manisha sinha

Others

4.9  

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पहल

पहल

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"तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?" लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?

" संदली! क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?" प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।" मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बेंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? " जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई...." संदली ने जवाब दिया।" आप सुनाइये।"" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

"अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई और संदली की तरफ़ देखते हुए कहा ..अरे कुछ नहीं, बस वही कम्प्यूटर चलाना सीख रही हूँ। मेरा 8 साल का पोता भी इतना अच्छा है इसमें कि मुझे तो शर्म ही आती है। यह कह जानकी जोरों से हँसने लगी। उन्हें लगा शायद संदली कुछ बोले, मगर उसने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी।

जानकी दर्द का मतलब भली भाँति जानती थी। उन्हें अपने जीवन में इसके अलावा कुछ नहीं मिला था।इसीलिए वो संदली का दुख बाँटना चाहती थी। बचपन से देखा था जानकी ने संदली को। छोटे उम्र में माँ बाप के गुजर जाने के बाद बड़े भाई ने ही पाला था। फिर भी जानकी ने संदली को हमेशा खुश ही देखा था।

मगर कुछ महीनों से संदली बिल्कुल खामोश सी हो गई थी। फिर जानकी ने इधर उधर की बातें कर पूछा....काफी दिनों से तुम्हारी वह दोस्त नहीं दिख रही, जिसके साथ तुम हमेशा इस पार्क में टहला करती थी। कितने खुश लगते थे तुम दोनों आपस में। कहाँ है, आजकल वो दिखती नहीं। जानकी का इतना पूछना था कि बुत बनी संदली फूट-फूटकर रोने लगी। जानकी ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत कराया फिर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, क्या हो गया है तुम्हें? किसी ने कुछ कहा क्या? अपनी परिस्थिति से लड़ो मत। उसे समझने की कोशिश करो। किसी भी बात को मन में दबा उसे नासूर मत बनने दो।मदद करता वही है जो मन से मजबूत हो, मगर मदद वे माँगते हैं जिन्हें खुद पर भरोसा होता है। इसीलिए मन में बात दबाए रखने से अच्छा है बोल दो।


थोड़ी देर रुक संदली ने हिम्मत जुटाते हुए कहा...शायद मैं जो कहने जा रही हूँ वो सुनकर पता ना आप कैसी प्रतिक्रिया दे, लेकिन आप जिस दोस्त के बारे में पूछ रही वो असल में सिर्फ़ मेरी दोस्त नहीं थी, बल्कि हम दोनो एक दूसरे से प्यार करते थे। हम एक दूसरे के साथ जीवन भर रहना चाहते थे, और समय आने पर हमने ये तय किया था कि अपनी सच्चाई घर वालों को दोस्तों को बता देंगे। मगर उससे पहले गुंजा के और मेरे परिवार वालों को पता चल गया।गुंजा के परिवार वाले तो इतने ग़ुस्से से भर गए कि उन्होंने आनन फ़ानन में उसकी शादी कहीं और कर दी। कॉलेज में सबने बात करना बंद कर दिया है।और कभी कोई करता भी है तो केवल मज़ाक ही उड़ाता है। किसी को ये नहीं पड़ी कि मैं जैसी हूँ वैसा मुझे रहने दे। भाई भाभी भी इस बात को नहीं समझ रहे और जबरदस्ती मेरी भी शादी कही कराना चाह रहे। जबकि मेरे लिए ये स्वीकार करना बहुत ही मुश्किल है। मैं अकेले रह लूँगी मगर वैसी शादी क्यों करूँ जहाँ ना मैं ख़ुश रह पाऊँगी और ना मेरे साथ रहने वाला। मुझे जानने वाले लोग मुझे कट कर रहने लगे है। मुझसे ऐसा बर्ताव करते है जैसे कि मैं कोई जीती जागती इंसान ही नही। मुझ में किसी तरह की कोई भावना ही नहीं। अब तो मेरा भी कुछ में मन नही लगता है। जीने की भी इच्छा नहीं होती। क्यों बनाया मुझे भगवान ने ऐसा। मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। कोई भी मुझे समझने को तैयार नहीं है। इतना कह संदली चुप सी हो गई। संदली की ये बात सुन जानकी को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो संदली को क्या समझाए।

फिर एक लम्बी साँस ले जानकी ने कहा, जब आज से २०साल पहले घरेलू हिंसा से परेशान हो मैंने अपने पति को तलाक़ दिया था, उस समय सबने मुझे और सिर्फ़ मुझे ही दोषी ठहराया था। उस समय समाज के ठेकेदारों ने मुझे पति की मार खाते हुए भी पति के साथ रहने को ही सही बताया था। मगर मैंने अपने मन की सुनी और अपने और अपने बच्चे को लेकर अलग हो गई। उस समय मुझे भी इस समाज की बहुत अवहेलना झेलनी पड़ी थी मगर मैं जानती थी कि मैं सही हूँ और मैं अपने चुने मार्ग पर बढ़ती गई और उसका नतीजा ये है की आज मुझे वे लोग ही सही ठहराते है जो उस समय मेरे ख़िलाफ़ थे। वही तुम्हारे साथ हो रहा। इस समाज को लड़का लड़की की शादी की आदत है। तो वो ये स्वीकार ही नहीं कर पा रहे कि इससे भी हट कर कुछ हो सकता है।तुम्हें समाज को इस सच से अवगत कराना है। और ये दिखाना है कि तुम कुछ ग़लत नहीं कर रही। भगवान ने सबको अपने हिसाब से अलग बनाया है। हम इंसान कौन होते है, उस ऊपर वाले के कारीगरी में कुछ नुक्स निकालने वाले।

जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, तुम्हें किसी को जवाब देने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हें भी औरों के जैसे जीने और अपने सपनों को पूरा करने का हक़ है। बस तुम खुद को हारने मत देना। जोश और हिम्मत से भरी संदली ने जानकी का हाथ पकड़ा और कहा,आप ठीक कहती है आँटी। मैं खुद को हारने नहीं दे सकती।मुझे खुद पर अपने चयन पर विश्वास रखना होगा। मैं कभी खुद को हारने नहीं दूँगी। मगर इतना ज़रूर कहूँगी की किसी हारे हुए हताश इंसान को सिर्फ़ कोई ये भरोसा ही दिला दे कि कोई उसके साथ है, कोई उसकी सुन रहा, उसे समझ रहा तो यही पहल ही काफ़ी है उसमें नवजीवन का संचार करने के लिए...जैसा आपने मेरे लिए किया। जानकी ने प्यार से उसे गले लगा लिया और हर पल उसके साथ खड़े होने का आश्वासन दिया।










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