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manisha sinha

Drama

4  

manisha sinha

Drama

संगिनी

संगिनी

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राजीव के सब्र का बाँध तब टूट गया जब, उसके बेटे को विद्यालय में फ़ीस ना जमा करने की वजह से निकाल दिया गया था। एक साल से वह बीमारी की वजह से दफ़्तर नहींं जा पा रहा था। हर वकत अपने काम में, दफ़्तर में आगे रहने वाला राजीव आज अपने हालात के सामने हार गया था।

उसके पैर में दो साल पहले हुए एक छोटे से ज़ख़्म ने आज बड़ा रूप ले लिया था । पहले तो छोटा सा ज़ख़्म समझ उसने खुद से दवा लेनी शुरू की। मगर क़ुछ असर ना होता देख पत्नी के ज़िद से उसने डॉक्टर को दिखाना शुरू किया।

वैसे तो वह अपनी पत्नी को कम पढ़ा लिखा जान उसकी कही सारी बातों को हलके में लेता था,मगर इस बार जाने कैसे अपनी पत्नी की बात मान ली थी। मगर उसकी लापरवाही और देर से डॉक्टर के पास जाने की वजह से उसका ज़ख़्म पूरे पैर में फैल चुका था।

अब उसके पास सर्जरी कराने के अलावा कोई और उपाय नहीं था।

चलने में परेशानी, सर्जरी, बार बार अस्पताल के चक्कर इन सब की वजह से उसका दफ़्तर जाना लगभग एक साल से बंद था। शुरू के ६ महीने तो जमा पूँजी, दफ़्तर से मिल रहे आधी तनख़्वाह पर जैसे जैसे गुज़ारा हो रहा था। मगर बाद में सारा काम बड़ी मुश्किल से सिर्फ़ खुद के मकान से आ रहे किराए पर ही हो रहा था। उसी में उसे घर, बच्चे की पढ़ाईं, अस्पताल का खर्चा सब चलना था।

अब तो वह शरीर के साथ साथ मन से भी कमजोर होता जा रहा था। इसका ग़ुस्सा और अपनी झुँझलाहट वह अपनी बीबी पर निकालता रहता था।

पहले तो बीवी को किसी काम की नहीं बता घर पर ही ताने दिया करता । मगर अब वह किसी के सामने भी अपनी बीवी मीरा की बुराई करने से बाज नहीं आता था।

मीरा एक साधारण घर से थी। बचपन में ही माता पिता की मृत्यु हो जाने की वजह से मामा मामी के घर रहकर पली बढ़ी थी। वैसे तो मामा मामी बहुत अच्छे से मीरा का ख़्याल रखते थे, मगर उनके उपर खुद के तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी थी, जिस वजह से मीरा ने १२ वीं के बाद ही पढ़ाई छोड़ छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। इससे उसके मामा को भी थोड़ी मदद हो जाती थी। जबकि उसके मामा से कभी नहींं चाहते थे। मगर मीरा के ज़िद के आगे उनकी नहींं चली। मीरा हमेशा से खुद्दार,स्वभावलमबी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी। ज़िंदगी के हज़ारों थपेड़ों के बावजूद भी उसे ज़िंदगी से कभी शिकायत नहींं थी।

यही सब खूबियाँ और उसकी सुन्दरता से मोहित राजीव ने शादी के लिए एक बार में, ”हाँ “कह दिया था। जबकि मीरा ने अपनी बुद्धिमत्ता दिखाते हुए राजीव को समझाया था कि शादी का फ़ैसला करने से पहले वह एक बार और सोंच ले। क्योंकि मीरा इससे भली भाँति अवगत थी कि राजीव इतने बड़े ओहदे पर काम करता है तो इसके अपनी होने वाली पत्नी से कुछ तो उम्मीदें होंगी, और मैं को केवल १२वीं तक पढ़ी हूँ। मगर राजीव पर जैसे तो उसकी सुन्दरता का भूत सवार था। उसने कहा,पढ़ नहींं पाई हालातों की वजह से तुम। मगर तुममें पढ़ने की इच्छा तो है ना।

मीरा ने सिर हिलाकर हाँ कहा था।

फिर, और क्या चाहिए । मैं पढ़ाऊँगा तुम्हें। मैं वह सब करूँगा जो तुम चाहती थी, मगर कर नहींं पाई। बस तुम शादी के लिए मना मत करो। राजीव ने समझाते हुए कहा था। इस तरह राजीव को मिन्नतें करते देख मीरा और उसके मामा आख़िरकार मान गए थे।

शादी करके आने के बाद सब अच्छा चल रहा था। मीरा जहां अपने भाग्य पर इठलाती वही राजीव भी मीरा जैसी गुणी और सुंदर पत्नी पाकर बहुत ख़ुश था। मीरा ने बड़े अच्छे से राजीव के घर को सम्भाला था। अपने घर और मा बाप की सारी ज़िम्मेदारी मीरा पर डाल, राजीव भी अब सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान देता। मीरा को भी राजीव से कोई शिकायत नहीं थी।

हाँ, कभी कभी वह राजीव से आगे पढ़ने के बारे में ज़रूर कहती। राजीव भी हमेशा ये कहता की अगले साल से तुम शुरू कर लेना । इस साल मैं बहुत व्यस्त रहूँगा, तो शायद घर पर ध्यान ना दे पाऊँ। मीरा भी मान जाती।

समय बीतता गया और मीरा एक बच्चे की माँ भी बन गयी।

अब तो उसे अपने बारे में सोचने का बिलकुल भी समय नहीं था। उसका पूरा समय घर और बच्चे में निकल जाता। उसने अब तो राजीव को अपने नौकरी और पढ़ाई के बारे में बोलना भी छोड़ दिया था। हर पल काम करने और आराम ना मिलने की वजह से वह खुद पर भी ध्यान नहीं दे पाती थी। शादी के ७साल बीत गए थे। समय बस चलता ही जा रहा था। अब तो उनका बेटा भी अब ५ साल का हो गया था,

एक दिन ऐसे ही राजीव की नज़र ने मीरा पर पड़ी,वह बिलकुल बेहाल सी, जैसे तैसे कपड़े पहने हुए थी। बाल बिखरे थे। वजन भी बढ़ गया था। चेहरे पर वह रौनक़ नहीं थी,जैसी शादी के समय थी। उसे देखते ही राजीव ने कहा,सारा दिन तुम खाना, बच्चा यही सब करती हो। मेरे दफ़्तर में सबकी बीवियाँ कितनी अच्छी अच्छी नौकरी करती है। जब भी उनसे मिलता हूँ कितने अच्छे से बात करती है,खुद को कितने अच्छे से प्रस्तुत करती है। तुमको तो मैं किसी से मिलवा भी नहीं सकता। और मिलवा भी दूँ तो क्या कहूँ की तुम १२ वी पास हो।

वैसे चुप रहने वाली मीरा ने कहा,ये तो मैंने पहले ही कहा था। मगर तुमने एक नहीं सुनी थी। आगे पढ़ाया भी नहीं। अब मैं जैसी हूँ, वैसी हूँ।

इसी बात तो लेकर अब दोनो में हमेशा तनाव रहता।

राजीव जब ना तब मीरा में कमियाँ ढूँढने लगा था। अब तो उनका बेटा करण ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया था। राजीव बार बार यही ताने देता कि करण क्या कहेगा सबको की मेरी माँ केवल १२ पास है। पछतावा है मुझे की मैंने तुमसे शादी की।

मीरा को अब तो ऐसे अपमान की आदत हो गयी थी। वही राजीव की तरक़्क़ी हो रही थी। उसने अपनी एक मुक़ाम बना ली थी। अब तो वह, मीरा को छोड़ दूसरी शादी का भी मन बना रहा था।

तभी राजीव के साथ ऐसा हुआ और एक साल से वह घर पर ही था। उसके ताने देने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था।

अब तो हद हो गई थी ,करण को स्कूल से निकाल दिया गया था।

मीरा के लाख बोलने पर भी वह इस बात के लिय तैयार नहीं हुआ था क़ि वह बच्चों तो tuition पढ़ाए।राजीव के लिए जैसे ये मान अपमान की बात थी।

लेकिन राजीव के बार बार मना करने के बावजूद भी उसने ६ महीने से tuition पढ़ाना शुरू कर दिया था।इस बात को लेकर भी हमेशा राजीव मीरा से नाराज़ रहता।मगर मीरा ने हालात को समझते हुए पढ़ाना नही छोड़ा। धीरे धीरे उसके पास इतने बच्चे आने लगे थे की उसे महीने में १०००० से १५००० की कमाई हो जाती थी। मगर राजीव हमेशा मीरा के इस कमाई को लेने से मना कर देता,औरअपनी जमा पूँजी से ही काम चलाता।

मगर आज जब करण को स्कूल से निकाला गया मीरा चुपचाप जाकर अगले दिन फ़ीस जमा कर आई।

और राजीव को समझाते हुए कहा अगर हम साथ होंगे तो हर मुश्किल पार सकते है। बस हमें एक दूसरे पर भरोसा होना चाहिए।वैसे कोई काम जो इज़्ज़त और ईमानदारी से किया गया हो बुरा नहीं।

हमदोनो अगर एक दूसरे की कमियों को देखने के वजाए एक दूसरे की ताक़त बनेंगे तो हम मिलकर हर मुश्किल पार कर सकते है।


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