उससे ४ साल बड़ा था।
जब जानकी ने कहा ,की वह जीना सीख रही है तो संदली ने कहा ,"हम अपनी ज़िंदगी में सब कर लेते हैं सिवाय जीने के।मुझे आजतक ये समझ नहीं आया कि ,हम हर पल अपनी ख़ुशी दूसरों से जोड़कर ही क्यों देखते हैं?क्यों हर काम हमें इस समाज के बनाए नियम के अनुसार ही करनी पड़ती है?
उसपर जानकी ने कहा,हम समाज का हिस्सा हैं ,हम इससे अलग रह कैसे रह सकते हैं?"
शांत बैठी संदली फिर चिढ़कर बोली, "हाँ भले इस समाज को हमारे ग़म और ख़ुशी से कोई मतलब नहींं मगर हमें समाज की सुननी है!"जानकी ने आश्चर्य से संदली की तरफ़ देखा और कहा,"क्या करोगी बरसों से यही होता आया है।मगर तुम्हें क्या हो गया है ? आजकल ऐसी मुरझाई हुई सी क्यों रहती हो?क्या बात है?घर में सब ठीक तो है ना?"
"अब आपसे तो कुछ छुपा नहींं आँटी।जब से ड्रग्स की लत की वजह से भाई घर छोड़ गए, बिखर गया सब हमारे यहाँ।पापा का उसी शोक में देहांत हो गया और अब तो माँ भी अक्सर बीमार ही रहती है।उसका तो घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया है अब।दिनभर भाई को याद करके रोती रहती है।और कुछ दिनों से मुझे पढ़ाई के साथ साथ काम पर भी जाना पड़ रहा है।
ऐसे में इस समाज को ये नहीं पड़ी कि मैं कैसे अपना और अपनी माँ का पेट पाल रही,उन्हें बस मेरी शादी की पड़ी है।कल को मेरी शादी हो जाती है और मेरा पति मुझे मेरी माँ से ना मिलने दे तो क्या से समाज आएगा मेरी मदद को।कल को अगर किसी दहेज के ललची लोगों ने मेरी माँ से लाखों रुपये माँगे,क्या मेरी माँ है इस हाल में कि वह दे पाए।
अगर मैं अपने पैर पर मज़बूती से खड़े हुए बिना शादी कर लूँ और शादी के बाद मुझे वो बीच मँझधार छोड़ दे,क्या ये समाज सहारा बनेगा मेरा?
लोगों के रोज़ के सवाल और उनके जवाब देते देते मैं थक गई हूँ।ऐसा लगता है मेरे अकेले का कोई वजूद ही नहीं।शादी के बिना क्या मेरा अपना कोई व्यक्तित्व नहीं?आपने भी तो ग़लत शादी की वजह से कितना कुछ झेला है अपने जीवन में।आपको नहीं लगता कि लड़कियों का अपने पैर पर खड़े होना ज़्यादा ज़रूरी है फिर शादी होना।"
संदली की बात सुन जानकी थोडी झेंप सी गई। उन्हें ये एहसास हुआ कि वो संदली को वही करने बोल रही जो उन्होंने की थी।पढ़ाई पूरी ना कर बीच में ही शादी के लिए राज़ी हो जाना उनके जीवन की बहुत बड़ी भूल साबित हुई थी।जानकी ने संदली को गले लगाते हुए कहा,कोई ज़रूरत नहीं इस समाज को कुछ भी जवाब देने की।पहले खुद की ख़ुशी देखो,फिर जो ठीक लगे वो करो।आज का समाज तुम जैसी सशक्त लड़कियों से निर्मित है।समाज को तुमपर गर्व होना चाहिए।
संदली फ़िर बड़े शांत भाव से जवाब दिया,"मैं शादी ज़रूर करूँगी मगर उससे पहले मैं खुद को हर परिस्थिति के लिए तैयार करूँगी।"